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सुरथा
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का समाचार सुनकर पिताकी मृत्युका स्मरण करके भयभीत हो प्राण त्याग दिया ( आश्व० ७८ । २८-३०)। सुरथा - राजा शिविकी माता ( वन० १९७ । २५ ) । सुरथाकार - कुशद्वीपका तीसरा वर्ष ( भीष्म ० १२ । १३ ) । सुरप्रवीर - तपनामधारी पाञ्चजन्य नामक अनिके पुत्र, जो
यज्ञमें विघ्न डालनेवाले पंद्रह उत्तरदेवों ( विनायकों ) मैंसे एक हैं (वन० २२० | १३ ) ।
सुरभि (सुरभी) - ( १ ) कामधेनु नामक गौ । इनका समुद्रसे प्राकट्य हुआ (आदि० १८ । ३६ के बाद दा० पाठ ) । इन्हें दक्षकी कन्या माना गया है। देवी सुरभिने कश्यपजी के सहवाससे एक गौको जन्म दिया, जिसका नाम नन्दन था । महर्षि नन्दिनीको अपनी होमधेनु के रूपमें प्राप्त किया था ( आदि० ९८ । ८-९ ) । ये ब्रह्माजीकी सभा में रहकर उनकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ । ४० ) । इनका अपने पुत्र बैलके लिये इन्द्रसेदुःख प्रकट करना ( वन० ९ । ९-१४ ) । नारदजीद्वारा मातलिसे इनकी तथा इनकी संतानोंका वर्णन ( उद्योग० १०२ अध्याय ) । इनके फेनसे बकराज राजधर्माको जीवनकी प्राप्ति ( शान्ति० १७२ । ३-५ ) । प्रजापतिके सुरभि - गन्धयुक्त श्वाससे इनकी उत्पत्तिका वर्णन ( अनु० ७७ । १७ ) । इनकी तपस्या और ब्रह्माजीसे इन्हें अमरत्व एवं गोलोकमें निवासकी प्राप्ति ( अनु० ८३ । २९-३९ ) । इनके निवासभूत गोलोककी दिव्यताका वर्णन ( अनु० ८३ । ३७–४४) । इनका कार्तिकेय को एक लाख गौओंकी भेंट देना ( अनु० ८६ । २३ ) । अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर इनका शपथ खाना
( अनु० ९४ । ४१ )। ( २ ) क्रोधवशाकी क्रोधजनित
कन्या, इसने दो कन्याओंको उत्पन्न किया । जिनके नाम थे— रोहिणी तथा गन्धर्वी ( आदि० ६६ । ६१, ६७ ) । सुरभिमानू - एक अमि, जिनके लिये मृत्युसूचक विलाप
सुनायी देने अथवा कुक्कुर आदिके द्वारा अग्निहोत्रकी
अग्निका स्पर्श हो जानेपर ‘अष्टाकपाल' पुरोडाश देनेका
विधान है ( चन० २२१ । २८ ) । सुरभीपत्तन — एक दक्षिणभारतीय जनपद, जिसे सहदेवने दक्षिण दिग्विजयके अवसरपर दूतोंद्वारा ही अपने अधीन कर लिया ( सभा० ३१ । ६८ ) । सुरवीथी - इन्द्रलोक में प्रसिद्ध नक्षत्रमार्ग ( बन० ४३ ।
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सुरस - एक कश्यपवंशी नाग ( उद्योग० १०३ | १६)। सुरसा - (१) क्रोधवशाकी क्रोधजनित कन्या, नाग तथा
पन्नग जातिके सर्पोंकी माता । इनकी तीन पुत्रियाँ थीं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- अनला, रुहा एवं वीरुधा ( आदि० ६६ । ६१, ७० ) । ये ब्रह्माजीकी सभा में उपस्थित होकर उनकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ | ३९) । ( २ ) एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्ममहोत्सव में नृत्य किया था ( आदि० १२२ । ६३ ) ।
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सुलभा
सुरहन्ता - तप नामधारी पाञ्चजन्य नामक अनिके पुत्र, जो यज्ञमें विघ्न डालनेवाले पंद्रह उत्तरदेवों (विनायकों ) मेंसे एक हैं (वन० २२० । १३ ) ।
सुरा - एक देवी, जो समुद्र ( वरुणालय) से प्रकट हुई ( आदि० १८ । ३५ ) । ये वरुणके द्वारा उनकी ज्येष्ठ पत्नी 'देवी' के गर्भ से उत्पन्न हुई थीं और देवताओंको आनन्दित करनेवाली थीं ( इनको वारुणी भी कहते हैं ) ( आदि० ६६ । ५२ ) । ये ब्रह्माजी की सभामें रहकर उनकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ । ४२ ) । सुरारि - एक राजा, जिसे पाण्डर्वोकी ओरसे रण-निमन्त्रण भेजने का विचार किया गया था उद्योग० ४ । १५ ) । सुराव- इल्वलद्वारा अगस्त्यजीको दिये गये रथके एक घोड़ेका नाम ( वन० ९९ । १७ ) ।
सुराष्ट्र - ( १ ) दक्षिण-पश्चिम भारतका एक जनपद, जहाँके राजा कौशिकाचार्य आकृतिको माद्रीकुमार सहदेवने पराजित किया था सभा० ३१ । ६१) । दक्षिण दिशाके तीर्थोंके वर्णन-प्रसंग में सुराष्ट्र देशके अन्तर्गत चमसोद्भेद, प्रभासक्षेत्र, पिण्डारक एवं उज्जयन्त ( रैवतक ) पर्वत आदि पुण्य स्थानोंका उल्लेख हुआ है ( वन०८८ । १९ - २१) । ( २ ) एक क्षत्रियवंश, जिसमें रुषर्धिक नामक कुलाङ्गार राजा प्रकट हुआ था ( उद्योग० ७४ । १४ ) । सुरूच - अपने वंशका विस्तार करनेवाला गरुड़का एक पुत्र ( उद्योग० १०१ । ३)।
सुरूपा - सुरभिकी एक धेनुस्वरूपा पुत्री, जो पूर्वदिशाको धारण करनेवाली है ( उद्योग० १०२ । ८ ) । सुरेणु - ऋषभद्वीप में बहनेवाली सरस्वती नदीका नाम
( शल्य० ३८ | २६ I
सुरेश - (१) तप नामधारी पाञ्चजन्य नामक अग्निके पुत्र, जो यज्ञमें विघ्न डालनेवाले पंद्रह उत्तरदेवों (विनायकों ) मेसे एक हैं (वन० २२० । १३) । ( २ ) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५ ) ।
सुरेश्वर- ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक ( शान्ति० २०८ । १९ ) । सुरोचना - स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ । २९ ) ।
सुरोद - सुराका समुद्र, जो दधिमण्डोदसागरके बाद पड़ता है ( भीष्म० १२ । २ )।
सुरोमा - तक्षककुलोत्पन्न एक सर्प, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था ( आदि० ५७ । १० ) । सुलभा - एक संन्यासिनी कुमारी, जो योगधर्मके अनुष्ठानद्वारा सिद्धि प्राप्त करके अकेली ही इस पृथ्वीपर विचरण करती थी ( शान्ति० ३२० । ७) । इसने त्रिदण्डी संन्यासियोंके मुखसे मोक्ष-तत्त्व की जानकारीके विषयमें मिथिलापति राजा जनककी प्रशंसा सुनी । सुनकर इसके मनमें उनके दर्शनका संकल्प हुआ । इसने योगशक्तिसे अपना पहला शरीर छोड़कर दूसरा परम सुन्दर
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