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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काम्यकवन ( ६४ ) कालकवृक्षीय ९४ । ३०)। सुदक्षिणका पिता भी काम्बोज या १२-१४)। पराक्रमी सहस्रबाहुका अग्निदेवको भिक्षा काम्बोजराज कहलाता था (द्रोण. ९२ । ६१)। देना (शान्ति०४९ । ३८)। आपव मुनिद्वारा इसे (३) काम्बोज देशका एक प्राचीन नरेश, महाराज शापकी प्राप्ति (शान्ति० ४९ । ४३)। परशुरामद्वारा धुन्धुमारसे इन्हें खङ्गकी प्राप्ति हुई (शान्ति० १६६।७७) इसकी भुजाओंका उच्छेद (शान्ति० ४९ । ४०)। इसके वंशका संहार (शान्ति. ४९ । ५२-५३)। काम्यकवन-एक वनका नाम, वनवासकालमें पाण्डवोंने इसके द्वारा मांसभक्षणनिषेध (अनु० ११५। ६०)। यहाँ निवास किया था। यह ऋषि-मुनियोंको बहुत प्रिय इसकी दत्तात्रेयजीसे वरयाचना (अनु० १५२ । ७था। पाण्डवोका काम्यकवनमें प्रवेश तथा विदुरजीका १०)। वरप्राप्तिके पश्चात् इसके अहंकारयुक्त वचनवहाँ जाकर उनसे मिलना और बातचीत करना (वन. ब्राह्मणकी अपेक्षा क्षत्रियकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन ( अनु. ५ अ० में )। संजयका काम्यकवनमें जाकर विदुरको १५२। १५-२२)। वायुदेवके कहनेसे इसका ब्राह्मणबुला ले आना ( वन० ६।११-१७)। युधिष्ठिर की महत्ता स्वीकार करना (अनु. १५७ । २४-२६)। आदिका दैतवनसे काम्यकवनमें प्रवेश, काम्यकवनमें इसका अभिमानवश समुद्रको बाणोंसे आच्छादित करना पाण्डवोंके पास भगवान् श्रीकृष्ण, मुनिवर मार्कण्डेय तथा (आश्व० २९ । ३)। परशुरामजीद्वारा इसका वध नारदजीका आगमन (वन० १८२-१८३ अ० में)। (आश्व० २९ । ११)। पाण्डवोंका काम्यकवनमें गमन (वन०२५८ अ० में)। काम्या-एक स्वर्गीय अप्सरा, जो अर्जनके जन्मोत्सव में महाभारतमे आये हुए कार्तवीर्य अर्जुनके नाम-अनूप नृत्य करने आयी थी (भादि. १२२ । ६४)। पति, अर्जुन, हैहय, हैहयेन्द्र, हैहयाधिपति, हैहयर्षभ, हैहयश्रेष्ठ आदि । कायव्य-एक डाकू, निषादपुत्र, जो क्षत्रिय पिता और कार्तस्वर-एक दैत्य, जो कभी इस पृथ्वीका अधिपति था; निषादजातीय मातासे उत्पन्न हुआ था। इसके किंतु इसे छोड़कर चल बसा (शान्ति० २२७ । ५२)। सदाचारका वर्णन ( शान्ति० १३५ । २-१)। लुटेरोंद्वारा सरदार होनेके लिये प्रार्थना करनेपर उसके । कार्तिकेय-भगवान् स्कन्दका एक नाम, कृत्तिकाओंने द्वारा उन्हें धर्मोपदेश ( शान्ति० १३५ । १३-२२)। इन्हें स्तन्य-पान कराया, अतः ये कार्तिकेय नामसे प्रसिद्ध हुए (अनु० ८५1८१-८२, अनु० ८६ । १३-१४)। कायशोधन तीर्थ-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ (विशेष देखिये स्कन्द) जाने और स्नान करनेसे शरीरकी शुद्धि होती है (वन. ८३ । ४२)। कासिक-एक प्राचीन देश, जहाँ निवास करनेवाली दासियाँ युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें सेवाकार्य करती थीं कारन्धम-दक्षिण समुद्रके समीपवर्ती तीर्थ ( पाँच नारी ( सभा० ५१ । ८)। तीर्थो से एक ) ( आदि० २१५ । ३ ) । यहाँ शापवश ग्राह बनकर रहनेवाली अप्सरा ( वर्गाकी सखी काष्णि-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मोत्सवमें उपस्थित का अर्जुनद्वारा उद्धार (भादि. २१५ । २१)। हुआ था (आदि०१२२। ५६)। कारपवन-सरस्वतीनदी-सम्बन्धी एक . प्राचीन तीर्थ का काल (१)-ध्रुव' नामक वसुके पुत्र--सबको अपना ग्रास बनानेवाले भगवान् काल ( आदि. ६६ । २१)। (शल्य. ५४ । १२)। ये स्कन्दके अभिषेकमें गये थे (शल्य० ४५ । १७)। कारस्कर-एक निन्द्य एवं त्याज्य देश, जहाँका धर्म दूषित (२) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभामें उपस्थित हो उनकी है (कर्ण० ४४ । ४३)। उपासना करते हैं (सभा०७।१४)। कारीष-महर्षि विश्वामित्रका एक ब्रह्मवादी पुत्र ( अनु० कालकक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६९)। ४ । ५५)। कालकण्ठ स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५। ६९)। कारूप- ( १ ) वैवस्वत मनुके छठे पुत्र (आदि. कालकवृक्षीय-एक प्राचीन ऋषि, जो इन्द्रकी सभामें ७५ । १६)। (२) एक प्राचीन देश, जहाँका राजा विराजमान होते हैं (सभा० ७ । १०)। इनका एक चोर-डाकुओंको मारनेवाला था। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें कौएको पिंजड़े में बाँधकर साथ लेना और कोसलराज उपस्थित हुआ था ( आदि० १८५ । १६)। क्षेमदर्शीके सारे राज्यमें वहाँका समाचार जाननेके लिये कार्तवीर्य-हैहयनरेश कृतवीर्यका पुत्र सहस्रबाहु अर्जुन, बारंबार चक्कर लगाना (शान्ति० ८२ । ६-७)। इसके प्रभाव तथा अत्याचारका वर्णन ( वन० ११५। लोगोंको वायसीविद्या सीलनेकी प्रेरणा देते हुए घूम-घूमकर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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