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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेत्रकीयगृह ( ३२८ ) वैतरणी वेत्रकीयगृह-एकचक्रा नगरीके समीपवर्ती एक स्थानविशेष, वेन-(१) वैवस्वत मनुके प्रथम दस पुत्रों से एक जहाँ उस प्रदेशका राजा निवास करता था (आदि० (आदि.७५।१५-१७)। (२) मृत्युकी मानसी १५९ | १)। कन्या सुनीथाके गर्भसे उत्पन्न एक राजा (शान्ति० ५९। वेत्रकीयवन-एक वन, जहाँ भीमसेनने बकासुरको मारा ९१)। ऋषियोंके शापसे इनकी मृत्यु (शान्ति० ५९ । था (वन०१५। ३०-३१)। ९४) । ऋषियों द्वारा इनकी दाहिनी जाँघके मन्थनसे निषादों एवं विन्ध्यगिरिनिवासी लाखों म्लेच्छोंकी उत्पत्ति वेत्रवती-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारत हुई (शान्ति. ५९ । ९५-९७)। दाहिने हाथके वासी पीते हैं (भीष्म०९।१६, १९)। मन्थनसे पृथु उत्पन्न हुए ( शान्ति० ५९ । ९८ )। वेत्रिक-एक भारतीय जनपद । दुर्योधनने यहाँके सैनिकोंको । ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं भीष्मकी रक्षाके लिये भेजा था (भीष्म० ५१ । )। (सभा० ८ । १५)। वेद-(१) ये आयोदधौम्य मुनिके एक शिष्य ये (आदि० वेहत-एक पुष्टिकरी ओषधि (वन० १९७ । १७)। ३।७४)। इनकी गुरुभक्तिका वर्णन (आदि०३ । ७९) । इनको गुरुका आशीर्वाद प्राप्त होना (आदि. वैकर्तन-अपने शरीरसे कवचके कतर डालनेके कारण कर्ण३।८.)। इनके गाईस्थ्यधर्मका वर्णन ( आदि का नाम वैकर्तन हो गया (आदि. ११०।३.)। ३।८) | इनका जनमेजयका उपाध्याय होना (विशेष देखिये कर्ण) (भावि० ३ । ८२ ) । परदेश जाते समय अपने शिष्य वैकुण्ठ-पाँचों भूतोंको मिलाने में जिसकी शक्ति कभी कुण्ठित उत्तङ्कको घरकी सँभाल रखनेके लिये इनका आदेश नहीं होती, वे भगवान् बैकुण्ठ कहलाते हैं (शान्ति. (आदि. ३ । ८४)। इनका परदेशसे लौटनेपर ३४२।८.)। उत्तङ्कके कार्य-विधानपर प्रसन्न होना और उन्हें आशीर्वाद वैजयन्त-(१) इन्द्रके ध्वजका नाम (वन०४२।८)। देकर घर जानेके लिये आज्ञा देना (आदि. ३ । ८८. (२)क्षीरसागरके मध्यभागमें स्थित एक पर्वत, जहाँ ८९)। गुरु-दक्षिणाके लिये उत्तङ्कके आग्रह करनेपर उन्हें अध्यात्मगतिका चिन्तन करनेके लिये ब्रह्माजी प्रतिदिन गुरुपत्नीके पास गुरुदक्षिणाकी वस्तु पूछनेके लिये भेजना आते हैं (शान्ति० १५० । ९-१०)। (आदि० ३ । ९०-९४) । (२) भारतीय आर्योके सर्वप्रधान और सर्वमान्य धार्मिक ग्रन्थ, जो अप्रतिम वैजयन्ती-(१) ऐरावतके दो घण्टोका नाम, जिन्हें इन्द्रने स्कन्दको अर्पण किया था। उनमेंसे एक विशाखने ले शानके भंडार हैं। इनकी संख्या चार है— ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद । ये सभी मूर्तिमान हो लिया और दूसरा स्कन्दके पास रहा (वन. २३१ । ब्रह्माजीकी सभामें उपस्थित रहते हैं (सभा० ।।।३२)। १८-१९)। वेदवती-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारत वैदर्यपर्वत-शूर्पारक क्षेत्रमें गोकर्णतीर्थके पास स्थित एक वासी पाते हैं (भीष्म ९ । १७)। पर्वत, जो शिवस्वरूप माना जाता है। इसीपर अगस्त्यजीका आश्रम है । वैदूर्यपर्वतका दर्शन करके नर्मदामें उतरनेसे वेदशिरा-एक प्राचीन ऋषि, जो उपरिचरवसुके यज्ञमें मनुष्य देवताओं तथा पुण्यात्मा राजाओंके समान पवित्र सदस्य बने थे (शान्ति. ३१६।८)। लोकोंको प्राप्त करता है। यह पर्वत त्रेता और द्वापरकी वेवस्मृता-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके संधिमें प्रकट हुआ था (वन. ८८।१८ बन. निवासी पीते हैं (भीष्म. ९।१७)। १२१ । १९-२०)। वेदावा-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारत- वैतरणी-(१) भागीरथी गङ्गा ही जब पितृलोकमें बहती वासी पीते हैं ( भीष्म० ९।२०)। हैं, तब उनका नाम वैतरणी होता है। वहाँ पापियोंके वेदी-ब्रह्माकी भार्या ( उद्योग० ११७।१०)। लिये इनके पार जाना अत्यन्त कठिन होता है (आदि. वेदीतीर्थ-(१) कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ, १६९ । २२) । (२) एक नदी, जो वरुणकी सभामें जिसमें स्नान करके मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता है रहकर उनकी उपासना करती है (सभा० ९।२०)। (वन०८३ । ९९) । (२) एक परम दुर्गम तीर्थ, यह सब पापोको छुड़ानेवाली है, इसमें विरजतीर्थमें स्नान (जो सम्भवतः सिन्धुके उद्गमस्थानके निकट है।) करनेसे मनुष्य चन्द्रमाके समान प्रकाशित होता है (वन. यहाँकी यात्रा करनेसे मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता ८५।६)। यह भारतकी उन प्रसिद्ध नदियोंमेंसे है, और स्वर्गलोकमें जाता है(बन.८४७)। जिसका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म. १।३४)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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