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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भास्तीकपर्व www.kobatirth.org ( ३३ ) १३ । १०-११; १५ । ३; ४८ । ९-११ ) । इनका जन्म आदि० ४८ । १७ ) । इनका च्यवन मुनिसे अध्ययन ( आदि० ४८ । १८ ) । ' आस्तीक' नाम होनेका कारण ( आदि० ४८ । २० ) । नागराज वासुकिके भवन में इनका पालन ( आदि० ४८ । २१ ) । नागराज वासुकिको इनका आश्वासन ( आदि० ५४ । १७ - २५ ) । इनका जनमेजयके यज्ञमण्डपमें आगमन ( आदि० ५४ । २६-२७ ) । इनके द्वारा यजमान, ऋत्विज आदिकी स्तुति ( आदि० ५५ । १-१६ ) । इनको राजा जनमेजयका वरदान ( आदि० ५६ । १७ 9 ) । आस्तीकका राजासे 'तुम्हारा यज्ञ बंद हो और इसमें सर्प न गिरने पावें' यह वर माँगना ( आदि० ५६ । २१-२६ ) । इनके द्वारा तक्षककी प्राणरक्षा ( आदि० ५८ । १-१० ) । अश्वमेध यज्ञमें सदस्य होनेके लिये जनमेजयद्वारा इनसे प्रार्थना ( आदि० ५८ । १५-१६ ) । 'मेरे आख्यानका पाठ करनेवालोंको सर्पोंसे कोई भय न हो'--ऐसा इनका सर्पोंसे वर माँगना ( आदि० ५८ । २१ ) । आस्तीकका व्यासजीकी महत्ता बताते हुए जनमेजयकी प्रशंसा करना ( आश्रम ० ३६ । १२–१६ ) । सर्पोको संकटसे छुड़ाकर आस्तीकका प्रसन्न होना ( स्वर्गा ० ५ । ३२ ) । आस्तीकपर्व - महाभारत के आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय १३ से ५८ तक ) । आहुक* - यदुवंशी राजा उग्रसेनका नामान्तर ( उद्योग० १२८ । ३८-३९; अनु० १४ । ४१ ) । इनकी पुत्री 'सुतनु' के साथ अक्रूरका विवाह ( सभा० १४ । ३३ ) । आहुकके सौ पुत्र थे ( सभा ० १४ । ५६ ) । आहुक और अक्रूरके पारस्परिक वैरसे श्रीकृष्णकी चिन्ता (शान्ति ० ८१ । ८-११ ) । आहुक ( उग्रसेन) के आदेशसे नगरमें यह घोषणा की गयी कि द्वारकामें कोई मदिरा न बनावे; जो नशीली वस्तु तैयार करेगा, उसे शूलीपर चढ़ा दिया जायगा ( मौसल ० १ । २८-३१ ) । आहुति - ( १ ) एक क्षत्रिय, जो जारूथी नगरीमें श्रीकृष्णसे पराजित हुआ था । इसी नगरीमें शिशुपाल आदिकी भी पराजयका उल्लेख मिलता है । ( वन० १२ । ३० ) । ( २ ) नारायणका एक नाम ( शान्ति ० ३३८ । ९२ ) । इ क्षुमती - कुरुक्षेत्र में या उसके निकट बहनेवाली एक नदी, म० ना० ५ * कहीं-कहीं 'आडुक' को उग्रसेनका पिता कहा गया है; परंतु महाभारत में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है । इसके बिपरीत उद्योग ० १२८ । ३८-३९ में आहुक उग्रसेनको एक व्यक्ति बताया गया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्र जहाँ तक्षक और अश्वसेन- ये दो नाग रहा करते थे ( आदि० ३ । १४१ ) । इक्षुला - एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवर्षके लोग पीते हैं ( भीष्म० ९ । १७ ) । इक्ष्वाकु - (१ ) वैवस्वत मनुके दस पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ७५ | १५; अनु० २ । ५) | एक जापक ब्राह्मणके साथ इनका संवाद ( शान्ति० १९९ । ३९ - ११७ ) । इनकी सद्गतिका वर्णन ( शान्ति० २०० | २६ ) । इनके द्वारा मांस भक्षण-निषेध ( अनु० ११५ । ६६ )। इनके सौ पुत्र थे (अनु० २ । ५ ) । इनके स्वर्गवास के पश्चात् इन्हींके पुत्र शशाद राजा हुए ( वन० २०२ । १) | ( २ ) वैवस्वत मनुके प्रपौत्र एवं क्षुपके पुत्र; इनके भी सौ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा विंश था ( आश्व ० ४ । २) । इन्हें अपने पिता क्षुपद्वारा खड्गकी प्राप्ति हुई थी ( शान्ति० १६६ । ७३ )। For Private And Personal Use Only इध्मवाह - दृढस्युका दूसरा नाम, ये अगस्त्य के पुत्र थे । ये (इम ( समिधा ) का भार वहन करनेसे 'इध्मवाह' कहलाये ( वन० ९९ । २७ ) । I इन्द्र- (१) कश्यपसे उनकी पत्नी अदिति के गर्भ से जो बारह आदित्य उत्पन्न हुए, उनमें इन्द्र प्रमुख हैं ( आदि० ६५ | ११–१६; ७५ । १०-११ ) | ये वज्रधारी, वृत्रहन्ता, पुरंदर तथा तीनों लोकोंके स्वामी हैं ( आदि० ३ । १४८ - १४९ ) । देवश्रेष्ठ और सहस्राक्ष हैं ( आदि० २५ । ९--१३ ) । तक्षकद्वारा अपहृत हुए मदयन्तीके कुण्डलों की प्राप्ति कराने में इन्होंने उत्तङ्ककी सहायता की ( आदि ० ३ । १३१ ) । उत्तङ्कद्वारा इनकी स्तुति ( आदि० ३ । १४६ - १४९ ) । समुद्रमन्थन से इन्हें ऐरावत की प्राप्ति हुई ( आदि० १८ । ४० ) । कद्दूद्वारा इनकी स्तुति ( आदि० २५ । ७-१७ ) । इनके द्वारा की हुई वर्षा सर्पोंकी प्रसन्नता ( आदि० २६ अ० में इनके द्वारा वालखिल्य ऋषियोंका अपमान ( आदि० ३१ । १० ) | गरुड़के ऊपर इनका वज्रप्रहार और उनसे मित्रता स्थापित करनेकी इच्छा ( आदि० ३३ । १८२५ ) । इन्द्र और गरुड़की मित्रता ( आदि० ३४ । १ ) । सर्पोंसे छलपूर्वक अमृतका अपहरण ( आदि० ३४ । ८-२० ) । इन्द्रका तक्षकको आश्वासन ( आदि० ५३ । १५-१७ ) । इनके द्वारा कुन्ती के गर्भसे अर्जुनकी उत्पत्ति (आदि ० ६३ । ११६) । इनका ब्राह्मणका रूप धारण करके कर्णसे कवच-कुण्डल माँगना ( आदि० ६७ । १४४ - १४५ ) । विश्वामित्रका तप भङ्ग करनेके लिये मेनका अप्सराको भेजना ( भादि ० ७१ । २१-२६) । वायुका रूप धारण करके इनके द्वारा
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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