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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir राज्यका प्रबन्ध । १०8 इनके निष्पक्ष न्यायाचारकी कई कहानियाँ सुनी जाती हैं। एक बड़ी बात जो इनके शासनमें थी, वह यह थी कि ये प्रजाके लिये सदैव प्राप्य थे । जिसको किसी प्रकारका कष्ट होता वह इनसे मिलकर निवेदन कर सकता था और फिर ये स्वयं अन्वेषण करके यथोचित न्याय करते थे। इससे राजाका काम तो बहुत बढ़जाता है, परन्तु दो लाभ होते हैंएक तो यह कि राजकर्मचारी अपने कर्त्तव्यका पालन बहुत ही सम्हल कर करते हैं और दूसरा यह कि प्रजाको राजाके प्रति दृढ़ निष्ठा हो जाती है। वह राजाको पितृवत् मानने लगती है। और राजाका भी धर्म है कि प्रजाको पुत्रानिवौरसान्' पा. लन करे । राजाकी प्रसिद्धी शत्रुदल जीतनेसे उतनी नहीं होती जितनी अपनी प्रजाके हृदय-मन्दिरमें घर बनानेसे । विक्रम और भोजकी लड़ाइयोंका लोग नामतक भूल गये हैं। परन्तु उनके प्रजाप्रेमकी स्मृति अबतक बनी हुई है। __ ब्राह्मणों के ऊपर विशेष कृपाकी दृष्टि थी। बहुतसे ब्राह्मणोंको माफी ज़मीन मिली हुई थी और जिनसे लगान लिया भी जाता था उनको और जातियोंकी अपेक्षा कम देना पड़ता था। अपने जीवनकालमें ही इन्होंने अपने पुत्रोंको राज्यके भिन्न भिन्न विभागोंमें शासक नियत कर दिया था। जब बंगशकी लड़ाई जगतराजसे हुई उसके पीछे इन्होंने इस विमाग-क्रमको सम्पूर्ण कर दिया। इस बातकी आशा न थी कि राज्य किसी एक पुत्रके पास रह सकेगा और न यही सम्भव प्रतीत होता था कि, यदि कई पुत्रों में राज्य बाँटा भी जाय तो वे आपसमें मिलकर रहेंगे और मुसलमानोंके आक्रमणोंको रोक सकेंगे। इसलिये इस बातकी आवश्यकता पड़ी कि For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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