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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बैताली ( ३२९ ) व्याघ्राक्ष बैताली-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५। ६७)। यह चैत्रके बाद और ज्येष्ठके पहले आता है। ) जो स्त्री वैदर्भी-राजा सगरकी एक पत्नी, जिनसे साठ हजार पुत्रोंकी या पुरुष इन्द्रिय-संयमपूर्वक एक समय भोजन करके उत्पत्ति हुई थी (वन० १०६ । १७-२३)। .. वैशाख मासको बिताता है, वह सजातीय बन्धु-बान्धर्वोमें वैदेह-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५ । ५७)। (विशेष श्रेष्ठताको प्राप्त होता है ( अनु० १०६ । २४ ) । वैशाख देखिये विदेह )। मासकी द्वादशी तिथिको उपवासपूर्वक भगवान् मधुसूदन का पूजन करनेवाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता वैनतेय-गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग और सोमलोकमें जाता है (अनु०१०९ । ८)। १.१।०)। वैमानिक-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे मनुष्य अप्सराओं- वैशालाक्ष-ब्रह्माका नीति-शास्त्र, जो विशालाक्ष भगवान् के दिव्य लोकमें जाता है और इच्छानुसार विचरता है शिवद्वारा संक्षिप्त किये जानेके कारण वैशालाक्ष कहलाता (अनु० २५।२३)। है (शान्ति० ५९ । ८२)। वैमित्रा-सात शिशुमाताओंमेंसे एक । शेष छाके नाम हैं- वैश्रवण-कुबेका एक नाम ( आदि० १९८ । ६)। काकी, हलिमा, मालिनी, बृहता, आर्या और पलाला (दाखय कुबर ) (वन० २२८ । १०)। वैश्वानर-(१) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभामें विराजमान बैराज-सात पितरों में से एक । शेष छःके नाम हैं-- होते हैं (सभा० ७ । १८)। (२) भानु (मनु) अग्निष्वात्त, सोमपा, गाई पत्य, एकशृङ्ग, चतुर्वेद और नामक अग्निके प्रथम पुत्र । चातुर्मास्य यज्ञोंमें हविष्यद्वारा कल । ये ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना करते पर्जन्यसहित इनकी पूजा की जाती है (वन०२२११६) हैं (सभा० ३१ । ४६)। वैष्णवधर्मपर्व-आश्वमेधिकपर्वका एक अवान्तर पर्व, जो वैराट-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक, जो भीमसेनद्वारा मारा दाक्षिणात्य पाठसे लिया गया है (अध्याय ९२ दाक्षिणात्य गया था (भीष्म० ९६ । २६)। पाठ, पृष्ठ ६३०७ से ६३७८ तक)। वैराम-एक प्राचीन जातिका नाम, इस जातिके लोग नाना बहायस-नर-नारायणाश्रमके समीपवर्ती एक कुण्ड (शान्ति. प्रकारके रत्न और भाँति-भाँतिकी भेंट-सामग्री लेकर १२७ । ३)। युधिष्ठिरके राजसूय यशमें आये थे (सभा०५३ । १२)। व्यश्व-एक राजा, जो यम-सभामें रहकर वैवस्वत यमकी वैवखत तीर्थ-एक पुण्यमय तीर्थ, यहाँ स्नान करनेसे उपासना करते हैं (सभा० ८ । १२)। मनुष्य स्वयं तीर्थरूप हो जाता है (अनु० २५ । ३९)। व्याघ्रकेतु-पाण्डवपक्षका एक पाञ्चाल योद्धा, जो कर्णद्वारा वैवस्वत मनु-चौदह मनुओंमें ये सातवें मनु हैं ( आदि. घायल किया गया था (कर्ण० ५६ । ४४-४८) । ७५ । १)। (विशेष देखिये मनु)। व्याघ्रदत्त-(१)पाण्डवपक्षका एक राजा, जिसकी गणना वैवाहिकपर्व-( १ ) आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व श्रेष्ठ रथिोंमें की गयी थी ( उद्योग० १७१।१९)। (अध्याय १९२ से १९८ तक)। (२) विराटपर्वका द्रोणाचार्यके साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा वध एक अवान्तर पर्व (अध्याय ७० से ७२ तक)। (द्रोण. १६। ३२-३७)। इसके घोड़ोंकी चर्चावैशम्पायन-महर्षि वेदव्यासके शिष्य, जिन्होंने महाराज गदहेके समान मलिन और अरुण वर्णवाले तथा पृष्ठ जनमेजयको महाभारतकी कथा सुनायी थी (आदि. भागमें चूहेके समान श्याम-मलिन कान्तिवाले विनीत घोड़े व्याघ्रदत्तको युद्ध-मैदानमें ले गये थे (द्रोण० २३। १।२०-२१, ९८) । जनमेजयको महाभारतकी कथा ५४)। विकर्णद्वारा इसके मारे जानेकी चर्चा (कर्ण. सुनाने के लिये इनको गुरुदेव व्यासकी प्रेरणा प्राप्त होना (आदि०६० । २२)। इनके द्वारा महाभारत ग्रन्थकी ६ । १६-१७)। (२) मगध देशका एक राजकुमार, जो कौरवपक्षका योद्धा था। इसका सात्यकिके साथ युद्ध महिमाका विस्तारपूर्वक वर्णन ( आदि० ६२ । (द्रोण. १०६ । १४)। सात्यकिके साथ संग्राम करते १२--५३)।ये अज्ञानवश किसी समय ब्राह्मणका वध करने के कारण बालवधके पापसे लिप्त हो गये थे तो भी हुए इसका उनके द्वारा वध (द्रोण.१०७।३१-३३)। स्वर्ग चले गये ( अनु० ६ । ३७)। व्याघ्रपाद-एक प्राचीन ऋषि, जो उपमन्युके पिता थे वैशाख-( बारह महीनोंमेंसे एक, जिस मासकी पूर्णिमाको (अनु.१४ । ४५)। विशाखा नक्षत्रका योग होता है, उसे वैशाख कहते हैं। व्याघ्राक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ५९) । म. ना. ४२ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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