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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०८ महाराज छत्रसाल। - मिल सकता था। यदि उन्होंने शिवाजीकी भाँति कोई नयी प्रथा निकाली होती या कोई असाधारण सुधार किया होता तो यातो उसका उल्लेख कहीं मिलता और या उसका आभास अब भी चरखारी आदि राज्यों में जो इनके वंशजोके अधिकारमें हैं, मिलता । और प्रमाणोंके अभावमें हमको केवल अनुमानसे काम लेना पड़ता है। उस समय नर्मदा और यमुनाके बीचका लगभग सारा प्रान्त इनका ही था। ओरछा और दतियाके राज्योंको छोड़ कर, वह सब भूभाग जिसमें अब चरखारी, छत्रपुर, अजैगढ़, बिजावर, पन्ना, सरीला, अलीपुरा और ग्वालियरके देशीराज्य, बुन्देलखण्डकी बीहट, लुगासी, जिगनी आदि जागीरें और झाँसी, बांदा, हमीरपुर, ओरई, सागर और दमोह आदि अंग्रेजी ज़िले हैं, इनके ही अधिकारमें था। राज्यकी वार्षिक आय दो करोड़ रुपयेके लगभग थी। उस समय सेना कितनी थी, यह नहीं कहा जा सकता। पर ऐसे राज्यमें जिसको अपने अस्तित्व. तकके लिये मुगलोंके समान प्रबल शत्रुओंसे प्रतिदिन लड़ना पड़ता था उसकी खंख्या अवश्य बहुत बड़ी रही होगी। जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, मौधा-मटौंधाके ज़मीन्दारोंके दमन किये जाने के पश्चात् इनके राज्यमें कभी कोई विद्रोह न हुआ। यह कोई साधारण बात न थी। एक नये राज्यमें जिसका विस्तार इनता बड़ा था और जिसके चारों ओर अराजकता फैल रही थी, इस प्रकार अखण्ड शान्तिका स्थापित करना और उसको दीर्घ कालतक निबाहना ही शासनकी उत्तमताका बहुत प्रबल प्रमाण है। यदि प्रजाको कुछ भी कष्ट होता तो वह विद्रोहमें तत्पर हो जाती और मुगल लोग भी उसको सहर्ष सहायता देते। For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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