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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्र जलक्रीड़ा करती हुई देवयानी आदि कन्याओंके वस्त्रोंका सम्मिश्रण ( आदि० ७८ । ४)। इनका ययातिके साथ वार्तालाप और उन्हें स्वर्गसे नीचे गिराना (आदि०८८। १-५)। पाण्डुद्वारा इन्द्रकी आराधना तथा इन्द्रका उन्हें वरदान ( आदि० १२२ । २६-२७) । कुन्तीद्वारा इनका आवाहन तथा इनके द्वारा अर्जुनका जन्म (आदि० १२२ । ३५)। जानपदी' नामक अप्सराको भेजकर इनका शरद्वान् ऋषिकी तपस्यामें विघ्न डालना । (आदि० १२९ । ६)। शिवजीद्वारा इनका हिमालयकी गुफामें अवरोध और मनुष्यलोकमें अर्जुनरूपमें जन्म लेने के लिये इन्हें आदेश (आदि. १९६ । ९-२६)। पाण्डवोंके निवासके लिये खाण्डवप्रस्थमें दिव्यनगरके निर्माणहेतु इनको श्रीकृष्णकी मानसिक प्रेरणा तथा खाण्डवप्रस्थमें दिव्य नगरका निर्माण करनेके लिये इनका विश्वकर्माको आदेश (आदि० २०६।२८ के बाद दा. पाठ, पृष्ट ५९३) । तिलोत्तमाके रूपसे मोहित होकर इनका सहस्रनेत्र होना (आदि. २१० । २७)। खाण्डववनकी रक्षाके लिये इनका श्रीकृष्ण तथा अर्जुनके साथ युद्ध ( आदि० २२६ अ० में)। इनके द्वारा तक्षकके पुत्र अश्वसेनकी रक्षा (आदि० २२६ । ९)। अर्जुनद्वारा इनकी पराजय (आदि० २२७ । २३)। श्रीकृष्ण तथा अर्जुनको इनका वरदान ( आदि० २३३ । १०१२)। नारदजीद्वारा इनकी दिव्य सभाका युधिष्ठिरके प्रति वर्णन (सभा० ७ अ० में)। भगवान् श्रीकृष्णद्वारा इनका मानमर्दन, इनके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णका गोविन्द' नामकरण ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०१)। नरकासुरको मारनेके लिये इनकी श्रीकृष्णसे प्रार्थना ( पृष्ट ८०६ दा० पाठ)। इनका सुरभिसे वार्तालाप (वन०९। ६-१६)। इनके द्वारा अर्जुनको दिव्यास्त्र देनेकी स्वीकृति (वन ३७ । ५७-५८)। इनका अर्जुनको स्वर्गमें चलनेका आदेश ( वन० ४१ । ४३-४५)। इनके द्वारा चित्रसेनको अर्जुनके लिये संगीतविद्याकी शिक्षा देनेका आदेश (वन० ४४ । ८)। इनका अर्जुनकी प्रसन्नताके लिये चित्रसेनको उर्वशीके पास भेजना ( वन०४५। २)। उर्वशीके शाप देनेपर इनके द्वारा अर्जुनको आश्वासन ( वन० ४६ । ५५-५८)। इनका नरनारायणकी महिमा बतलाते हुए लोमश मुनिको युधिष्ठिरके पास संदेश देनेके लिये भेजना (आदि० ४७ । ७-३१)। इनका नलद्वारा दमयन्तीको संदेश देना ( वन० ५५। ६)। इनके द्वारा दमयन्ती स्वयंवर में राजा नलको वर- प्रदान (वन० ५७ । ३५-३६)। इनका कलियुगको प्रति अन्याय करनेसे रोकना ( वन० ५८ । 11- १२)। इनके द्वारा वृत्रासुरका वध (वन. १०१ । १४-१५)। इनका महर्षि च्यवनपर वज्र-प्रहार करनेको उद्यत होना ( वन०१२४ । १७)। मदासुरसे डरे हुए इन्द्रका अश्विनीकुमारोंको सोमपानका अधिकारी बनाना ( वन० १२५ । २-३ ) । इनका युवनाश्वकुमार मान्धाताको अँगुली पिलाना (वन० १२६ । ३० द्रोण. ६२ । ७-८)। इनका बाज बनकर उशीनरसे कबूतरके बराबर तौलकर माम माँगना ( वन० १३१ । २३-२४)। इनके द्वारा राजा उशीनरको वर-प्रदान (वन० १३१ । ३०-३१ )। इनका यवक्रीतको वर-प्रदान (वन० १३५। ४१-४२)। नरकासुरको मारने के लिये इनकी विष्णुसे प्रार्थना (वन० १४२। २४)। इनके द्वारा गन्धमादन पर्वतपर युधिष्ठिरको आश्वासन ( वन० १६६। १३-१४) । हिरण्यपुरके विनाशके उपलक्ष्यमें इनके द्वारा अर्जुनका अभिनन्दन (वन० १७३१७२-७५)। इनका महर्षि वकसे चिरजीवियोंके सुख-दुःखके विषयमें प्रश्न ( वन. १९३ अ० में)। बाजरूपसे राजा शिबिसे वार्तालाप तथा उनसे कबूतरके बराबर मांस माँगना ( वन० १९७ । २०)। इनके द्वारा केशी दानवकी पराजय और देवसेनाका उद्धार ( वन० २२३ । १५)। देवसेनाके साथ ब्रह्माके पास जाना (वन० २२४ । २१-२२)। स्कन्दद्वारा पराजित होकर इनकी शरणमें जाना ( वन० २२७ । १७-१८)। स्कन्दको देवसेनापति पदपर अभिषिक्त करना (वन० २२९ । २३)। स्कन्दको देवसेनाके साथ पाणिग्रहणके लिये कहना (वन० २२९ । ४८)। रावण के पुत्र इन्द्रजित्से इनकी पराजयको चर्चा ( वन० २८८ । ३)। कर्णसे उसका कवच कुण्डल माँगना (वन० ३१०। ४)। कर्णको अपनी अमोघ शक्ति देना (वन०३१० । २३)। त्रिशिराको तपसे डिगानेके लिये अप्सराओंको भेजना (उद्योग. ९। ९-१२)। इनके द्वारा त्रिशिराका वध (उद्योग० ९ । २२-२४) ।त्रिशिराके सिर काटनेके लिये इनके द्वारा बढ़ईको वरदान ( उद्योग० ९ । ३७ )। त्रिशिराके वधसे लगा हुई ब्रह्महत्याका विभाजन ( उद्योग ९। ४३ के बाद दाक्षि० पाठ)। इनका वृत्रासुरके मुखसे बाहर निकलना ( उद्योग० ५ । ५४ )। भगवान् विष्णुके कहनेसे वृत्रासुरके साथ इनकी मैत्री ( उद्योग १० । ३२)। इनके द्वारा वृत्रासुरका वध ( उद्योग० १० । ३९)। इनका ब्रह्महत्याके भयसे जलमें छिपना (उद्योग १० । ४६) । इनके द्वारा ब्रह्महत्याका विभाजन (उद्योग० १३ । १९)। इनका प्रकट होकर पुनः नहपके भयसे अन्तर्धान होना ( उद्योग. १३।२१२२ )। इनका लोकपालोको उनका अधिकार प्रदान For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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