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लोमपाद
मुद्राकी इच्छा पूर्ण करनेके निमित्त धन संग्रहके लिये प्रस्थान किया ( वन० ९७ अध्याय ) । लोपामुद्रा जो कुछ चाहती थी, महर्षि अगस्त्यने उसे पूर्ण किया, तब लोपा - मुद्राने उनसे एक अत्यन्त शक्तिशाली पुत्र माँगा । महर्षिने पूछा- क्या तुम्हारे गर्भसे एक हजार या एक सौ पुत्र उत्पन्न हों, जो दसके ही बराबर हो ? अथवा एक ही पुत्र हो, जो हजारोंको जीतनेवाला हो ?' लोपामुद्राने सहस्रोंकी समानता करनेवाला एक ही श्रेष्ठ पुत्र माँगा । म गर्भाधान करके वनमें चले गये । वह गर्भ सात वर्षो तक माताके पेटमें पलता रहा। सात वर्ष बीतनेपर वह अपने तेज और प्रभावसे प्रज्वलित होता हुआ उदरसे बाहर निकला । वही महाविद्वान् 'दृढस्यु' के नामसे विख्यात हुआ ( वन० ९९ | १८ - - २५ ) । इनके पातिव्रत्यकी प्रशंसा ( विराट० २१ । १४ ) ।
लोमपाद - अङ्गदेशके एक राजा ( जो राजा दशरथ के मित्र थे)। इनके द्वारा राज्यमें वर्षा होनेके निमित्त ऋष्यशृङ्गको लाने के लिये वेश्याओंकी नियुक्ति ( वन० ११० । ५३ ) । इनके द्वारा 'नाव्याश्रम' का निर्माण ( वन० ११३ । ९ ) । इनका अपनी पुत्री शान्ताको ऋष्यशृङ्ग मुनिके साथ ब्याद देना ( वन० ११३ । ११ ) । इनपर महर्षि विभाण्डककी कृपा (वन० ११३ । २० ) । राजर्षि लोमपाद अपनी कन्या शान्ताका ऋष्यशृङ्ग मुनिको दान करके सत्र प्रकार के प्रचुर भोगों से सम्पन्न हो गये ( शान्ति० २३४ । ३४ ) ।
( २९२ )
लोमश - ( १ ) एक प्राचीन दीर्घजीवी महर्षि, जो धर्मपालनसे शुद्ध हृदयवाले हुए थे ( वन० ३१ । १२ ) । इनका स्वर्गमें जाकर इन्द्रसे मिलना और वहाँ इन्द्रके अर्धसिंहासनपर अर्जुनको बैठा देख इनके मनमें उनके पुण्यकर्म क्या है - यह प्रश्न उठना ( वन० ४७ । १- ५ ) । इन्द्रके द्वारा इनसे मानसिक प्रश्नका समाधान ( बन० ४७ । ७ - ३१ ) । इनका इन्द्र और अर्जुनका संदेश लेकर काम्यकवनमें युधिष्ठिरके पास आना ( वन० ४७ । ३३ - ३५ ) । इनका युधिष्ठिरको अर्जुनकी दिव्यास्त्र - प्राप्तिकी सूचना देना ( वन० ९१ । १०– १४ ) । इनका युधिष्ठिरसे इन्द्रका संदेश कहना ( वन० ९१ । १७ - २५ ) | इनका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना ( वन० ९२ । १–७ ) । इनका युधिष्ठिरको आश्वासन ( वन० ९४ । १७ - २२ ) । इनका युधिष्ठिरको अगस्त्यकी कथा सुनाना ( वन० अध्याय ९६ से
लोमश
९९ तक ) । इनके द्वारा युधिष्ठिर के प्रति राम और परशुराम के चरित्र का वर्णन ( वन० ९९ । ४० - ७१ ) । वृत्रासुरसे त्रस्त देवताओंको महर्षि दधीचके अस्थि-दान एवं वज्रनिर्माणका वर्णन ( वन० १०० अध्याय ) | इनके द्वारा वृत्रासुर के वध और असुरों की भयंकर मन्त्रणाका कथन ( वन० १०१ अध्याय ) | महर्षि लोमशके द्वारा कालेयोंद्वारा तपस्वियों, मुनियों और ब्रह्मचारियों आदिके संहारका वर्णन और देवताओंद्वारा भगवान् की स्तुतिका कथन ( वन० १०२ अध्याय ) । लोमशजीने युधिष्ठिरको जो प्रमुख विषय सुनाये हैं, उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार हैभगवान् के आदेश से देवताओंका महर्षि अगस्त्य के आश्रमपर जाकर उनकी स्तुति करना । अगस्त्यजीका विन्ध्य पर्वतको बढ़ने से रोकना और देवताओंके साथ सागरतटपर जाना | अगस्त्यजीद्वारा समुद्र-पान और देवताओंका कालेय दैत्योंका वध करके ब्रह्माजीसे समुद्रको पुनः भरने का उपाय पूछना । राजा सगरका संतानके लिये तपस्या करना और शिवजी द्वारा वर पाना । सगरके पुत्रों की उत्पत्ति कपिलकी क्रोधाग्निसे उनका भस्म होना, असमंजसका परित्याग, अंशुमान्के प्रयत्नसे सगरके यशकी पूर्ति, अंशुमान से दिलीपको और दिलीपसे भगीरथको राज्यकी प्राप्ति | भगीरथका हिमालयपर तपस्याद्वारा गङ्गा और महादेव जी को प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करना । पृथ्वी पर गङ्गाजीके उतरने और समुद्रको जलसे भरनेका विवरण तथा सगरपुत्रोंका उद्धार | नन्दा और कौशिकी का माहात्म्य, ऋष्यशृङ्ग मुनिका उपाख्यान तथा उनको अपने राज्य में लाने के लिये राजा लोमपादका प्रयत्न | वेश्याका ऋष्यशृङ्गको लुभाना और विभाण्डक मुनिका आश्रमपर आकर अपने पुत्रकी चिन्ताका कारण पूछना । ऋष्यशृङ्गका पिताको अपनी चिन्ताका कारण बताते हुए ब्रह्मचारी रूपधारी वेश्या स्वरूप और आचरणका वर्णन । ऋष्यशृङ्गका अङ्गराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उन्हें अपनी कन्या देना, राजाद्वारा विभाण्डक मुनिका सत्कार तथा उनपर मुनिका प्रसन्न होना ( वन० अध्याय १०३ से ११३तक ) । लोमशद्वारा राजा गयके यशकी प्रशंसा, पयोष्णी, पर्वत और नर्मदा माहात्म्य तथा च्यवन- सुकन्या के चरित्रका वर्णन ( वन० १२१ अध्याय ) | महर्षि लोमशद्वारा च्यवनको सुकन्या की प्राप्ति के प्रसंगका वर्णन (वन० १२२ अध्याय) | अश्विनीकुमारोंकी कृपासे महर्षि च्यवनको सुन्दर रूप और युवावस्थाकी प्राप्तिका वर्णन (वन० १२३
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