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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir राज्यका प्रबन्ध। १०७ दिल्लीसे आकर एक कवि इनके राज्यमें बसा था। थोड़े दिनों में दो करोड़की सम्पत्ति छोड़ कर मर गया। उसकी स्त्रीकी अवस्था बहुत थोड़ी थी। कुछ दिनोंतक तो वह चुप रही ; परन्तु अन्तमे वह काम-विवश होकर उसने अपना सतीत्व खोनेकी ही ठानी। 'कामातुराणा न भयं न लज्जा।' छत्रसालके रूपपर मोहित होकर उसने उनको किसी बहाने अपने घर बुलाया और फिर अपनी पापेच्छा प्रकट की। उसने कहा, 'मैं आपसा पुत्र चाहती हूँ। यह बड़ी कड़ी धर्मपरीक्षा थी। एक सुन्दरो युवती स्वयं ही रतिकी प्रार्थना कर रही हो, ऐसे समयमें धर्मसे न डिगना साधारण ब्यक्ति. का काम नहीं था । परन्तु छत्रसाल साधारण व्यक्ति न थे। उन्होंने अपूर्व बुद्धिमत्तासे काम लिया। उन्होंने उसके दोनों स्तनोंको अपने हाथोंसे पकड़ कर मुँहमें डाल लिया और बोले, "माता! लीजिये आजसे मैं ही आपका पुत्र हूँ!" वह स्त्री अवाक् हो गयी। पर शीघ्र ही उसकी बुद्धि ठिकाने हुई। छत्रसालकी इस युक्तिने दोनोंके धर्मकी रक्षा की। वह उस दिनसे सचमुच ही उनसे मात्रस्नेह करने लगी और अपनी सारी दो करोड़की सम्पत्ति इनको दे गयी। इस रुपयेसे उन्होंने क्या किया यह आगे बतलाया जायगा। २१. राज्यका प्रबन्ध । इस सम्बन्धमें भी हमको कोई प्रामाणिक लेख नहीं मिलता। मुसलमानी ऐतिहासिकोंने भी इस विषयमें कुछ नहीं खिस्खा है । जहाँतक हम समझते हैं, इन्होंने अपने यहाँ शासनका क्रम वही रक्खा होगा जो इनके पहिलेसे चला आता था और जिलका उदाहरण इनको ओरछा राज्य व पासके मुग़ल प्रान्तोसे For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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