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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोहित्या ( २९४ ) लोहित्या-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतवासी ४ । ११ )। इनका युधिष्ठिरको ब्राह्मणोंका महत्त्व पीते हैं (भीष्म० ९ । ३५)। बताना (वन० २६ । ६-२०)। इनके द्वारा इन्द्रके लौहित्य-(१) एक प्राचीन देश, भीमसेनने पूर्व प्रति चिरजीवियोंके दुःख-सुखका वर्णन (बन० १५३ दिग्विजयके समय इस देशमें जाकर यहाँके बहुत-से अध्याय )। हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णसे इनका म्लेच्छ राजाओंको जीता और उनसे भाँति-भाँतिके रत्न मार्गमें मिलना ( उद्योग. ८३ । ६४ के बाद)। इनके करके रूपमें वसूल किया (सभा० ३० । २६-२७)। द्वारा धृतराष्ट्र के राज्यकी अग्निमें आहुति देनेका प्रसंग (२) श्रीरामके प्रभावसे प्रकट हुआ एक तीर्थ, यहाँ (शल्य० ४१ । ५-२७)। स्नान करनेसे मनुष्यको बहुत-सी सुवर्ण-राशि प्राप्त वकनख-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु. होती है ( वन० ८५।२)! कार्तिककी पूर्णिमाको ४।५४)। कृत्तिकाका योग होनेपर जो लौहित्य तीर्थमें स्नान करता . यकवधपर्व ( बकवधपर्व )-आदिपर्वका एक है, उसे पुण्डरीक यज्ञका फल प्राप्त होता है ( अनु० । अवान्तर पर्व (अध्याय. १५६ से १६३ तक)। २५। ४६) । (३) एक महानद, जो वरुण-सभामें वक्र-एक राजा, जिसका दूसरा नाम दन्तवक है। इसने रहकर उनकी उपासना करता है ( आधुनिक ब्रह्मपुत्र' द्रौपदीके स्वयंवरमें लक्ष्यवेधके लिये अपना असफल को लौहित्य या 'लोहित्य' कहते हैं) (सभा०९ । २२)। पराक्रम प्रकट किया था ( आदि. १८६ । १५)। यह भगवान् श्रीकृष्णके हाथसे मारा गया था ( उद्योग वक्षु-एक नदी, इसके तटपर उत्पन्न हुए रासभ बड़े १३० । ४८)। यह कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी कन्याके सुन्दर और बल आदि गुणोंमें विख्यात होते हैं । बहुत-से स्वयंवरमें भी उपस्थित हुआ था (शान्ति०४।६)। म्लेच्छ देशके राजा युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें ऐसे रासभों- (विशेष देखिये-दन्तवक्र)। को मेंट देनेके लिये लाये थे (सभा० ५१ । १७-२०)। वक्षोग्रीव-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु. वंशगुल्म-एक तीर्थ, जो शोण और नर्मदाका उत्पत्ति- ४ । ५३)। स्थान है। यहाँ स्नान करनेसे यात्री अश्वमेध यज्ञका वङ्ग-पूर्व भारतका एक प्रसिद्ध जनपद (आधुनिक बङ्गाल) फल प्राप्त करता है (वन० ८५।९)। (आदि० २१४ । ९; भीष्म० ९ । ४६)। तीर्थयात्रावंशमूलक-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ, जहाँ के अवसरपर अर्जुनका यहाँ आगमन (आदि० २१४।९)। स्नान करनेसे मनुष्य अपने वंशका उद्धार कर देता है भीमसेनके द्वारा इस देशके राजापर आक्रमण ( सभा० (वन० ८३ । ४१-४२)। ३० । २३ ) । बंगदेशीय नरेश युधिष्ठिरके यहाँ भेंट वंशा-कश्यपकी प्राधा' नामवाली पत्नीसे उत्पन्न हुई पुत्री लेकर गये थे ( सभा० ५२ । १८)। कर्णने दिग्विजय(आदि. ६५ । ४५-४६)। के समय इस देशको जीता था (वन० २५४ । ८)। बंगनरेशका घटोत्कचके साथ युद्ध और पराजय (भीष्म वक ( बक )-एकचक्रासे दो कोसकी दूरीपर यमुनाके किनारे घने जंगलमें एक गुफाके भीतर रहनेवाला एक ९२ । ६-१२)। किसी समय श्रीकृष्णने वंगदेशको जीता था (द्रोण. १।। १५ )। परशुरामजीने इस बलवान् नरभक्षी राक्षस, जिसका एकचक्रा नगरी और देशके क्षत्रियोंका संहार किया था (द्रोण० ७० । १२)। वहाँके जनपदपर शासन चलता था ( आदि. १५९ । कर्णद्वारा इस देशके जीते जाने और 'करद' बनाये ३-४)। इसके द्वारा नगरकी रक्षा तथा करके रूपमें जानेकी चर्चा ( कर्ण० ८। १९ )। अश्वमेधीय इसे दिया जानेवाला दैनिक भोजन ( आदि. १५९ । अश्वकी रक्षाके लिये गये हुए अर्जुनने वंगदेशकी म्लेच्छ ५-७)। भीमसेनका इसके साथ युद्ध और इसका वध सेनाको परास्त किया था ( आश्व० ८२ । २९-३०)। (आदि. १६२ । ५ से १६३ | १ तक)। वन-(१) इन्द्रका अस्त्र, जो विश्वकर्माके हाथसे महर्षि वक दाल्भ्य (बक दालभ्य )-एक प्राचीन ऋषि, जो दधीचकी हड्डियोंद्वारा निर्मित हुआ था ( वन. युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होते थे ( सभा० १००।२४)। इसने इन्द्रकी प्रेरणासे व्याघ्र बनकर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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