________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
खात्यकि
( ३७७ )
सात्यकि
110
१४ । ३५-३६; द्रोण० २५ । ८-९)। क्षेमधूर्ति और की पराजय (द्रोण० १५६ ॥ २९; द्रोण० १५७ । १०. बृहन्तके साथ युद्ध (द्रोण० २५ । ४७-४८)। भगदत्त- ११)। इनके द्वारा सोमदत्तका वध (द्रोण. १६२ । के हाथीद्वारा इनके रथका फेंका जाना (द्रोण० २६ । ४३- ३३ ) । भूरिका वध ( द्रोण. १६६ । १२ )। ४४) । कर्णके साथ युद्ध (द्रोण० ३२ । ६७-७०)। कर्ण और वृषसेनके साथ युद्ध और वृषसेनको परास्त श्रीकृष्ण और अर्जुनके साथ इनकी रणयात्रा (द्रोण. करना ( द्रोण० १७० । ३०-४३) । इनके द्वारा ८४ । २१)। अर्जुनके आदेशसे युधिष्ठिरकी रक्षामें जाना दुर्योधनकी पराजय (द्रोण० १७१ । २३)। श्रीकृष्ण(द्रोण० ८४ । ३५) । दुःशासनके साथ युद्ध (द्रोण. __ से कर्णके अर्जुनपर शक्ति न छोड़नेका कारण पूछना ९६ । १४-१७)। इनके द्वारा द्रोणाचार्यके प्रहारसे (द्रोण. १८२ । ३४) । दुर्योधनके साथ संवाद और धृष्टद्युम्नकी रक्षा (द्रोण० ९७ । ३२)। द्रोणाचार्य के युद्ध (द्रोण. १८९ । २२-४८)। अर्जुनद्वारा इनकी साथ अद्भुत संग्राम और उनके लगातार सौ धनुधोंको शूरवीरताकी प्रशंसा ( द्रोण. १९१ । ४५-५३)। काटना (द्रोण० ९८ अध्याय)। इनका व्याघ्रदत्तके साथ द्रोणाचार्यके बधरूपी धृष्टद्युम्नके कुकृत्यकी इनके द्वारा युद्ध (द्रोण. १०६ । १४)। इनके द्वारा व्याघ्रदत्तका वध निन्दा (द्रोण. १९८ । ८-२४)। धृष्टद्युम्नको मारनेके (द्रोण. १०७ । ३२)। द्रोणाचार्यद्वारा इनका घायल लिये गदा लेकर कूद पड़ना तथा भीमसेन और सहदेवहोना (द्रोण० ११०।२-१३)। युधिष्ठिर के द्वारा अर्जुन- द्वारा इनका ऐसा करनेसे रोका जाना (द्रोण. १९८ । की सहायताके लिये जानेका आदेश मिलनेपर उनको ४६-५९ ) । कौरवपक्षीय छ: महारथियोंको एक साथ उत्तर देना (द्रोण० १११ । ३-३९) । अर्जुनके पास भगाना (द्रोण. २०० । ५३)। अश्वत्थामाके साथ जानेकी तैयारी और प्रस्थान (द्रोण० ११२ । ४-५३)। युद्ध और मूर्छित होना (द्रोण० २०० । ५६-६९)। भीमसेनको युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये लौटाना ( द्रोण इनके द्वारा केकयराजकुमार अनुविन्दका वध ( कर्ण. ११२ । ७१-७६) । इनके द्वारा कौरवसेनाका संहार
१३ । ११) । विन्दका वध (कर्ण० १३ । ३५)। (द्रोण० ११३ । ६-२०)। द्रोणाचार्यसे युद्ध करके उन्हें बंगराजका बध (कर्ण० २२ । १३)। कर्गके साथ युद्ध छोड़कर आगे बढ़ना (द्रोण. ११३ । २१-३४)। (कर्ण० ३० अध्याय ) । वृषसेनके साथ युद्ध और कृतवर्मा के साथ युद्ध और उसे घायल करके आगे बढ़ना
