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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मुगलोंसे अन्तिम युद्ध । - - - इस भावने युद्ध में अपना फल दिखलाया। सबेरा होते ही युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोपहरतक किसी दलकी प्रधानता प्रतीत न हुई थी प्रत्युत् बुंदेलोंकी कुछ बढ़तीहीसी दीखती थी। परन्तु मध्याह्रके पश्चात् रङ्ग बदल गया। ये पीछे हटने लगे। संध्या होते होते इनके पाँव उखड़ गये। छत्रसाल, बलदिवान तथा अन्य सरदारोंने लाख लाख सम. झाया पर सिपाही न सँभले । विवश होकर छत्रसालको भी क्षेत्र छोड़ना पड़ा। युद्धस्थलसे कुछ दूर पीछे हटकर इन्होंने सेनाको सँभाला। वह बड़ी चिन्ताका समय था। यदि इसी प्रकारकी दो एक लड़ाइयाँ और होती तो बना बनाया काम बिगड़ जाता। वर्षोंका उद्योग मिट्टी में मिल जाता | बुन्देलोंकी कीर्ति और हिन्दुओंकी श्राशाओका एक साथ ही लोप हो जाता। छत्रसालने, यह सब समझ बूझकर, सिपाहियोको आश्वासन देना प्रारम्भ किया। वह समय क्रोध करनेका न था, शील और धैर्यकी आवश्यकता थी। इन्होंने सैनिकोंका किसी प्रकारले तिरस्कार न किया। उनको उनके पूर्वजोंके और स्वयं उनके कृत्योंकी स्मृति दिलायी। जिन जिन कठिनाइयोंका सहनकर इन्होंने अपने वर्तमान स्वातंत्र्यका सम्पादन किया था उनका कथन करते हुए महाराजने उनका ध्यान उस परिस्थितिकी ओर भी स्त्रींचा जो मुग़लोंके पुनरभ्युदयकी अवस्थामें उनकी होगी। हिन्दू-धर्म, हिन्दू-रमणियों, हिन्दू बीरोंके साथ जो कदाचार यवन किया करते थे वह उनसे छिपा न था । महाराजने उसकी भी उन्हें स्मृति दिलायी और अन्तमें धर्मयुद्धके अक्षय्य लाभकी ओर उनका चित्त प्राकर्षित किया। भगवान्ने गीतामें अर्जुनसे कहा है For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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