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रामठ
( २८५ )
रुक्मिणी
रामठ-पश्चिम दिशामें निवास करनेवाली एक म्लेच्छ जाति श्रेष्ठ, राक्षसमहेश्वर, राक्षसपति, राक्षसपुङ्गव, राक्षसराज, जिसे नकुलने पश्चिम-दिग्विजयके समय आशामात्रसे ही राक्षसेश्वर, राक्षसेन्द्र आदि । अपने अधीन कर लिया था ( सभा० ३२ । १२)। इस राहु-कश्यपद्वारा सिंहिकाके गर्भसे उत्पन्न (भावि० ६५। जातिके लोग युधिष्ठिरके राजसूय-यशमें बुलाये गये थे-- ३.)। इसके द्वारा कपटपूर्वक अमृतका पान और इसकी चर्चा ( वन० ५१ । २५)।
भगवान् विष्णुके द्वारा इसका शिरश्छेदन (आदि. १९ । रामणीयक-एक द्वीप, जो नागोंका निवासस्थान है (आदि. ४-६)। चन्द्रमा तथा सूर्यके साथ इसका वैर (आदि. २६ । ८)। इसके वन आदिका विशेष वर्णन (आदि.
१९ । ९)। ब्रह्माजीकी सभामें बैठनेवाले ग्रहों के साथ इसका २७।१-९)।
भी नाम आया है (सभा० ११ । २९)। धृतराष्ट्र के प्रति
संजयद्वारा इसका विशेष वर्णन (भीष्म १२।१०-१३)। रामतीर्थ-(१) गोमती नदीका एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और अपने कलकोपवित्र रुक्मरथ-(१)मद्रराज शल्यका पुत्र जोअपने पिता और भाई कर देता है (वन.८४ । ७३)। (२) परशुराम
रुक्माङ्गदके साथ द्रौपदी-स्वयंवरमें आया था (आदि. सेवित महेन्द्रपर्वतपर स्थित एक तीर्थ, जिसमें स्नान करनेसे १८५ । १४)। इसका श्वेतके साथ युद्ध और उसके अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है (वन० ८५।१७)।
बाणोंसे मूञ्छित होना (भीष्म ४७॥ १८-५९)। (३) सरस्वती-तटवर्ती एक तीर्थ; इसका विशेष वर्णन
अभिमन्युके साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा वध (शल्य० ४९। ७-११)।
(द्रोण. ४५। ९-१३) । सहदेवके हाथसे इसके मारे रामहद-कुरुक्षेत्रकी सीमाका निर्धारण करनेवाला एक ह्रद
जानेकी चर्चा (कर्ण० ५। २६) । (२) सुवर्णमय
रथपर चलनेके कारण द्रोणाचार्यका एक नाम रुक्मरथ (शल्य. ५३ । २४) । इसमें काशिराजकी कन्या अम्बाने स्नान किया था ( उद्योग. १८६ । २८)।
भी था (विराट. ५८ । २)। (३) कौरवपक्षके
त्रिगर्तदेशीय राजकुमारोंके एक दलका नाम, जिसने कर्णरामोपाख्यानपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय
की आज्ञासे अर्जुनपर आक्रमण किया था (मोण. २७३ से २९२ तक)।
११२ १९-२५)। रावण-एक राक्षसराज, जो अत्यन्त दुरात्मा था और सीता
रुक्माङ्गद-मद्रराज शल्यका पुत्र, जो अपने पिता और जीको हर ले गया था (वन १४७ । ३३-३४)। यह भाई रुक्मरथके साथ द्रौपदी-स्वयंवरमें आया था (आदि. विश्रवाका पुत्र था। इसकी माताका नाम पुष्पोत्कटा था।
था। इसका माताका नाम पुष्पात्कटा था। १८५| १४)। इसीका छोटा भाई कुम्भकर्ण था (वन० २७५। ७)। वन० २७५ । । रुक्मिणी-नारायण-स्वरूप भगवान् श्रीकृष्णको आनन्द
HTTAm इसकी अद्भुत तपस्या और ब्रह्माजीसे इसका वर माँगना
प्रदान करनेके लिये भूतलपर विदर्भराज भीष्मकके कुलमें (वन० २७५। १६-२५) । इसे कुबेरका शाप उत्पन्न हई लक्ष्मी (आदि०६७ । १५६)। शिशुपाल इन्हे (वन० २७५ । ३४-३५)। मारीचके पास जाकर उसे
चाहता था, परंतु न पा सका (सभा० ४५। १५)। कपटमृग बननेके लिये बाध्य करना (वन० २७८ । ९)। इनका लक्ष्मीसे उनके निवासयोग्य स्थान पूछना (अनु. इसके द्वारा सीताजीका अपहरण (वन० २७८ । ४३)। ११।४)। इनके पुत्रोंके नाम--चारुदेष्ण, सुचारु, इसके द्वारा जटायुके पंखोंका काटा जाना ( वन. चारवेश, यशोधर, चारुश्रवा, चास्यशा, प्रद्युम्न, शम्भु २७९ । ६) । इसे नलकूबरके शापकी चर्चा (वन.
(अनु० १४ । ३३.३४) । महर्षि दुर्वासाद्वारा इनका २८० । ५७-६१)। इसका सीताजीको अपने अनुकूल रथमें जोता जाना (अनु. १५९ । २८-३५)। प्रसन्न होनेके लिये समझाना (वन० २८१ अध्याय)। अङ्गद- हुए दुर्वासाद्वारा इन्हें वर-प्राप्ति ( अनु० १५९ । ४५..का रावणको श्रीरामके संदेश सुनाना (वन २८४ । ४७)। श्रीकृष्णरहित द्वारका और श्रीकृष्णपत्नियोंको १०-१६)। इसका कुम्भकर्णको युद्धके लिये जगाना
देखकर फूट फूटकर रोते हुए अर्जुन जब मूञ्छित होकर (वन० २८६ । २०)। इन्द्रजित्को युद्ध के लिये भेजना
पृथ्वीपर गिर पड़े, तब रुक्मिणी आदि रानियाँ वहाँ दौड़ी (वन० २८८ । २)। सीताजीको मार डालनेके लिये
आयीं और अर्जुनको घेरकर उच्चस्वरसे विलाप करने लगीं। उद्यत होना (वन० २८९ । २७)। श्रीरामद्वारा इसका
उन्होंने अर्जुनको उठाकर उन्हें सोनेकी चौकीपर बिठाया। वध (वन० २९० । ३०)।
उन्हें घेरकर वे चुपचाप बैठ गयीं (मौसल०५।१२महाभारतमें आये हुए रावणके नाम-दशग्रीव, १४)। रुक्मिणीने पतिलोककी प्राप्तिके लिये अग्निमें
दशकन्धर, दशानन दशास्य, पौलस्त्य, पौलस्त्यतनय, प्रवेश किया था ( मौसल. ७।७३)। महाबाहु रक्षःपतिरक्षः, राक्षस, राक्षसाधिर, राक्षसाधिपति, राक्षस- विश्वकर्माने इन्द्रकी प्रेरणासे भगवान् पद्मनाभके लिये जिस
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