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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org लोमपाद मुद्राकी इच्छा पूर्ण करनेके निमित्त धन संग्रहके लिये प्रस्थान किया ( वन० ९७ अध्याय ) । लोपामुद्रा जो कुछ चाहती थी, महर्षि अगस्त्यने उसे पूर्ण किया, तब लोपा - मुद्राने उनसे एक अत्यन्त शक्तिशाली पुत्र माँगा । महर्षिने पूछा- क्या तुम्हारे गर्भसे एक हजार या एक सौ पुत्र उत्पन्न हों, जो दसके ही बराबर हो ? अथवा एक ही पुत्र हो, जो हजारोंको जीतनेवाला हो ?' लोपामुद्राने सहस्रोंकी समानता करनेवाला एक ही श्रेष्ठ पुत्र माँगा । म गर्भाधान करके वनमें चले गये । वह गर्भ सात वर्षो तक माताके पेटमें पलता रहा। सात वर्ष बीतनेपर वह अपने तेज और प्रभावसे प्रज्वलित होता हुआ उदरसे बाहर निकला । वही महाविद्वान् 'दृढस्यु' के नामसे विख्यात हुआ ( वन० ९९ | १८ - - २५ ) । इनके पातिव्रत्यकी प्रशंसा ( विराट० २१ । १४ ) । लोमपाद - अङ्गदेशके एक राजा ( जो राजा दशरथ के मित्र थे)। इनके द्वारा राज्यमें वर्षा होनेके निमित्त ऋष्यशृङ्गको लाने के लिये वेश्याओंकी नियुक्ति ( वन० ११० । ५३ ) । इनके द्वारा 'नाव्याश्रम' का निर्माण ( वन० ११३ । ९ ) । इनका अपनी पुत्री शान्ताको ऋष्यशृङ्ग मुनिके साथ ब्याद देना ( वन० ११३ । ११ ) । इनपर महर्षि विभाण्डककी कृपा (वन० ११३ । २० ) । राजर्षि लोमपाद अपनी कन्या शान्ताका ऋष्यशृङ्ग मुनिको दान करके सत्र प्रकार के प्रचुर भोगों से सम्पन्न हो गये ( शान्ति० २३४ । ३४ ) । ( २९२ ) लोमश - ( १ ) एक प्राचीन दीर्घजीवी महर्षि, जो धर्मपालनसे शुद्ध हृदयवाले हुए थे ( वन० ३१ । १२ ) । इनका स्वर्गमें जाकर इन्द्रसे मिलना और वहाँ इन्द्रके अर्धसिंहासनपर अर्जुनको बैठा देख इनके मनमें उनके पुण्यकर्म क्या है - यह प्रश्न उठना ( वन० ४७ । १- ५ ) । इन्द्रके द्वारा इनसे मानसिक प्रश्नका समाधान ( बन० ४७ । ७ - ३१ ) । इनका इन्द्र और अर्जुनका संदेश लेकर काम्यकवनमें युधिष्ठिरके पास आना ( वन० ४७ । ३३ - ३५ ) । इनका युधिष्ठिरको अर्जुनकी दिव्यास्त्र - प्राप्तिकी सूचना देना ( वन० ९१ । १०– १४ ) । इनका युधिष्ठिरसे इन्द्रका संदेश कहना ( वन० ९१ । १७ - २५ ) | इनका युधिष्ठिरसे अर्जुनका संदेश कहना ( वन० ९२ । १–७ ) । इनका युधिष्ठिरको आश्वासन ( वन० ९४ । १७ - २२ ) । इनका युधिष्ठिरको अगस्त्यकी कथा सुनाना ( वन० अध्याय ९६ से लोमश ९९ तक ) । इनके द्वारा युधिष्ठिर के प्रति राम और परशुराम के चरित्र का वर्णन ( वन० ९९ । ४० - ७१ ) । वृत्रासुरसे त्रस्त देवताओंको महर्षि दधीचके अस्थि-दान एवं वज्रनिर्माणका वर्णन ( वन० १०० अध्याय ) | इनके द्वारा वृत्रासुर के वध और असुरों की भयंकर मन्त्रणाका कथन ( वन० १०१ अध्याय ) | महर्षि लोमशके द्वारा कालेयोंद्वारा तपस्वियों, मुनियों और ब्रह्मचारियों आदिके संहारका वर्णन और देवताओंद्वारा भगवान् की स्तुतिका कथन ( वन० १०२ अध्याय ) । लोमशजीने युधिष्ठिरको जो प्रमुख विषय सुनाये हैं, उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार हैभगवान् के आदेश से देवताओंका महर्षि अगस्त्य के आश्रमपर जाकर उनकी स्तुति करना । अगस्त्यजीका विन्ध्य पर्वतको बढ़ने से रोकना और देवताओंके साथ सागरतटपर जाना | अगस्त्यजीद्वारा समुद्र-पान और देवताओंका कालेय दैत्योंका वध करके ब्रह्माजीसे समुद्रको पुनः भरने का उपाय पूछना । राजा सगरका संतानके लिये तपस्या करना और शिवजी द्वारा वर पाना । सगरके पुत्रों की उत्पत्ति कपिलकी क्रोधाग्निसे उनका भस्म होना, असमंजसका परित्याग, अंशुमान्के प्रयत्नसे सगरके यशकी पूर्ति, अंशुमान से दिलीपको और दिलीपसे भगीरथको राज्यकी प्राप्ति | भगीरथका हिमालयपर तपस्याद्वारा गङ्गा और महादेव जी को प्रसन्न करके उनसे वर प्राप्त करना । पृथ्वी पर गङ्गाजीके उतरने और समुद्रको जलसे भरनेका विवरण तथा सगरपुत्रोंका उद्धार | नन्दा और कौशिकी का माहात्म्य, ऋष्यशृङ्ग मुनिका उपाख्यान तथा उनको अपने राज्य में लाने के लिये राजा लोमपादका प्रयत्न | वेश्याका ऋष्यशृङ्गको लुभाना और विभाण्डक मुनिका आश्रमपर आकर अपने पुत्रकी चिन्ताका कारण पूछना । ऋष्यशृङ्गका पिताको अपनी चिन्ताका कारण बताते हुए ब्रह्मचारी रूपधारी वेश्या स्वरूप और आचरणका वर्णन । ऋष्यशृङ्गका अङ्गराज लोमपादके यहाँ जाना, राजाका उन्हें अपनी कन्या देना, राजाद्वारा विभाण्डक मुनिका सत्कार तथा उनपर मुनिका प्रसन्न होना ( वन० अध्याय १०३ से ११३तक ) । लोमशद्वारा राजा गयके यशकी प्रशंसा, पयोष्णी, पर्वत और नर्मदा माहात्म्य तथा च्यवन- सुकन्या के चरित्रका वर्णन ( वन० १२१ अध्याय ) | महर्षि लोमशद्वारा च्यवनको सुकन्या की प्राप्ति के प्रसंगका वर्णन (वन० १२२ अध्याय) | अश्विनीकुमारोंकी कृपासे महर्षि च्यवनको सुन्दर रूप और युवावस्थाकी प्राप्तिका वर्णन (वन० १२३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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