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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वैत्य ( ३६२ ) संघरण (स) श्वेतको उत्पन्न किया था (आदि०६६।६१, ६६)। मिश्रकेशी अप्सराके गर्भसे उत्पन्न महाधनुर्धर पुत्र । (२) स्कन्दकी अनु चरी एक मातृका (पाल्य०४६ । २२)। इनके अन्य भाइयोंके नाम-चेयु, पक्षेयु, कुकणेयु, श्वत्य-प्राचीन राजा सुंजयका नाम (द्रोण. ५५ । ५०)। स्थण्डिलेयु, वनेयु, जलेयु, तेजेयु, सस्येयु तथा धर्मेयु ये (विशेष देखिये-सुञ्जय)। (आदि०९४।८-११)। संन्यस्तपाद-एक देश, जहाँके राजा और राजकुमार जरासधके भयसे पीड़ित हो उत्तर दिशाको छोड़कर षष्टिसद-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेपर अन्नदानसे भी दक्षिण दिशाका आश्रय ले चुके थे (सभा०१४ । २८)। अधिक फल प्राप्त होता है (अनु० २५ । ३६)। षष्ठी देवी-ब्रह्माजीकी सभामें उनकी उपासनाके लिये बैठने संयम-राक्षस शतशृङ्गका प्रथम पुत्र, जो अम्बरीषके सेनावाली एक देवी ( सभा० १११)। पति सुदेवद्वारा मारा गया था (शान्ति० ९८ ।" के बाद दा. पाठ)। संयमन-(१) यमकी राजधानी संयमनीपुरी, जो दक्षिणसंकोच-एक राक्षस, जो प्राचीन कालमें इस पृथ्वीका दिशामें स्थित है (वन. १६३।८-९)। (२) शासक था किंतु कालके अधीन हो इसे छोड़कर चल सोमदत्तका दूसरा नाम (भीष्म०६१।३३)। बसा (शान्ति० २२७ । ५२)। संयमनीपुरी-यमकी राजधानी या पुरी, इसका दूसरा नाम संकृति-एक प्राचीन नरेश (आदि. १ । २३४)। ये 'संयमन' भी है (वन० १६३ । ८९; द्रोण०७२ । राजा रन्तिदेवके पिता थे (बन० २९४ । १७ द्रोण. ४४; द्रोण० ११९ । २४; द्रोण० १४२ । १०)। जहाँ ६७।।)। कोई भी झूठ नहीं बोलता, सदा सत्य ही बोला जाता है, संक्रम-भगवान् विष्णुद्वारा स्कन्दको दिये गये तीन पार्षदों जहाँ निर्बल मनुष्य भी बलवान्से अपने प्रति किये गये मेंसे एक । शेष दोके नाम थे-चक्र और विक्रम (शल्य. अन्यायका बदला लेते हैं। मनुष्योको संयममें रखनेवाली ४५ । ३७)। यमराजकी वही पुरी संयमनी' नामसे प्रसिद्ध है (अनु. संग्रह-समुद्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों में से एक। १०२ । १६)। दूसरेका नाम था विग्रह (शक्य० ४५ । ५०)। संयाति-(१) राजा नहुषके तीसरे पुत्र । ययातिके छोटे संग्रामजित्-कर्णका एक भाई । विराटकी गौओंके अपहरण- भाई । इनके अन्य भाइयोके नाम थे—यति, ययाति, के समय युद्धमें अर्जुनद्वारा इसका वध हुआ था आयाति, अयति और ध्रुव (आदि० ७५ । ३०.३१)। (विराट ५४ । १०)। , (२) ये महाराज पुरुके प्रपौत्र एवं प्राचिन्वान्के पुत्र संचारक-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५। ७४)। ये । यदुकुलकी कन्या अश्मकी इनकी माता थी (आदि० ९५ | १३)। इनके द्वारा दृषद्वान्की पुत्री संज्ञा-त्वष्टाकी पुत्री और भगवान् सूर्यकी धर्मपत्नी। ये वराङ्गीके गर्भसे 'अहंयाति' नामक पुत्रका जन्म हुआ परम सौभाग्यवती हैं। इन्होंने अश्विनीका रूप धारण करके था ( आदि. ९५।१४)। दोनों अश्विनीकुमारोंको अन्तरिक्षमें जन्म दिया था (मादि. ६६ । ३५ )। नासत्य और दस दोनों संवरण-सोमवंशी अजमीढके पौत्र तथा ऋक्षके पुत्र अश्विनीकुमार अश्वरूपधारिणी संज्ञाकी नासिकासे (आदि० ९४ । ३१-३४) । पाञ्चाल-नरेशके द्वारा उत्पन्न हुए थे । इनका प्रादुर्भाव भगवान् सूर्यके वीर्यसे इनपर आक्रमण और इनकी पराजय (आदि. ९४ । हुआ था (अनु. १५०। १७-१८)। ३७-१८)। शत्रुके भयसे राज्य छोड़कर इनका सिन्धुसंतर्जन-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ५८)। तटपर निवास ( आदि० ९४ । ३९-४०)। इनके द्वारा राज्य प्राप्ति के लिये पुरोहितके रूपमें वसिष्ठका वरण संतानिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।५)। (आदि० ५४ । ४२-४४ )। वसिष्ठकी सहायतासे संध्या-(१) एक नदी, जो वरुण-सभामें रहकर वरुण इनको अपने राज्यकी प्राप्ति तथा इनके द्वारा विविध देवकी उपासना करती है (सभा०९। २३)।(२) यशोंका सम्पादन ( आदि. ९४ । ४५-४७)। इनके सायंकालिक संध्याकी अधिष्ठात्री । ये महर्षि पुलस्त्यकी द्वारा सूर्यकन्या तपतीके गर्भसे कुरु'का जन्म ( आदि० पत्नी थीं ( उद्योग० ११७ । १६)। (मूलगत नाम ९४ । ४८)। इनकी सूर्यदेवके प्रति भक्ति एवं आगधना 'प्रतीच्या')। (आदि० १७० । १२-१४)। राजा संवरणके गुणसंनतेयु-पूरुके तीसरे पुत्र महामनस्वी रौद्राश्वके द्वारा रूपमें इस पृथ्वीपर इनके समान कोई नहीं था । ये For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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