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श्रुतश्री
( ३६० )
श्रेणिमान्
जो यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं अपनी ही गदाद्वारा वध ( द्रोण० ९२ । ५४ )। ( सभा० ८ ।९)। (३) चेदिराज दमघोषकी (२) एक क्षत्रिय राजा, जो क्रोधवशसंशक दैत्यके भार्या । श्रीकृष्णकी पितृष्वसा (बुआ) और शिशुपालकी अंशसे उत्पन्न हआ था (भादि०६७।६४) । यह माता । इनके द्वारा अपने पुत्र ( शिशुपाल ) की जीवन- महारथी वीर था और द्रौपदीके स्वयंवरमें आया था रक्षाके लिये श्रीकृष्णसे प्रार्थना (समा० ४३।१-२०)। (आदि. १८५ । २१) । महाबली श्रुतायु राजा शिशुपालके सौ अपराध क्षमा क ऐसा कहकर श्री- युधिष्ठिरकी सभाका भी एक सदस्य था (सभा० ४ ।
कृष्णद्वारा इनको आश्वासन (सभा० ४३ । २४)। २८)। पाण्डवोकी ओरसे इसको रण-निमन्त्रण भेजनेश्रतश्री-एक दैत्य, जिसका गरुडद्वारा वध हुआ था
का निश्चय किया गया था ( उद्योग. ४ । २३)। (उद्योग० १०५।१२)।
प्रथम दिनके संग्राममें इरावान्के साथ इसका युद्ध
(भीष्म०४५। ६९-७१)। यह अम्बष्ठ देशका राजा श्रुतसेन-(१) महाराज जनमेजयके भ्राता, जिन्होंने अपने
था और भीष्मकी रक्षा करते हुए इसने अर्जुनका सामना अन्य भाइयोंके साथ देवताओंकी कुतिया सरमाके पुत्र
किया था (भीष्म० ५९। ७५-७६)। यह भीष्मसारमेयको पीटा था (आदि. ३ । १)। (२)
निर्मित कौञ्चव्यूहके जघनभागमें खड़ा था (भीष्म तक्षक नागके छोटे भाई (आदि०३ । १४१-१४२)।
७५ । २२)। यह युद्ध में युधिष्ठिरद्वारा पराजित हुआ (३)(श्रुतकर्मा) द्रौपदीके गर्भसे सहदेवद्वारा उत्पन्न
था ( भीष्म.८४ । १-१७) । इसका अर्जुनपर (आदि० ६३ । १२४)। यह विश्वेदेवके अंशसे उत्पन्न
आक्रमण और उनके द्वारा वध (द्रोण. ९३ । ६०हुआ था (आदि. ६७ । १२७)। इसके श्रुतसेन
६९)। (३) एक कौरवपक्षीय योद्धा, जो अच्युतायुनाम पड़नेका कारण (आदि० २२० । ८५)। (विशेष
का भाई था। इसने अपने भाई अच्युतायुके साथ रहदेखिये-श्रुतकर्मा । ) (४) एक दैत्य । जिसका गरुड़
कर कौरव सेनाके दक्षिण भागकी रक्षा की थी (भीष्म० द्वारा वध हुआ था ( उद्योग० १०५।१२)। (५)
५१ । १८)। इन दोनों भाइयोंका अर्जुनके साथ युद्ध कौरवपक्षका एक योद्धा, जिसे अर्जुनने बाण मारा था
और उनके द्वारा इनका वध (द्रोण. १३ । ७(कर्ण० २७ । १०-११)।
२४)। श्रुतानीक-विराटके भाई, जो पाण्डवोंके रक्षक और सहायक
श्रुतावती-एक तपस्विनी कन्या, जो घृताची अप्सराको थे (द्रोण० १५८ । ४१)।
देखकर भरद्वाजजीके स्खलित हुए वीर्यसे उत्पन्न हुई थी। श्रुतान्त (चित्राङ्ग)-धृतराष्ट्रका पुत्र । इसने अन्य भाइयोंके
इसने घोर तपस्या करके इन्द्रको पतिरूपमें प्राप्त किया साथ रहकर भीमसेनपर धावा किया और उन्हींके हाथ
था (शल्य. ४८ अध्याय)। से मारा गया (शल्य. २६ । ४-११)। श्रुतायु (श्रुतायुध)-(१) कलिङ्ग देशके राजा, जो श्रुताह्व-पाण्डवपक्षका राजा अश्वत्थामाद्वारा इसका वध युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे (सभा० ४।२६)। (द्रोण० १५६ । १८२)। इन्होंने राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिरको मणि-रत्न भेंट किये अति-एक प्राचीन नरेश (आदि०१। २३८)। थे (सभा० ५१ । ७ के बाद दा० पाठ)। ये द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे (आदि. १८५।१३)। पाण्डवों- श्रेणिमान्-एक राजर्षिप्रवर, जो कालेयसंज्ञक दैत्योंमें की ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय हुआ चौथे दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि०६७। था ( उद्योग० ४ । २४)। ये कलिङ्गराज कौरवपक्षकी ५१ )। ये द्रौपदीस्वयंवरमें भी पधारे थे ( आदि. एक अक्षौहिणी सेनाके अधिनायक थे (भीष्म १८५।११)। ये कुमारदेशके राजा थे। इन्हें पूर्व१६ । १६)। भीमसेनके साथ युद्ध और उनके द्वारा दिग्विजयके अवसरपर भीमसेनने परास्त किया था (सभा. घायल होना ( भीष्म० ५४ । ६७-७५)। इनके ३०.)। दक्षिण-दिग्विजयके समय सहदेवने भी इन्हें दो चक्ररक्षक-सत्यदेव और सत्य-भीमसेनद्वारा मारे गये जीता था ( सभा० ३१ । ५) । पाण्डवोंकी ओरसे (भीष्म० ५४ । ७६)। इनका अर्जुनके साथ युद्ध
इन्हें रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था (उद्योग (द्रोण. ९२ । ३६-४४)। ये पर्णाशाके गर्भसे ४।२१)। सेनाके प्रयाण करते समय ये युधिष्ठिरको वरुणद्वारा उत्पन्न हुए थे। इन्हें वरुण द्वारा गदाकी घेरकर उनके पीछे चल रहे थे (उद्योग० १५१।१३. माप्ति हुई थी (मोण. ९२ । ४५-५1)। इनका )। पाण्डवसेनामें इनकी गणना अतिरथी पीमेिं थी
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