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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुण्डभेदी ( ७० ) एक नाग (सभा०९।९) (३) एक मेघ, अपने भक्त कुतप-श्राद्धमें प्रशस्तकाल (दिनके आठवें भागमें जब ब्राह्मणके लिये यक्षराज मणिभद्रसे इसकी प्रार्थना (शान्ति. सूर्यका ताप घटने लग जाता है, उस समयका नाम २७१ । १९-२०)। ब्राह्मणके लिये धर्मका वरदान कुतप है। उसमें पितरोंके लिये दिया हुआ दान अक्षय दिलाना (शान्ति० २७१ । २४-२६) । तपःसिद्ध हुए होता है (आदि० ९३ । १३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ब्राह्मणसे मिलकर अन्तर्धान होना (शान्ति०२७१। (यह काल बारह बजेके बाद आता है । ) ५२)। कुनदीक-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ५८)। कुण्डभेदी-धृतराष्ट्रका एक पुत्र (आदि० ६७ । १०४)। कुन्तल-(१) दक्षिण भारतीय कुन्तल जनपदके निवासी भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण० १२७ । ६०)। (सभा०३४ । ११, उद्योग० १४० । २६)। कुन्तलदेशीय कुण्डल-(१) कौरवकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके योद्धा (भीष्मः ५१। १२, कर्ण. २० । १०) । सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । १३)। (२) (२) दक्षिण भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६३)। ५२-५९)। कुण्डलाहरणपर्व-वनवासके एक अवान्तर पर्वका नाम कुन्ति-(१) कुन्ति देशके निवासी राजा और योद्धा (सभा० (अध्याय ३०० से ३१० तक)। १४ । २६)। (२) एक भारतीय जनपद (सभा० कुण्डली-(१) गरुडकी संतानोमैंसे एक ( उद्योग १४ । २७ भीष्म० ९ । ४०-४३)। १०१।९)। (२) एक नदी, जिसका जल भारतीय कुन्तिभोज-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो शूरसेनके फुफेरे प्रजा पीती है (भीष्म ९।२१)।(३) धृतराष्ट्रका भाई थे (आदि० ६७ । १३०)। शूरसेनद्वारा इनके लिये एक पुत्र, इसका दूसरा नाम 'कुण्डाशी' था (यह अपनी पुत्री पृथाको गोद देना (आदि०६७ । १३१)। नाम आदि०६७ । ९७ में आया है)। भीमसेनद्वारा सहदेवद्वारा दक्षिण-दिग्विजयके समय उनपर आक्रमण इसका वध (भीष्म० ९६ । २४)। (४) भगवान् और इनका सहर्ष उनके शासनको स्वीकार करना विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । ११०)। (सभा० ३१ । ६)। ये युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें कुण्डारिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । पधारे थे (सभा० ३४ । १२)। इनका दुर्वासाकी १५)। सेवाके लिये अपनी पुत्री कुन्तीको उपदेश (वन० ३०३ । कुण्डाशी-धृतराष्ट्रका एक पुत्र (दि. ११६ । १४)। १३-२९) । (२) कुन्तिभोजके पुत्र भी इसी नामसे 'कुण्डली' नामसे भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म० प्रसिद्ध थे; इनका दूसरा भाई पुरुजित् था। ये दोनों ९६।२४)। पाण्डवोंके मामा थे (कर्ण० ६ । २२)। महाभारत कुण्डिक-सोमवंशी महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं धृतराष्ट्रके प्रथम दिनके युद्धमे कुन्तिभोज और इनके पुत्र का विन्द प्रथम पुत्र (आदि० ९४ । ५८)। और अनुविन्दके साथ युद्ध (भीष्म० ४५।७२-७६)। धृष्टद्युम्ननिर्मित क्रौञ्चव्यूहमें नेत्रके स्थानमें कुन्तिभोज कुण्डिन-(१) पूरुवंशी महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं और शैव्य खड़े किये गये थे (भीष्म० ५० । ४७)। धृतराष्ट्रके पञ्चम पुत्र (आदि० ९४ । ५४)। (२) मकरव्यूहमें कुन्तिभोज और शतानीक पेरोंके स्थानमें खड़े कुण्डिन' नाम से प्रसिद्ध पुर या नगर, जो विदर्भदेशकी थे (भीष्म० ७५ । ११ ) । इनके घोड़ोंका वर्णन राजधानी था (वन० ६०, ७३, ७७ अ० में उद्योग (द्रोण० २३ । ४६)। अलम्बुषके साथ युद्ध (द्रोण. १५८ अ० में)। १६ । १८३) । अश्वत्थामाद्वारा इनके दस पुत्र मारे गये कुण्डीविष-एक भारतीय जनपद( भीष्म०५०। ५०)। (द्रोण० ९६ । १८-२०)। अर्जुनके मामा कुन्तिभोज कुण्डीवृष-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५६ । ९)। और पुरुजित्के द्रोणद्वारा मारे जाने की चर्चा (कर्ण. कुण्डोदपर्वत-एक तीर्थभूत पर्वत, जहाँ राजा नलको जल ६। १२)। और शान्ति मिली (वन० ८७ । २५)। कुन्ती-शूरसेनकी पुत्री, राजा कुन्तिभोजकी (दत्तक) कुण्डोदर-(१) एक प्रमुख नाग (आदि० ३५।१६)। कन्या पृथा (आदि० ६३ । १४ आदि० १०९ । ५)। (२) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० (६७ । ९७)। ये सिद्धि नामक देवीके अंशसे उत्पन्न हुई थीं (आदि. कुण्डधार' नामसे भीमसेनद्वारा इसका वध ६७ । १६०)। शूरसेनद्वारा इनका कुन्तिभोजके लिये (भीष्म ८८ । २३)। (३) पूरुवंशी महाराज गोदरूपमें दान (आदि० ११०३) पिता कुन्तिभोजके कुरुके पौत्र एवं जनमेजयके छठे पुत्र ( आदि० घरमें देवताओं तथा अतिथियोंकी पूजा-सत्कारके ९४ । ५५)। लिये इनकी नियुक्ति ( आदि. ११०।४)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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