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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra लङ्का www.kobatirth.org ( २९० ) ये पतिका आश्रय छोड़कर कहीं नहीं जातीं; किंतु राज्य लक्ष्मी अनेक स्वरूप धारण करके अनेक लोकोंमें और अनेक राजाओं के पास रहती हैं। ये अस्थिर और चञ्चल हैं । जहाँ सद्गुण है, सद्धर्म है, वहाँ इनका वास है और जहाँ इन गुणोंका अभाव है, वहाँसे ये हट जाती हैं । नीचे राज्यलक्ष्मी के विषयमें ही कुछ बातें लिखी जाती हैं -) ये कुबेरकी सभा में बिराजमान होती हैं ( सभा० १० । १९ ) । ब्रह्माजी की सभा में भी इनकी उपस्थिति होती है ( सभा० ११ । ४१ ) | द्रौपदीकी अर्जुनके लिये इनसे मङ्गल-कामना ( वन० ३७ । ३३ ) । इनका प्रह्लादको छोड़कर जाना और पूछनेपर उन्हें इसका कारण बताना ( शान्ति० १२४ । ५८- ६२ ) । बलिको त्याग - कर इन्द्रके पास आना और उनके साथ इनका संवाद ( शान्ति० २२५ । ५ – १९ । इन्द्र और नारदको इनका दर्शन देना ( शान्ति० २२८ । १६ ) । इन्द्रके पूछनेवर असुरोंके सद्गुण और दुर्गुणोंका वर्णन ( वन० २२८ । २९-८४ ) । रुक्मिणीके पूछनेपर भृगुपुत्री नारायणप्रिया लक्ष्मीद्वारा अपने निवासयोग्य स्थानोंका वर्णन ( अनु० ११ । ६ - २१ ) । गौओके साथ राज्य - लक्ष्मीका संवाद और इनका गोबर में अपना निवास बनाना ( अनु० ८२ अध्याय ) । इनके द्वारा धर्मके रहस्यका वर्णन (अनु० १२७ । ६-७ ) । (२) दक्ष प्रजापति - की पुत्री एवं धर्म की पत्नी ( आदि० ६६ । १४ ) | लङ्का - राक्षसोंकी राजधानी । राजसूय यज्ञके समय सहदेवने लङ्कापतिसे कर लेने के लिये वहाँ घटोत्कचको भेजा था ( सभा० ३१ | ७२ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७६० से ७६४ तक ) | युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञमैं लङ्कावासी रसोई परोसने का काम करते थे ( वन० ५१ । २३ - २६ ) । यहाँ राक्षसराज रावणकी राजधानी थी; जिसे हनुमान्जीने • जलाया था ( वन० १४८ । ९ ) । ब्रह्माजीने लङ्कापुरी कुबेरको रहनेके लिये दी थी ( वन० २७४ | १६-१७ ) । रावणने इसे कुबेरसे छीन लिया था ( वन० २६५ । ३२(३३) । सीताका अपहरण करके रावणने उन्हें लङ्काकी ही अशोकवाटिका के निकट रमणीय भवनमें रखा था ( वन० २८० । ४१-४२ ) । महापुरी लङ्का त्रिकूटपर्वतकी कन्दरामै बसी है (वन० २८२ । ५६ ) । श्रीरामने वानर-सैनिकोंद्वारा लङ्काके बगीचोंको नष्ट कराया था ( वन० २८३ । ५१ ) । लङ्कापुरीकी सुरक्षाके लिये सुदृढ़ व्यवस्थाका वर्णन ( वन० २८४ । २-६ ) । अङ्गद लङ्का श्रीराम दूत बनकर गये थे (वन० २८४ । ७) । श्रीरामद्वारा लङ्कापर चढ़ाई ( वन० २८४ । २३ )। रावणके मारे जानेपर लङ्काका राज्य विभीषणके अधिकार में दिया गया ( वन० २९१ । ५ ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललाम लङ्घती-एक नदी, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है ( सभा० ९ । २३ ) । लज्जा-दक्ष प्रजापतिकी पुत्री तथा धर्मकी पत्नी । ब्रह्माजीने धर्मकी पत्नियको धर्मका द्वार निश्चित किया है ( आदि० ६६ । १४-१५ ) । लता - एक अप्सरा, जो वर्गाकी सखी थी ( आदि० २१५ । २० ) । ब्राह्मण शापसे इसका ग्राइयोनिमें जन्म ( आदि० २१५ | २३ ) । अर्जुनद्वारा इसका ग्राह-योनिसे उद्धार ( आदि ० २१६ । २१ ) । यह कुबेरकी सभा में रहकर उनकी सेवा में उपस्थित होती है ( सभा० १० । १०-११ ) । लतावेष्ट-द्वारका के दक्षिणभागमें विद्यमान एक पर्वत, जो पाँच रंगका होने के कारण इन्द्र-ध्वज-सा प्रतीत होता था ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८१३० कालम १ ) । लपिता - मन्दपाल ऋषिकी दूसरी भार्या एक शार्ङ्ग, जो जरिताकी सौत थी ( आदि० २२ । १७ ) । मन्दपाल ऋषिका लपित' से जरिताके गर्भसे उत्पन्न हुए अपने बच्चोंके विषय में उत्पन्न हुई चिन्ताका कथन ( आदि० २३२ । २ - ६ ) । लपिताका मन्दपालको फटकारते हुए उनकी उपेक्षा करना ( आदि ० २३२ । ७-१३ ) । लपेटिका - एक तीर्थ, यहाँ स्नान करनेसे तीर्थयात्री वाजपेय यज्ञका फल पाता है और देवताओंद्वारा पूजित होता है ( बन० ८५ । १५ ) । For Private And Personal Use Only लम्पाक- एक देश, यहाँके निवासियोंने कौरवोंकी सेनामें आकर सत्य पर धावा किया था, परंतु सात्यकिने इन्हें. छिन्न-भिन्न कर डाला था ( द्रोण० १२१ । ४२-४३ ) । लम्बपयोधरा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शक्य० ४६ । २१ ) । लम्बनी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ । १८)। लम्बा - स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ । १८)। लय- एक प्राचीन नरेश, जो यमकी सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । २१ ) । ललाटाक्ष- एक देश, यहाँके राजा भेंट लेकर युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञमें आये थे ( सभा० ५१ । १७ ) । ललाम घोड़ोंका एक भेद ( जिस घोड़े के ललाट के मध्य भागमें तारा के समान श्वेत चिह्न हो, उसके उस चिह्नका नाम ललाम है और उस चिह्नसे युक्त अश्वको ललाम कहते हैं। ) (द्रोण० २३ | १३ ) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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