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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समझ ( ३७० ) सम्प्रिया समङ्ग-(१) दुर्योधनका एक ग्वाला, जिसने धृतराष्ट्रको समीची-एक अप्सरा, जो वर्गाकी सखी थी ( आदि० उनकी गौओंके समीप आनेकी सूचना दी थी (वन० २१५।२०)। ब्राह्मणके शापसे इसका ग्राह-योनिमें २३९ । २)। (२) एक दक्षिणभारतका जनपद जन्म (आदि० २१५ । २३)। अर्जुनद्वारा इसका (भीष्म०९ । ६०)। (३) एक प्राचीन ऋषि | ग्राहयोनिसे उद्धार ( आदि० २१६ । २१)। यह नारदजीके पूछनेपर इनका अपनी शोकरहित स्थितिका वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है वर्णन करना (शान्ति० २८६ । ५-२१)। (सभा० १०।११)। समझा-एक नदी, जिसमें पिताकी आज्ञासे स्नान करनेके कारण समुद्रवेग-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६३ )। अष्टावक्रके अङ्ग सीधे हो गये थे। तभीसे यह नदी पुण्यमयी -एक क्षत्रियनरेश, जो सातवें कालेयसंज्ञक दैत्यके हो गयी । इसमें स्नान करनेवाला मनुष्य सब पापोसे मुक्त अंशसे उत्पन्न हुए थे। ये धर्म और अर्थतत्त्वके ज्ञाता हो जाता है (वन. १३४ । ३९-४०)। इसका दूसरा थे । समुद्रपर्यन्त सारी पृथ्वीपर इनकी ख्याति थी नाम मधुविला भी है (वन० १३५ । १-२)। (आदि० ६७ । ५४ ) । भीमसेनने पूर्व-दिग्विजयके समन्तपञ्चक-एक क्षेत्र । यहाँ परशुरामजीने रक्तके पाँच समय चन्द्रसेनसहित इन्हें जीता था (सभा० ३० । सरोवर बना दिये थे और उन्हींमें रक्ताञ्जलिद्वारा २४)। ये पराक्रमी थे । पाण्डवोंकी ओरसे पुत्रसहित अपने पितरोंका तर्पण किया था ( आदि० २।४-५, इन्हें रण-निमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था वन० ११७ । ९-१०)। परशुरामजीके पितरोंके वरदानसे (उद्योग०४।२२)। इनके द्वारा चित्रसेनके वधकी यह प्रसिद्ध तीर्थ हो गया ( आदि० २।४-११)। चर्चा ( कर्ण० ६ । १५-१६)। द्वापर और कलियुगकी संधिमें कौरवों और पाण्डवोंका समुद्रोन्मादन-स्कन्दका एक सैनिक ( पाल्ब० ४५ । महाभारतयुद्ध यहीं हुआ था । इसी कारण, 'समेतानाम् स्मन् तत् समन्तम्' इस व्युत्पत्तिक अनुसार समूह-एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३०)। इसका नाम समन्तपञ्चक पड़ गया (आदि० २ । समृद्ध-धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके १३-१५ ) । बलरामजीकी सलाहसे पाण्डव तथा सर्पसत्रमें भस्म हो गया (आदि० ५७ । १८)। दुर्योधनका इस क्षेत्रमें युद्धके लिये जाना (शल्य. ५५ । ५-१८)। इसी क्षेत्रमें दुर्योधनका निधन (शल्य. समेडी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । १३)। ३९ । ४०)। सम्पाति-(१) विनतानन्दन अरुणके प्रथम पुत्र । इनकी समन्तर-एक भारतीय जनपद (भीष्म ९ । ५०)। माताका नाम श्येनी और इनके छोटे भाईका नाम जटायु समयपालनपर्व-विराटपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय था ( आदि० ६६ । ७०-७१)। इन्होंने हनुमानजी १३)। आदि वानरोंको सीताके सम्बन्धमें यह समाचार दिया था समरथ-राजा विराटके भाई, जो पाण्डवोंके प्रधान सहायक कि वे रावणपुरी लङ्कामें विद्यमान हैं (वन०१४८५)। थे (द्रोण० १५८ । ४२)। इनका आमरण अनशनके लिये बैठकर बातचीतके प्रसङ्गमें जटायुकी चर्चा करनेवाले वानरोसे जटायुका समवेगवश-एक दक्षिणभारतीय जनपद ( भीष्मः समाचार पूछना, अपनेको उनका भाई बताना तथा ९।६१)। जटायुके साथ सूर्यमण्डलके समीपतक उड़कर जानेसे समसौरभ-एक वेदविद्या के पारङ्गत ब्राह्मण, जो जनमेजयके अपने पलोंके जलने और पर्वतशिखरपर गिरनेका सर्पसत्रके सदस्य बने थे (आदि० ५३ । ९)। वृत्तान्त सुनाना, फिर वानरोंके मुखसे सीता-हरण एवं समा-पुष्करद्वीपके आगे बसी हुई लोगोंकी एक चौकोर जटायु-मरणका समाचार सुनकर भाईके लिये दुखी होना बस्ती या आबादी, जिसमें तैंतीस मण्डल हैं। यहाँ वामन, तथा लङ्कामे सीताजीके होनेकी निश्चित सम्भावना बताऐरावत, सुप्रतीक और अञ्जन-ये चार दिग्गज रहते हैं। कर वानरोंको वहाँ जानेके लिये प्रेरित करना (बन. इनके मुखसे मुक्त होकर बहनेवाली वायुद्वारा वहाँकी प्रजा २८२ । १६-५७ ) । (२) कौरवपक्षीय योद्धा, जीवन धारण करती है (भीष्म० १२ । ३२-३८)। जो द्रोणनिर्मित गरुडव्यूहके हृदय-स्थानमें विशाल समितिञ्जय-द्वारकावासी यादवोंके अन्तर्गत सात सेनाके साथ खड़े थे (द्रोण. २० । १२)। महारथियोंमेंसे एक (सभा० १४ । ५८)। सम्प्रिया-मधुवंशकी कन्या तथा महाराज विदूरकी पत्नी । समीक-द्वारकावासी यादवोंके अन्तर्गत सात महारथियोंमेंसे इसके गर्भसे अनश्वाका जन्म हुआ था ( आदि.. एक (समा १४। ५८)। ९५ । ४.)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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