उसे परास्त करना ( कर्ण० ४८ । ४० के बादसे दा. (द्रोण. ११३ । ४६-६०)। इनके द्वारा कृतवर्माकी पा० ४५ श्लोकतक ) । शकुनिको पराजित करना पराजय (द्रोण. ११५ । १०-११) । जलसंधका वध (कर्ण० ६१ । ४८-४९ ) । इनके द्वारा कर्णपुत्र (द्रोण. ११५ । ५२-५३ ) । दुर्योधनकी पराजय प्रसेनका वध (कर्ण० ८२।६)। इनका शल्यके साथ (द्रोण. ११६ । २४.२५)। इनके द्वारा कृतवर्माकी युद्ध (शल्य० १३ अध्यायः शल्य. १५ अध्याय)। इनके पराजय (द्रोण० ११६ । ४१)। द्रोणाचार्यकी पराजय द्वारा कृतवर्माकी पराजय (शल्य१७ । ७७-७८)। (द्रोण० ११७ । ३०)। सुदर्शनका वध (द्रोण० ११८ ।। म्लेच्छराज शाल्वका वध (शल्य० २० । २६)। १५)। सारथिके साथ संवाद और कौरवसेनाको खदेड़ना
क्षेमधूतिका वध (शल्य०२१।८)। कृतवर्माकी (द्रोण० ११९ अध्याय)। भाइयोसहित दुर्योधनको पराजय (शल्य०२११२९-३०)। संजयका जीवित पकड़ा परास्त करना (द्रोण० १२० । ४२-४४)। इनके द्वारा जाना (शल्य० २५ । ५७-५८)।इनका संजयको मारनेके म्लेच्छसेनासहित दुःशासनकी पराजय (द्रोण० १२१ । लिये उद्यत होना और व्यासजीकी आज्ञासे उसे छोड २९-४६) । दुःशासनकी पराजय ( द्रोण० १२३। देना (शल्य. २९ । ३८-३९)। श्रीकृष्णकी आज्ञासे ३१-३४)। राजा अलम्बुषका वध (द्रोण. १४०। युधिष्ठिरके पास जाना और उनका संदेश सुनाना १८)। अद्भत पराक्रम प्रकट करते हुए अर्जुनके पास (शान्ति० ५३ । १२-१३)। श्रीकृष्णके साथ हस्तिनाइनका पहुँचना (द्रोण. १४१ । ११)। भूरिश्रवाके पुरसे द्वारकाको प्रस्थान (आश्व० ५२ । ५७-५८)। साथ युद्ध में पराजित होकर उसके द्वारा इनकी चुटिया- श्रीकृष्णके साथ रैवतक पर्वतपर होनेवाले महोत्सवमें का पकड़ा जाना ( द्रोण. १४२ । ५१-६३ )। सम्मिलित होना ( आश्व० ५९ । ३-४ ) । महोत्सवसे इनके द्वारा आमरण अनशन करके बैठे हुए भूरिश्रवाका लौटकर अपने भवनमें जाना (आश्व० ५९ । १७)। वध (द्रोण. १४३। ५४)। इनका कौरवोंको उनके इनके द्वारा अभिमन्युका श्राद्ध (आश्व० ६२।६)। आक्षेपका उत्तर देना (द्रोण. १४३ । ६०-६८)। युधिष्ठिरके अश्वमेधयज्ञमें हस्तिनापुर आना (आश्व०६६ । कर्णके साथ युद्ध में उसे पराजित करना (द्रोण. १४७। ३)। इनके द्वारा सुरापान करके मदमत्त होकर कृतवर्मा६४-६५) । इनका सोमदत्तके साथ युद्ध और सोमदत्त- का सोते हुए बालकोंके वधकी चर्चा करते हुए उपहास
म. ना०४८
For Private And Personal Use Only