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कृपी
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द्वारा शिखण्डीकी पराजय ( कर्ण० ५४ । २३)। (२) एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा पीती है चित्रकेतु-पुत्र सुकेतुका वध ( कर्ण० ५४ । २८)। (भीष्म० ९ । १७ )। युधामन्युको परास्त करना (कर्ण० ६१ । ५५-५६)। कृश-(१) शृङ्गीऋषिका एक मित्र, जो धर्मके लिये कष्ट इनके द्वारा कुलिन्द-राजकुमारका वध (कर्ण० ८५।। उठानेके कारण सदा कृश ही रहा करता था (आदि० ६) । दुर्योधनको सन्धिके लिये समझाना (शल्य० ४० । २७-२८)। इनका शृङ्गीऋषिको उत्तेजित करना ४ अ.)। द्वैपायन सरोवरपर जाकर दुर्योधनको युद्धके (आदि. ४० । २९-३२ ) । इनका शृङ्गीऋषिको लिये उत्साहित करना (शल्य० ३०। ९-१४)। उनके पिताके कंधेपर राजा परीक्षितद्वारा सर्प डालनेका सेनासहित युधिष्ठिरके पहुँचनेपर वहाँसे हट जाना (शल्य. समाचार सुनाना ( आदि. ४१ । ५-९)। ३०। ६३) । दुर्योधनके कहनेसे अश्वत्थामाको सेनापति- (२) ऐरावतकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके पदपर अभिषिक्त करना ( शल्य०६५ । ४३)। दैवकी सर्पयज्ञमें दग्ध हो गया था (आदि०५७ । ११)। प्रबलता बताते हुए अश्वत्थामाको सत्पुरुषोंसे सलाह लेनेकी (३) एक दिव्य महर्षि, जो शरशय्यापर पड़े हुए राय देना ( सौप्तिक० २ अ० ) । अश्वत्थामाको भीष्मजीको देखनेके लिये आये थे (अनु० २६ । ७)। प्रातःकाल युद्ध करनेके लिये समझाना (सौप्तिक. ४।।
०४। कृशक-एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग. १०३ । १५)। १-२०% सौप्तिक. ५। १-१७)। अश्वत्थामाके साथ
कृशाश्व-यमकी सभामें उपस्थित धर्मराजकी उपासना रातमें युद्धके लिये जाना ( सौप्तिक० ५। ३०)। इनके द्वारा पाण्डव-शिविरसे भागे हुए योद्धाओंका वध
करनेवाले एक नरेश ( सभा० ८ । १७)। ये उत्तर(सौप्तिक.८।१०६-१०७)। शिविरमें आग लगाना
गोग्रहणके समय अर्जुनका कृपाचार्य एवं अन्य कौरव(सौप्तिक० ८।१०९-११०)। दुर्योधनकी दशा
वीरोंके साथ होनेवाले युद्धको देखनेके लिये इन्द्रके देखकर विलाप करना (सौप्तिक० ९ । १०-१७)।
विमानमें बैठकर आये थे ( सभा० ५६ । १०)। धृतराष्ट्र और गान्धारीको कौरव-पाण्डवोंके विनाशकी
इनका प्रातःसायं स्मरण कीर्तन करनेवाला मनुष्य धर्मसूचना देना (स्त्री० ११।५-१७) । समाचार बताकर
फलका भागी होता है ( अनु० १६५ । ४९)। हस्तिनापुरकी ओर चला जाना (स्त्री०११।२१)। कृषीवल-इन्द्रकी सभामै बैठकर उनकी उपासना करनेइन्हें द्रोणाचार्यसे खन-विद्या प्राप्त होनेका प्रसंग (शान्ति वाले एक प्राचीन महर्षि (सभा०७।१३)। १६६।८१)। तपस्यासे सिद्धि या प्रतिष्ठा प्राप्त करने कष्ण-(१) सत्यवतीनन्दन द्वैपायन व्यास, जिन्हें शरीरका वाले लोगोंमें इनका भी नाम है (शान्ति० २९६ । रंग साँवला होनेके कारण लोग 'कृष्ण' भी कहते थे १४ ) । वनमें जाते समय धृतराष्ट्रका कृपाचार्यको (आदि० १०४ । १५)।( देखिये व्यास ) युधिष्ठिरके हाथों सौंपकर अपने साथ जानेसे लौटाना
(२) एक नाग, जो वरुणसभामें रहकर वरुण देवताकी (आश्रम० १६ । ५)। महाप्रस्थानसे पूर्व युधिष्ठिरने उपासना करते हैं ( सभा० ९ । ८)। (३) अर्जुनका कृपाचार्यकी पूजा करके उन्हें परीक्षित्को शिष्यरूपमें सौंपा
एक नाम (विराट०४४।२२)।(४) स्कन्दका एक (महाप्रस्थान० १ । १४-१५)।
सैनिक (शल्य. ४५५७)। (५) एक महर्षि, जो महाभारतमें आये हुए कृपाचार्यके नाम-आचार्य, उत्तरायणके आरम्भमें शर-शय्याशायी भीष्मजीको देखने के आचार्यसत्तम, भारताचार्य, ब्रह्मर्षि, शारद्वत, शरदत-सत,
लिये पधारे थे (शान्ति० ४७ । १२)। (६) भगवान् गौतम आदि ।
शिवका एक नाम ( अनु०१७। ४५) । (७) भगवान् कृपी-शरद्वान् ऋषिको पुत्री, कृपाचार्यकी बहन, द्रोणाचार्य- विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । ७२)।(८) ये
की पत्नी और अश्वत्थामाकी माता (आदि. ६३ । नारायणस्वरूप हैं, इनकी वन्दना करके महाभारतका १०७-१०८ ) । शान्तनुद्वारा इनका संवर्धन ( पालन- पाठ करनेका विधान (आदि० । । मङ्गलाचरण )। पोषण ) एवं समस्त संस्कार ( आदि. १२९ । १८)। ये श्रीकृष्ण' ही धर्ममय वृक्षके मूल हैं (आदि. १। द्रोणाचार्यका इन्हें धर्मपत्नीके रूपमें ग्रहण करना (आदि० १११)। विश्ववन्दित महायशस्वी भगवान् विष्णु जगत्के १२९ । ४६)। इनका मरे हुए द्रोणाचार्यके लिये रोना जीवोंपर अनुग्रह करनेके लिये वसुदेवजीके द्वारा देवकीके (स्त्री० २३ । ३४-३७)।
गर्भसे प्रकट हुए (आदि० ६३। ९९)। आदि-अन्तसे महाभारतमें आये हुए इनके नाम-शारद्वती, कृपी, रहित, सबके आत्मा, अव्यय, अनन्त, अचल, अजन्मा, गौतमी आदि।
नारायणस्वरूप, अनादि, सर्वव्यापी, परम पुरुष पूर्णतम कृमि-(१) एक क्षत्रियकुल ( उद्योग० ७४ । १३)। परमात्मा ही धर्मकी वृद्धिके लिये अन्धक और वृष्णि
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