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कुण्डभेदी
(
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एक नाग (सभा०९।९) (३) एक मेघ, अपने भक्त कुतप-श्राद्धमें प्रशस्तकाल (दिनके आठवें भागमें जब ब्राह्मणके लिये यक्षराज मणिभद्रसे इसकी प्रार्थना (शान्ति. सूर्यका ताप घटने लग जाता है, उस समयका नाम २७१ । १९-२०)। ब्राह्मणके लिये धर्मका वरदान कुतप है। उसमें पितरोंके लिये दिया हुआ दान अक्षय दिलाना (शान्ति० २७१ । २४-२६) । तपःसिद्ध हुए होता है (आदि० ९३ । १३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ब्राह्मणसे मिलकर अन्तर्धान होना (शान्ति०२७१। (यह काल बारह बजेके बाद आता है । ) ५२)।
कुनदीक-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ५८)। कुण्डभेदी-धृतराष्ट्रका एक पुत्र (आदि० ६७ । १०४)।
कुन्तल-(१) दक्षिण भारतीय कुन्तल जनपदके निवासी भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण० १२७ । ६०)।
(सभा०३४ । ११, उद्योग० १४० । २६)। कुन्तलदेशीय कुण्डल-(१) कौरवकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके योद्धा (भीष्मः ५१। १२, कर्ण. २० । १०) ।
सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । १३)। (२) (२) दक्षिण भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६३)।
५२-५९)। कुण्डलाहरणपर्व-वनवासके एक अवान्तर पर्वका नाम कुन्ति-(१) कुन्ति देशके निवासी राजा और योद्धा (सभा० (अध्याय ३०० से ३१० तक)।
१४ । २६)। (२) एक भारतीय जनपद (सभा० कुण्डली-(१) गरुडकी संतानोमैंसे एक ( उद्योग १४ । २७ भीष्म० ९ । ४०-४३)।
१०१।९)। (२) एक नदी, जिसका जल भारतीय कुन्तिभोज-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो शूरसेनके फुफेरे प्रजा पीती है (भीष्म ९।२१)।(३) धृतराष्ट्रका भाई थे (आदि० ६७ । १३०)। शूरसेनद्वारा इनके लिये एक पुत्र, इसका दूसरा नाम 'कुण्डाशी' था (यह
अपनी पुत्री पृथाको गोद देना (आदि०६७ । १३१)। नाम आदि०६७ । ९७ में आया है)। भीमसेनद्वारा सहदेवद्वारा दक्षिण-दिग्विजयके समय उनपर आक्रमण इसका वध (भीष्म० ९६ । २४)। (४) भगवान्
और इनका सहर्ष उनके शासनको स्वीकार करना विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । ११०)।
(सभा० ३१ । ६)। ये युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें कुण्डारिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ ।
पधारे थे (सभा० ३४ । १२)। इनका दुर्वासाकी १५)।
सेवाके लिये अपनी पुत्री कुन्तीको उपदेश (वन० ३०३ । कुण्डाशी-धृतराष्ट्रका एक पुत्र (दि. ११६ । १४)। १३-२९) । (२) कुन्तिभोजके पुत्र भी इसी नामसे
'कुण्डली' नामसे भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म० प्रसिद्ध थे; इनका दूसरा भाई पुरुजित् था। ये दोनों ९६।२४)।
पाण्डवोंके मामा थे (कर्ण० ६ । २२)। महाभारत कुण्डिक-सोमवंशी महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं धृतराष्ट्रके
प्रथम दिनके युद्धमे कुन्तिभोज और इनके पुत्र का विन्द प्रथम पुत्र (आदि० ९४ । ५८)।
और अनुविन्दके साथ युद्ध (भीष्म० ४५।७२-७६)।
धृष्टद्युम्ननिर्मित क्रौञ्चव्यूहमें नेत्रके स्थानमें कुन्तिभोज कुण्डिन-(१) पूरुवंशी महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं
और शैव्य खड़े किये गये थे (भीष्म० ५० । ४७)। धृतराष्ट्रके पञ्चम पुत्र (आदि० ९४ । ५४)। (२)
मकरव्यूहमें कुन्तिभोज और शतानीक पेरोंके स्थानमें खड़े कुण्डिन' नाम से प्रसिद्ध पुर या नगर, जो विदर्भदेशकी
थे (भीष्म० ७५ । ११ ) । इनके घोड़ोंका वर्णन राजधानी था (वन० ६०, ७३, ७७ अ० में उद्योग
(द्रोण० २३ । ४६)। अलम्बुषके साथ युद्ध (द्रोण. १५८ अ० में)।
१६ । १८३) । अश्वत्थामाद्वारा इनके दस पुत्र मारे गये कुण्डीविष-एक भारतीय जनपद( भीष्म०५०। ५०)।
(द्रोण० ९६ । १८-२०)। अर्जुनके मामा कुन्तिभोज कुण्डीवृष-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५६ । ९)।
और पुरुजित्के द्रोणद्वारा मारे जाने की चर्चा (कर्ण. कुण्डोदपर्वत-एक तीर्थभूत पर्वत, जहाँ राजा नलको जल
६। १२)। और शान्ति मिली (वन० ८७ । २५)।
कुन्ती-शूरसेनकी पुत्री, राजा कुन्तिभोजकी (दत्तक) कुण्डोदर-(१) एक प्रमुख नाग (आदि० ३५।१६)। कन्या पृथा (आदि० ६३ । १४ आदि० १०९ । ५)। (२) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० (६७ । ९७)। ये सिद्धि नामक देवीके अंशसे उत्पन्न हुई थीं (आदि.
कुण्डधार' नामसे भीमसेनद्वारा इसका वध ६७ । १६०)। शूरसेनद्वारा इनका कुन्तिभोजके लिये (भीष्म ८८ । २३)। (३) पूरुवंशी महाराज गोदरूपमें दान (आदि० ११०३) पिता कुन्तिभोजके कुरुके पौत्र एवं जनमेजयके छठे पुत्र ( आदि० घरमें देवताओं तथा अतिथियोंकी पूजा-सत्कारके ९४ । ५५)।
लिये इनकी नियुक्ति ( आदि. ११०।४)।
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