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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमेणक ( २८१ ) फल-मूल और पत्तोंद्वारा ऋषियोंका पूजन करके इनका रवि-(१) ये विवस्वान्के बोधक माने गये हैं ( भादि० अभिलषित सिद्धि प्राप्त करना (शान्ति० २९२।७)। इन्होंने १।४२)। (२) सौवीर देशका एक राजकुमार, कभी मांस नहीं खाया था (अनु० ११५। ६३)। वसिष्ठ जो जयद्रथके रथ के पीछे हाथमें ध्वजा लेकर चलता था, मुनिको विधिवत् अर्घ्यदान करनेसे इन्हें श्रेष्ठ लोकोंकी प्राप्ति (वन० २६५ । १०)। अर्जुनद्वारा इसका वध (वन० (अनु. १३७ । ६)। ये सायं-प्रातः स्मरण करनेयोग्य २७१ । २७)। (३) धृतराष्ट्रका एक पुत्र, जो भीमनरेशोंमें गिने गये हैं (अनु. १५० । ५१)। सेनद्वारा मारा गया (शल्य. २६ । १४-१५)। रभेणक-तक्षक-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्प- रश्मिवान्-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३६)। सत्रमें जल मरा था (भादि० ५७ । ८)। रसातल-पृथ्वीके नीचेका एक लोक । प्रलयके समय संवर्तक रमठ-एक म्लेच्छ जाति, जो मान्धाताके शासनकालमें उनके नामक अग्नि पृथ्वीका भेदन करके रसातलतक पहुँच जाती है राज्यमें निवास करती थी (शान्ति०६५। १४-१५)। (वन० १८८ । ६९-७०)। दैत्योंद्वारा उत्पन्न की हुई रमण-(१) ये सोम नामक वसुके द्वारा मनोहराके गर्भसे कृत्या दुर्योधनको साथ ले रसातलमें प्रविष्ट हई थी (वन. उत्पन्न हुए थे (आदि०६६ । २२)।(२)द्वारकाके २५१ । २९ ) । रसातल पृथ्वीका सातवाँ तल है। समीपवर्ती एक दिव्य वन (सभा० ३८ । २९ के बाद यहाँ अमृतसे उत्पन्न हुई गोमाता सुरभि निवास करती हैं दा. पाठ, पृष्ठ ८१३, कालम १)। (उद्योग. १०२।१)। रसातल-निवासियोंने पूर्वकालमें रमणक-एक वर्ष, जो श्वेतपर्वतके दक्षिण और निषधपर्वत- एक गाथा गायी थी, जो इस प्रकार है-नागलोक, स्वर्गके उत्तर स्थित है। वहाँ जो मनुष्य जन्म लेते हैं, वे उत्तम लोक तथा वहाँके विमानमें निवास करना भी वैसा सुखकुलसे युक्त और देखनेमें अत्यन्त प्रिय होते हैं । वहाँके सब दायक नहीं होता जैसा कि रसातलमें रहनेसे सुख प्राप्त मनुष्य शत्रुओंसे रहित होते हैं । रमणकवर्षके मनुष्य सदा होता है (उद्योग. १०२।१४-१५)। भगवान् वराहप्रसन्नचित्त होकर साढ़े ग्यारह हजार वर्षांतक जीवित रहते ने रसातलमें जाकर देवद्रोही असुरोंको अपने खुरोंसे है (भीष्म० ८।२-४)। विदीर्ण कर दिया (शान्ति. २०६ । २६)। हयग्रीवरमणचीन-दक्षिण भारतका एक जनपद ( भीष्म. रूपधारी भगवान् श्रीहरिने रसातलमें प्रवेश करके मधु ९।६६)। और कैटभके अधिकारमें हुए वेदोंका उद्धार किया रम्भा-एक अप्सरा, जो प्राधाके गर्भसे कश्यपद्वारा उत्पन्न (कान्ति० ३४७ । ५४-५८) । राजा वसु केवल एक हुई थी ( आदि०६५। ५०)। यह अर्जुनके जन्मो- बार मिथ्याभाषण करनेके दोषसे रसातलको पास हुए त्सवमें नृत्य करने आयी थी ( आदि० १२२ । ६२)। (अनु. ६ । ३४, आश्व० ९१ । २३)। रसातल कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है (सभा भगवान् अनन्तका सनातन धाम है । बलदेवजी प्रभास१०।१०)। इसने इन्द्रसभामें अर्जुनके स्वागतार्थ नृत्य क्षेत्रमें अपने मानव-शरीरका परित्याग करके रसातलमें किया था (वन० ४३ । २९) । यह नलकूबरकी पत्नी प्रविष्ट हुए थे (स्वर्गा० ५। २३)। होकर रहती थी, इसीका तिरस्कार करनेके कारण रावणको रहस्या-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा नलकूबरने यह शाप दे दिया था कि 'तू न चाहनेवाली किसी पीती है ( भीष्म० ९ । १९)। स्त्रीके साथ बलात्कार नहीं कर सकता। यदि करेगा तो तुझे प्राणोंसे हाथ धोना पड़ेगा'(बन० २४०।६०)। राका-(१) पूर्णिमा तिथिकी अधिष्ठात्री देवी, जो मूर्तिमती विश्वामित्रके शापसे इसको पत्थर होना पड़ा था (अनुल होकर स्कन्दके जन्म-समयमें वहाँ पधारी थी(पाल्प ।")। कुवेरकी सभामें अष्टावक्रके स्वागतमें इसने ४५ । १४)। (२) एक राक्षस-कन्या, जो कुबेरकी नृत्य किया था (अनु० १९ । ४०)। आशासे महर्षि विश्रवाकी परिचर्यामें रहती थी। विश्रवाने रम्यक-नीलगिरिको लाँघनेपर रम्यकवर्ष मिलता है । अपनी इसके गर्भसे 'सर' नामक पुत्र तथा शूर्पणखा नामकी उत्तर-दिग्विजयके समय अर्जुनने इस वर्षको जीतकर वहाँ कन्याको जन्म दिया था (वन.२७५।३-४)। के निवासियोंपर कर लगाया था (सभा०२८।। के बाद राक्षस-एक प्रकारका विवाह (आदि०७३।१)।(युद्ध दा. पाठ, पृष्ठ ७४९, कालम )। करके मार-काट मचाकर रोती हुई कन्याको उसके रोते रम्यग्राम-एक राजधानी अथवा राजा जिसे दक्षिण-दिग्विजय- हुए भाई-बन्धुओंसे छीन लाना 'राक्षस' विवाह माना गया के समय सहदेवने अपने अधिकारमें कर लिया था (समा० है।) यह विवाह क्षत्रियों के लिये, उनमें भी राजाओंके ३३।४)। लिये ही विहित है (आदि.. 1-11)। माना०३६ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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