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कृष्ण
कृष्ण
कुलमें बलराम और श्रीकृष्णरूपसे अवतीर्ण हुए ( आदि० २ अध्याय) । इन भगवान् वासुदेवने विन्दुसरोवरपर ६३ । १००-१०४)। सम्पूर्ण देवताओं एवं इन्द्रका भगवान् धर्मपरम्पराकी रक्षाके लिये बहुत वर्षांतक निरन्तर श्रद्धा श्रीहरिसे अवतार ग्रहण करने की प्रार्थना और भगवान्की पूर्वक यज्ञ किया था (सभा०३।१६)। युधिष्ठिरको स्वीकृति ( आदि०६४ । ५१-५४)। देवताओंके भी राजसूय यज्ञके लिये इनकी सम्मति (सभा० १४ अध्याय)। देवता, सनातन पुरुष, नारायणके ही अंशस्वरूप प्रतापी जरासंधके वधके विषयमें इनकी युधिष्ठिर और वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण मनुष्योंमें अवतीर्ण हुए थे( आदि. भीमसेनसे बातचीत ( सभा० १५ । १४-२५ )। ६७ । १५१)। अपने श्याम और श्वेत दो प्रकारके इनके द्वारा अर्जुनकी बातका अनुमोदन और जरासंधकी केशोंको द्वारमात्र बनाकर सच्चिदानन्दधन नारायणने उत्पत्तिका वर्णन ( सभा० १७ अध्याय)। जरासंधस्वयं ही अपनेको पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण रूपसे वधके लिये भीम और अर्जुनके साथ ब्राह्मण-रूप धारणकर प्रकट किया (आदि०१९६ ॥३२-३३)। वृष्णिवंशियों- इनकी मगध-यात्रा (सभा० २० अध्याय)। इनके सहित इनका द्रौपदीके स्वयंवरमें आगमन (आदि. द्वारा मगधकी राजधानीकी प्रशंसा ( सभा० २१ । १८५ । १६-२०)। इनका स्वयंवरमें आये हुए १-११) । इनका जरासंधके साथ संवाद (सभा० ब्राह्मणवेषधारी पाण्डवोंको पहचानना और बलरामजी- २१ । ४९-५४)। निरपराध कैद किये हुए राजाओंको संकेतसे बताना (आदि० १८६। ८-१०)। द्रौपदी- को छोड़ देनेके लिये इनकी जरासंधको चेतावनी स्वयंवरमें भीम और अर्जुनके विषयमें इनका बलरामजीसे ( सभा० २२ । ७-२६ )। जरासंधके वधके लिये वार्तालाप (आदि. १८८ । २०-२३ के बाद दाक्षिणात्य इनका भीमको संकेत ( सभा० २४ । ५ के बाद पाठ)। पाण्डवोंसे मिलने के लिये बलरामसहित इनका दाक्षिणात्य पाठ ) । इनके द्वारा जरासंध-पुत्र सहदेवका कुम्भकारके घरमें आगमन (आदि० १९० । १८)। राज्याभिषेक ( सभा० २४ । ४३)। राजसूय यज्ञके द्रौपदीके विवाहके अवसरपर इनके द्वारा पाण्डवोंको उपलक्ष्यमें इनके द्वारा युधिष्ठिरको विपुल धनराशिकी विविध उपहारोंकी भेंट ( आदि० १९८ । १३-१९)। भेंट ( सभा. ३३ । १३)। राजसूय यज्ञमें भीष्मके पाण्डवोंको द्रुपद नगरसे हस्तिनापुर जानेके लिये इनकी आदेशपर सहदेवद्वारा इनकी अग्रपूजा ( सभा० सम्मति ( आदि० २०६ । ६)। पाण्डवोंके निवासके ३६ । ३० )। इनके प्रति शिशुपालके आक्षेपपर्ण वचन लिये दिव्य नगर-निर्माणके हेतु इनकी इन्द्रको प्रेरणा (सभा० ३७ अध्याय)। भीष्मद्वारा इनकी महिमाका ( आदि० २०६ । २८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। वर्णन (सभा० ३८ । ६-२९ )। भगवान् श्रीकृष्णके प्रभास क्षेत्रमें इनका अर्जुनके साथ मिलन और रैवतक
अवतारका प्रकृतिपर प्रभाव; अवतारकालमें महर्षियों, पर्वतपर विश्राम ( आदि०२१७ । ३-८)। अर्जुनको देवर्षियों आदिका आगमन तथा इन्द्रद्वारा भगवान्से सुभद्राहरणके लिये इनकी सम्मति (आदि० २१८ । प्रार्थना (सभा० ३८ । पृष्ठ ७९७ )। वसुदेवजीका नव२३)। सुभद्राहरणसे कुपित हुए वृष्णिवंशियोंको इनकी जात शिशु श्रीकृष्णको कंसके भयसे गोकुलमें नन्दगोपके सान्त्वना ( आदि. २२० । १-११)। दहेजरूपमें ___ घर छिपा देना (सभा० ३८ । पृष्ठ ७९८)। इनके पदाविपुल धनराशि लेकर इनका इन्द्रप्रस्थ नगरमें आगमन घातसे दही आदिके मटुकोंसे भरे छकड़ेका
और भेट समर्पण ( आदि० २२०।२७-५२)। अर्जुन- उलट जाना ( सभा० ३८ । पृष्ठ ७९८ ) । के साथ इनका यमुनाजीमें जल-विहार (आदि० २२१ । इनके द्वारा पूतनाका वध, यशोदा मैयाका इन्हें १४-२०)। खाण्डववन-दाहके लिये इनसे अग्निकी ऊखलमें बाँधना, इनके द्वारा यमलार्जुनका उद्धार प्रार्थना (आदि० २२२ । २-११)। अग्निद्वारा इनको (सभा०३८ । पृष्ठ ७९८)। इनकी सात वर्षकी अवस्थामें वेषदिव्य चक्रका दान (आदि० २२४ । २३)। वरुणद्वारा भूषा, खेल-कूद, मनोरञ्जन और इनके द्वारा वत्स-चारण इनको कौमोदकी गदाकी भेंट (आदि० २२४ । २८)। (सभा० ३८ । पृष्ठ ७९९)। श्रीकृष्णका अकेले वृन्दावनमें खाण्डववनदाहके समय इनका इन्द्र आदि देवताओंके जाना इनकी शोभा और वन-विहार तथा इनके द्वारा कालिय साथ युद्ध (आदि० २२६ अध्याय)। अर्जुनके द्वारा नागका मानमर्दन एवं अन्यत्र प्रेषण; इनका बलभद्रजीके अभयदान देनेपर इनका मयासुरको जीवनदान (आदि. साथ वन-विहार ( सभा० ३८ । पृष्ठ ८००)। इनके द्वारा २२७ । ४४-४५)। अर्जुनके साथ निरन्तर प्रेम-वृद्धिके इन्द्रका मान-भङ्ग और गोवर्धन-धारण । देवेन्द्रद्वारा इनका लिये इनकी इन्द्रसे वर-याचना (आदि० २३३ । १३)। गोविन्द' नामकरण और गवेन्द्र' पदपर अभिषेक । इनकी मयासुरको सभाभवन-निर्माणके लिये आज्ञा इनके द्वारा अरिष्टासुर, केशीनामक दैत्य, आन्ध्रदेशीय (सभा० १०।१३)। इनकी द्वारकायांत्रा (सभा० मल्ल चाणूर, कंसके सेनापति सुनामा' का वधः इनके
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