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सालकटकटी
थी। उसके गर्भ से जयत्सेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ( आदि० ९५ । १६) । ( २ ) दिग्गजकुल में उत्पन्न एक हाथी ( द्रोण० १२१ । २६ ) । सालकटकटी-राक्षसी हिडिम्बाका नामान्तर ( आदि० १५४ । १० के बाद दा० पाठ ) | ( विशेष देखिये हिडिम्बा )
( ३८० )
सालङ्कायन - विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५२ ) । सावर्ण - ( १ ) एक महर्षि, जो राजा युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । १५ ) । ( २ ) एक भावी मनु, जिनके मन्वन्तरकालमें पराशरपुत्र व्यासजी सप्तर्षिके पदपर प्रतिष्ठित होंगे (अनु० १८ । ४२-४३ ) । सावर्णि - ( १ ) एक ऋषि जो इन्द्रसभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ७ । १० - १२ ) । सत्ययुगमें इन्होंने छः हजार वर्षो तक तपस्या की थी, तब भगवान् शंकरने प्रत्यक्ष दर्शन देकर इन्हें विख्यात ग्रन्थकार और अजर-अमर होनेका वर दिया ( अनु० १४ । १०३-१०४ ) । (२) एक भावी मनु, जिनके द्वारा बाँधी गयी मर्यादाका भगवान् सूर्य उल्लङ्घन नहीं करते हैं (उद्योग० १०९ । ११) ।
सावित्र - (१) ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक ( शान्ति० २०८ । २०) । ( २ ) सुमेरुपर्वतका एक शिखर, जिसका दूसरा नाम ज्योतिष्क था। यह सब प्रकारके रत्नोंसे विभूषित, अप्रमेय, समस्त लोकोंके लिये अगम्य और तीनों लोकोंद्वारा पूजित था । यहाँ पहले भगवान् शंकर और देवी उमा विराजमान होती थीं, बहुत-से देवता और ऋषि उनकी उपासना करते थे । गङ्गाजी दिव्यरूप धारण करके यहाँ महादेवजी की आराधना करती थीं ( शान्ति० २८३ । ५- १८ ) । ( ३ ) आठ वसुओं में से एक (अनु० १५० १६-१७ ) ।
सावित्री - (१) सूर्यदेवता की पुत्री एवं ब्रह्माजीकी पत्नी । ये तपतीकी बड़ी बहिन हैं ( आदि० १७० । ७ )। ब्रह्माजीकी सभा में विराजमान होती हैं ( सभा० ११ । ३४) । ये गायत्री मन्त्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्होंने अग्निहोत्रसे प्रकट होकर अपने आराधक राजा अश्वपतिको प्रत्यक्ष दर्शन एवं वर दिया था ( वन० २९३ । ८- १८ ) । त्रिपुरदाह के लिये यात्रा करते हुए भगवान् शंकरने इन्हें अपने रथ के घोड़ोंकी बागडोर बनाया था ( द्रोण० २०२ । ७५ ) । उनके संवत्सरमय धनुषकी प्रत्यञ्चा भी ये ही बनी थीं ( कर्ण० ३४ | ३६ ) । एक जापक ब्राह्मणद्वारा किये गये गायत्री जपसे संतुष्ट होकर इन्होंने उसे प्रत्यक्ष दर्शन एवं इच्छानुसार वर दिया ( शान्ति० १९९ ।
सिंहकेतु
५ - १६ ) | विदर्भनिवासी धर्मात्मा तपस्वी सत्यनामक ब्राह्मण यज्ञमें इनका पदार्पण और पुनः यज्ञाग्निमें प्रवेश ( शान्ति० २७२ । ११-१२ ) । इनके द्वारा अन्नदानकी महिमाका कथन ( अनु० ६७ । ८-९ ) । ( २ ) उमादेवीकी अनुगामिनी एक सहचरी ( वन० २३१ । ४९) । ( ३ ) मद्रनरेश अश्वपतिकी कन्या, जो सावित्री देवीके दिये हुए वरदान के अनुसार उन्हें प्राप्त हुई थी ( वन० २९३ | २३-२४ ) । इसके अद्भुत रूप-सौन्दर्य और तेज आदिका वर्णन ( वन० २९३ । २५ - २७ )। इसका पिताकी आज्ञा से स्वयं ही अपना पति चुननेके लिये प्रस्थान ( वन० २९३ । ३२ -- ३८ ) । इसका पिताके घर लौटना और उनके पूछनेपर शाल्वनरेश के वनवासी पुत्र सत्यवान्को पतिरूपमें वरण करनेकी बात बताना । नारदजीद्वारा उसके अल्पायु होनेकी बात सुनकर भी इसका सत्यवान् के साथ ही विवाह करनेका दृढ निश्चय
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वन० २९४ । २-२७ ) । सावित्रीका सत्यवान् के साथ विवाह तथा इसका अपनी सेवाओंद्वारा सबको संतुष्ट करना ( वन० २९५ अध्याय ) । सावित्रीकी व्रतचर्या तथा सत्यवान् के साथ इसका वनमें जाना ( वन० २९६ अध्याय ) | यमराज के साथ इसका वार्तालाप और उनसे इसको वर एवं मरे हुए पतिको पुनर्जीवन की प्राप्ति ( वन० २९७ | ११–६० ) । सत्यवान् के साथ इसका वार्तालाप ( वन० २९७ । ६५ – १०२ ) । पतिको साथ लेकर इसका आश्रम की ओर प्रस्थान वन० २९७ । १०७ ) आश्रम में पहुँचकर इसका ऋषियोंके समक्ष वनका सारा वृत्तान्त बतलाना ( वन० २९८ । ३७ - ४२ ) । इसके श्वशुरको राज्यकी प्राप्ति तथा पतिका युवराजपदपर अभिषेक | इसको सौ पुत्रों तथा सौ भाइयोंकी प्राप्ति ( वन० २९९ अध्याय ) । इसके पातिव्रत्यकी प्रशंसा ( विराट० २१ । १५) । ( ४ ) एक धर्मपरायणा राजपत्नी, जिसने दो दिव्य कुण्डलोंका दान करके उत्तम लोक प्राप्त किया था (शान्ति० २३४ । २४ ) | ( सम्भव है यह सत्यवान् की पत्नी रही हो । )
साश्व - एक प्राचीन नरेश, जो यम सभा में रहकर सूर्यपुत्र
यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । १७ ) । साहस्रक - कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक लोकविख्यात तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल प्राप्त होता है और वहाँ किये हुए दान तथा उपवासका महत्त्व अन्यत्र से सहस्रगुना अधिक होता है ( वन० ८३ । १५८-१५९)।
सिंहकेतु - पाण्डवपक्षका एक योद्धा, जो कर्णद्वारा मारा गया ( कर्ण ० ५६ । ४९ ) ।
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