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व्यास
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४५ तक ) । विजयसूचक लक्षणोका वर्णन करना (भीष्म०३ । ६५-८५)। इनका युधिष्ठिरको मृत्युकी अनिवार्यता बताना (द्रोण. ५२।११)। युधिष्ठिरको नारद-अकम्पन-संवाद सुनाना (द्रोण० ५२ । २० से ५४ अध्यायतक)। षोडशराजकीयोपाख्यान प्रारम्भ करना (द्रोण. अध्याय ५५ से द्रोण. ७१ । २२ तक)। युधिष्ठिरका शोक-निवारण करके अन्तर्धान होना (द्रोण. ७१ । २३)। घटोत्कच-वधसे दुखी युधिष्ठिरको समझाना (द्रोण. १८३ । ५४-६७)। अश्वत्थामासे शिव और श्रीकृष्णकी महिमा बताना (द्रोण० २०१।५६- ९६ ) । अर्जुनसे भगवान् शिवकी महिमा बताना (द्रोण. २०२ अध्याय)। वधके लिये उद्यत सात्यकिके
थसे संजयको मुक्त कराना (शल्य. २९ । ३९)। इनके द्वारा धृतराष्ट्रको सान्त्वना (शल्व०६३ । ७७)। अर्जुन और अश्वत्थामाके ब्रह्मास्त्रको शान्त करनेके लिये इनका प्रकट होना (सौप्तिक० १४।११)। अश्व- स्थामासे अपनी मणि देकर शान्त हो जानेके लिये कहना ( सौप्तिक०१५। १९-२०) । श्रीकृष्णद्वारा अश्व- स्थामाको दिये गये शापका समर्थन करना ( सौप्तिक. १६ । १७-१८)। शोकसे मूच्छित धृतराष्ट्रको समझाना (स्त्री० ८।१३-४९)। पाण्डवोंको शाप देनेके लिये उद्यत गान्धारीको समझाना (स्त्री० १४।७-१३)। युद्धके पश्चात् युधिष्ठिरके पास आना (शान्ति । ४)। युधिष्ठिरसे शङ्ख और लिखितका चरित्र सुनाते हुए सुद्युम्नके राजदण्डकी महत्ताका प्रतिपादन करना (शान्ति. २३ अध्याय)। राजा हयग्रीवका चरित्र सुनाते हुए युधिष्ठिरको राजोचित कर्तव्य-पालनके लिये। समझाना (शान्ति. २४ अध्याय)। राजा सेनजित्के उदारोंका उल्लेख करते हुए युधिष्ठिरको आश्वासन देना (शान्ति० २५ अध्याय)। शरीर त्यागनेके लिये उद्यत युधिष्ठिरको रोककर समझाना (शान्ति. २७ । २८३३)। अश्मा मुनि और जनकके संवादरूपमें प्रारब्धकी प्रबलता बतलाकर युधिष्ठिरको समझाना-बुझाना (शान्ति. २८ अध्याय)। अनेक युक्तियोदारा युधिष्ठिरको समझाना (शान्ति० ३२ अध्याय) । कालकी प्रबलता बताकर देवासुर-संग्रामके उदाहरणसे युधिष्ठिरको प्रायश्चित्त करनेकी आवश्यकता बताना ( शान्ति. ३३ । १४-१८)। युधिष्ठिरसे प्रायश्चित्तका वर्णन करना (शान्ति. अध्याय ३५ से ३५ तक)। स्वायम्भुव मनुद्वारा कथित धर्मका उपदेश करना (शान्ति० ३६ अध्याय) । युधिष्ठिरको भीष्मके पास चलनेके लिये कहना (शान्ति. ३७ । ६-१)। शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखनेके लिये इनका पदार्पण करना (शान्ति.१५५)।
व्यासजीका अपने पुत्र शुकदेवको कालका खरूप बताना (शान्ति०२३१ । ११-३२)। शुकदेवको सृष्टिक्रम तथा युगधर्मका उपदेश देना (शान्ति. २३२ अध्याय)। इनका ब्राह्मप्रलय और महाप्रलयका वर्णन करना (शान्ति. २३३ अध्याय)। ब्राह्मणों के कर्तव्य और दानकी प्रशंसा करना (शान्ति० २३४ अध्याय)। सर्ग, काल, धारणा, वेद, कर्ता, कार्य और क्रियाफलके विषयमें इनका शुकदेवको उपदेश करना (शान्ति अध्याय २३५ से ३३९ तक )। शुकदेवको मोक्ष-धर्मविषयक विभिन्न प्रश्नोंका उत्तर देना (शान्ति० अध्याय २४० से २५५ तक)। अपने पुत्र शुकदेवको वैराग्य और धर्मपूर्ण उपदेश देते हुए चेतावनी देना (शान्ति. ३२१ । ४--- ९३)। इनकी पुत्र प्राप्तिके लिये तपस्या और शङ्करजीसे वर-प्राप्ति (शान्ति० ३२३ । १२-२९) । घृताची अप्सराके दर्शनसे मोहित होनेके कारण अरणी-काष्ठपर इनके वीर्यका पतन और उससे शुकदेवजीकी उत्पत्ति (शान्ति० ३२४।४-१०)। शुकदेवको जनकके पास भेजना (शान्ति. ३२५ । ६-१)। शियोको वरदान देना (शान्ति० ३२७ । ३७-५२)। नारदजीके पूछनेपर अपनी उदासीका कारण बताना (शान्ति. ३२८ । १६-१९) । शुकदेवको अनध्यायका कारण बताते हुए प्रवह आदि सात वायुओंका परिचय देना (शान्ति० ३२८ । २८--५७)। पुत्र-मोहवश शुकदेवजीको जानेसे रोकना (शान्ति. ३३३ । ६३)। पुत्रविरहजनित शोकसे व्यासजीकी व्याकुलता (शामित. ३३३ । १९--.)। व्यासजीका अपने शिष्योंको ब्रह्मादि देवताओंको दिये गये नारायणके उपदेशको सुनाना (शान्ति० ३४० । ९०-११०)। नारदके मुखसे इन्हें सात्वतधर्मकी उपलब्धि और इनके द्वारा धर्मराज युधिष्ठिरको इस धर्मका उपदेश (शान्ति० ३४८ । ६५६५)। सरस्वतीपुत्र अपान्तरतमाके रूपमें इनकी उत्पत्ति
और महिमा ( शान्ति. ३४९ । ३९---५८ )। युधिष्ठिरसे शिवमहिमाके विषयमें इनका अपना अनुभव बताना (अनु०१८ । १-३): भीष्मजीके समक्ष इनके द्वारा ब्रह्महत्याके समान पापोंका निरूपण (भनु० २४ । ५--१२)। व्यासजीका शुकदेवसे गौओंकी, गोलोककी
और गोदानकी महिमाका वर्णन ( अनु० ८१ । १२४६)। एक कीटको क्रमशः ब्राह्मणत्व प्राप्त कराकर उसका उद्धार करना (अनु० अध्याय ११७ से ११९ तक)। मैत्रेयके प्रश्नोंके उत्तरमें उनके साथ व्यासजीका संवाद (अनु० अध्याय १२० से १२२ तक)। भीष्मसे युधिष्ठिरको इस्तिनापुर जानेकी आशा देनेको कहना (अनु. १६६ । ६-७)। इनका शोकाकुल युधिष्ठिरको समझाना (भाव.
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