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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कुरुजाङ्गल www.kobatirth.org ( ७५ ) है ( वन० ८३ | १–३, ७-८ ) । कुरुक्षेत्रकी सीमा के भीतर एक पवित्र स्थानमें मान्धाताने यज्ञ किया था ( वन० १२६ । ४५ ) । मुद्गलं नामक जितेन्द्रिय ऋषि, जो उच्छवृत्ति से जीविका चलाते थे, कुरुक्षेत्रमें ही रहते थे ( वन० २६० । ३ ) । भीष्म और परशुरामका युद्ध कुरुक्षेत्रमें ही हुआ था ( उद्योग० १७८ । ७२ ) । कौरव और पाण्डव युद्धके लिये कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए और वहीं श्रीकृष्णके मुखसे अर्जुनको गीताका उपदेश प्राप्त हुआ ( भीष्म० २५ अध्यायसे ४२ अ० तक ) । महाभारत-युद्धका मैदान कुरुक्षेत्र ही था ( भीष्मपर्व शल्यपर्वतक । इसी क्षेत्र में भीष्मजी शरशय्यापर पड़े थे ( भीष्म० ११९ । ९२ ) । कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी 'ओघवती' के रूपमें प्रकट हुई ( शल्य० ३८ । ३-४ ) । पहले यह समन्तपञ्चक क्षेत्र था। महाराज कुरुके समय से इसका नाम कुरुक्षेत्र हुआ । इसकी सीमाका निर्धारण तथा महिमा ( शल्य० ५३ अ० ) । बलरामजी - द्वारा इसकी महिमाका वर्णन ( शल्य० ५५ । ६ – १० ) । भीमसेन और दुर्योधनका युद्ध तथा दुर्योधनका वध भी इसी क्षेत्र में हुआ ( शल्य ० ५५ अ० से ५८ अ० तक ) । अतिथिसत्कारपरायण अग्निपुत्र सुदर्शन अपनी पत्नी ओघवती के साथ कुरुक्षेत्रमें ही रहते थे ( अनु० २ । ४०)। कुरुजाङ्गल अथवा कुरु - भारतवर्षका सुविख्यात जनपद, जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी । कुरुके नामसे ही कुरुजाङ्गल देशकी प्रसिद्धि हुई ( आदि० ९४ । ४९ ) । धृतराष्ट्र तथा पाण्डुके जन्मके बाद इस देशकी सर्वाङ्गीण उन्नतिका वर्णन ( आदि० १०८ । १ - १६ )। कुरुतीर्थ कुरुक्षेत्र में तैजसतीर्थसे पूर्वभागमें स्थित एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे ब्रह्मलोककी प्राप्ति होती है ( वन० ८३ । १६५) । कुरुपाञ्चाल - कुरु और पाञ्चाल नामक भारतवर्षके दो जनपद ( भीष्म० ९ । ३९ ) । कुरुवर्णक-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५६ ) । कुरुविन्द - एक भारतीय जनपद तथा वहाँके निवासी ( भीष्म० ८७ ।९ ) । कुलत्थ - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ६६ ) । कुलधर्म - सनातनकालते चले आनेवाले कुलाचार ( भीष्म० २५ । ४० ) । कुलपांसन राजा - ( उद्योग० ७४ अ० में ) । कुलम्पुन - एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे मानव अपने समूचे कुलको पवित्र कर देता है ( वन० ८३ । १०४ )। कुलम्पुना- एक नित्य स्मरणीय नदी (अनु० १६५ | २० ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुशवान् कुलाचल-महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, ऋक्षवान्, विन्ध्य और पारियात्र -- ये सात कुलपर्वत हैं ( भीष्म ०९।११) | कुलिक-एक प्रमुख नाग, जो कद्दूका पुत्र है ( आदि० ६५ । ४१ ) । कुलिन्द - ( १ ) एक प्राचीन राजा ( सभा० १४ । २६ ) । ( २ ) प्राचीन देश ( सभा० २६ । ३; भीष्म० ९ । ५५, ६३ )। कुल्या- एक तीर्थ, यहाँ उपवाससे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है (अनु० २५ । ५६ ) । कुवलयापीड - ऐरावत- कुलोत्पन्न कंसका हाथी । भगवान् श्रीकृष्णद्वारा इसका वध ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०१, कालम १ ) । कुवलाश्व - इक्ष्वाकुवंशी महाराज बृहदश्व के पुत्र इनके इक्कीस हजार पुत्र थे ( वन० २०२ । ५ ) । इनका grat मारनेके लिये प्रस्थान ( वन० २०४ । ११ ) । इनमें भगवान् विष्णुके तेजका प्रवेश (वन० २०४ । १३ ) | इनके द्वारा धुन्धुका वध ( वन० २०४ । ३२ ) । इन्हें देवताओंसे वर प्राप्ति ( वन० २०४ । ३६ - ३८ ) । इनका धुन्धुमार नाम पड़नेका कारण ( वन० २०४ । ४२)। कुवीरा - एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा पीती है ( भीष्म ० ९।२७ ) । कुश - एक प्राचीन कालके महर्षि, जो अग्निदेवके समान प्रतापी थे, ये ब्रह्माजीके पुत्र और विश्वामित्र के प्रपितामद्द थे ( आदि० ७४ । ६९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । कुशचीरा - एक नदी, जिसका जल भारतके निवासी पीते हैं ( भीष्म ० ९ । २३ ) । कुशद्वीप - सुप्रसिद्ध सात द्वीपोंमेंसे एक। इसका विशेष वर्णन ( भीष्म० १२ । ६-१६ ) । कुशधारा - एक नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २४ ) । कुशनाभ - महर्षि कुशके धर्मात्मा पुत्र, गाधिके पिता और विश्वामित्र के पितामह ( आदि० ७४ । ६९ के बाद दाक्षिजात्य पाठ ) । कुशप्लवन - एक तीर्थ, जहाँ स्नान और तीन रात निवास से अश्वमेध यज्ञका फल सुलभ होता है ( वन० ८५ । ३६ ) । कुशल- क्रौञ्चपर्वतके निकटका एक देश ( भीष्म० १२ । २१ ) । For Private And Personal Use Only कुशल्य- एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४० ) । कुशवती - देवलोककी एक नगरी ( वन० १६१ । ५४ ) । कुशवान् - मानस सरोवरके निकटवर्ती, उज्जानक सरोवरका एक हद ( वन० १३० । १७-१८ ) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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