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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहस्रज्योति ( ३७६ ) सात्यकि सहस्रज्योति-सुभ्राटके तीन पुत्रों से एक । इनके दस लाख पुत्र थे ( आदि० १ । ४६)। सहस्रपाद-एक प्राचीन ऋषि, जो शापवश डुण्डुभ नामक सर्प हो गये थे । इनका रुरुसे अपना परिचय __ देना ( आदि० १० । ७)। इनकी आत्मकथा तथा इनके द्वारा रुरुको अहिंसाका उपदेश ( आदि. ११ अध्याय ) । रुरुद्वारा सर्पसत्रके विषयमें जिज्ञासा करनेपर 'तुम ब्राह्मणोंके मुखसे आस्तीकका चरित्र सुनोगे । ऐसा रुझसे कहकर इनका अन्तर्धान होना (आदि० १२ । ३)। ये युधिष्ठिरका विशेष सम्मान करते थे (वन० २६ । २२)। सहस्रबाहु-स्कन्धका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ५९)। सहस्रवाक् (सदःसुवाक् )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक (आदि. ६७ । १००% आदि. ११६ । ९)। सहा-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके स्वागतमें इन्द्रभवनमें नृत्य किया था (वन० ४३ । ३०)। सहोढ-एक प्रकारके पुत्र, जो अबन्धुदायाद कहलाते हैं (आदि. ११९ । ३४) । (जो कन्यावस्थामें ही गर्भवती होकर ब्याही गयी हो, उसके गर्भसे उत्पन्न हुआ पुत्र सहोद कहलाता है।) सह्य-लवणसमुद्र-तटवर्ती एक पर्वत, जो सीताकी खोजमें गये हुए हनुमान् आदि वानरोंके मार्गमें दिखायी दिया था (वन० २८२ । ४३)। इस पर्वतपर देवराज नहुषने अप्सराओं तथा देवकन्याओंके साथ विहार किया था (उद्योग० ११ । १२-१३) । यह भारतवर्षके सात कुलपर्वतोंमें है (भीष्म० ९ । ११)। सांयमनि-सोमदत्तपुत्र शलका नामान्तर (भीष्म० ६१ । ११)। सागरक-सागर' जनपदके निवासी क्षात्रिय नरेश, जो युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें भेंट लेकर आये थे ( सभा० ५२ । १८)। सागरोदक-समुद्रका तीर्थस्वरूप जल, जिसमें स्नान करके मनुष्य विमानपर बैठकर स्वर्गमें जाता है (अनु०२५।९)। साङ्काश्य-एक प्राचीन नरेश, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८।१०)। साङति-( एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्य- पुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८।१०)। (२) अत्रिवंशमें उत्पन्न एक ऋषि, जिन्होंने शिष्योंको निर्गुण ब्रह्मका उपदेश देकर उत्तम लोकोंको प्राप्त किया था (शान्ति० २३४ । २२)।ये वानप्रस्थ धर्मका पालन एवं प्रसार करके स्वर्गको प्राप्त हुए (शान्ति० २४४ । १७)। सात्यकि-पृष्णिवंशी शिनिकुमार सत्यकके पुत्र (आदि. ६३ । १०५)। ये वृष्णिकुलभूषण, सत्यप्रतिज्ञ और शत्रुमर्दन वीर थे तथा मरुत् देवताओंके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि०६७ । ७५ )। ये द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे (आदि. १८५ । १८)। अर्जुन और सुभद्राके लिये दहेज लेकर इन्द्रप्रस्थमें आये थे (आदि० २२० । ३१)। सात्यकिका मुख्य नाम युयुधान था। ये युधिष्ठिरकी सभामें बैठते थे और इन्होंने वहीं अर्जुनसे धनुर्वेदकी शिक्षा प्राप्त की थी (सभा० ४ । ३४-३६)। वृष्णिवंशी यादवोंके सात अतिरथी वीरों में इनकी गणना की गयी है (सभा० १४ । ५७-५८)। युधिष्ठिरके अभिषेकके समय इन्होंने उनके ऊपर छत्र लगा रखा था (सभा० ५३ । १३)। प्रभासक्षेत्रमें पाण्डवोंका दुःख देखकर इनके शौर्यपूर्ण उद्गार (वन० १२० । १-२२)। ये उपप्लव्यनगरमें अभिमन्युके विवाहोत्सवमें सम्मिलित हुए थे (विराट० ७२।२१)। बलरामजीके कथनकी आलोचना करते हुए इनके वीरोचित उद्गार (उद्योग० ३ अध्याय)। इनका विशाल चतुरङ्गिणी सेनाके साथ युधिष्ठिरके पास आना (उद्योग० १९ । १)। संजयद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (उद्योग० ५०। ३९)। शान्तिदूत बनकर कौरवोंके यहाँ जानेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णसे इनका युद्धके लिये ही अपनी सम्मति प्रकट करना ( उद्योग. ८१ । ५-७) । श्रीकृष्णका सात्यकिको अपने रथपर अस्त्र-शस्त्र आदि रखनेको कहना तथा इन्हें रथपर बिठाकर साथ ले जाना (उद्योग० ८३। १२-२२)। दुर्योधनके षड्यन्त्रका भंडाफोड़ करना (उद्योग० १३० । १४-१७)। प्रथम दिनके संग्राममें कृतवर्मा के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म०४५। १२.१३)। कलिङ्गसेनाको परास्त करनेके बाद भीमसेनका अभिनन्दन करना (भीष्म० ५४ । १२१-१२२)। भीष्मके बाणोंसे आच्छादित हुए अर्जुनकी सहायतामें पहुँचना (भीष्म ५९ । ७८)। भूरिश्रवाके साथ इनका युद्ध (भीष्म ६४ । १-२)। भीष्मद्वारा सारथिके मारे जानेपर इनके घोड़ोंका रथ लेकर भागना (भीष्म० ७३ । २८-२९)। भूरिश्रवाके साथ इनका युद्ध और उसके द्वारा इनके दस पुत्रोंका वध (भीष्म० ७४ । १-२७)। इनके द्वारा अलम्बुषकी पराजय (भीष्म० ८२। ४५)। अश्वत्थामाको मूर्छित कर देना ( भीष्म० १०१।४७)। भीष्मके साथ इनका युद्ध (भीष्म० १०४ । २९-३६)। दुर्योधनके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११० । १४, भीष्म. १११ । १४-१८)। अलम्बुषके साथ युद्ध (भीष्म० १११।१-६)। इनका भगदत्तके साथ युद्ध ( भीष्म १११ । ७-१३)। अश्वत्थामाके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म ११६ । ९-१२)। धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. १.३३-३९)। कृतवर्माके साथ युद्ध (द्रोण. For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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