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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यौवनाश्व ( २८० ) रन्तिदेव यौवनाश्व-युवनाश्वके पुत्र मान्धाता (सभा. ५३ । रथध्वान-शंयु-पुत्र वीर नामक अग्निका नामान्तर (वन. २१)। (विशेष देखिये मान्धाता) २१९ । ९-१०)। ( देखिये वीर) रथन्तर-(१)रथन्तर' नामक साम, जो मूर्तिमान् होकर ब्रह्माजीकी सभामें विराजमान होता है (सभा०।। रकार-धृतराष्ट्रके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके ३०)। वसिष्ठ मुनिने रथन्तर' सामके द्वारा इन्द्रका सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । १८)। मोह दूर करके उन्हें प्रबुद्ध किया था (शान्ति० २८१ । रक्षिता-एक अप्सरा, जो प्राधाके गर्भसे कश्यपद्वारा उत्पन्न २१-२६, आश्व०११।१८-१९) । (२) पाञ्चजन्य हुई थी ( आदि० ६५। ५.)। नामक अग्निके पुत्र, जिनका दूसरा नाम 'तरसाहर' है। रक्षोवाह-एक देश । परशुरामजीने यहाँके निवासी क्षत्रियों ये पाञ्चजन्यके मुखसे प्रकट हुए थे (वन० २२० । ७)। का संहार किया था (द्रोण०७०।१२)। रथन्तर्या ( रथन्तरी )-सम्राट् दुष्यन्तकी माता । रख-एक प्राचीन नरेश, संजयद्वारा की गयी प्राचीन शकुन्तलाकी सास । इनके द्वारा शकुन्तलाको आशीर्वाद राजाओंकी गणनामें इनका नाम है ( आदि० । (आदि०७४ । १२५ के बाद दा० पाठ)।(रथन्तर्या' २३२ )। विराटके गोग्रहणके समय कौरवोंके साथ होने- यह नाम दाक्षिणात्य पाटके अनुसार है । नीलकण्ठीके वाले अर्जुनके युद्धको देखनेके लिये इन्द्रके विमानमें अनुसार) इनका नाम रयन्तरी' या (आदि ९४ । १७)। बैठकर ये भी आये थे (विराट० ५६ । १०)। महा- ये महाराज ईलिनकी पत्नी थीं । इनके पाँच पुत्र हुए, राज युवनाश्वद्वारा इक्ष्वाकुवंशी रघुको खगकी प्राप्ति हुई और जिनके नाम इस प्रकार हैं--दुष्यन्त, शूर, भीम, प्रवसु इन्होंने उसे हरिणाश्वको प्रदान किया (शान्ति. १६६ । .८)। इन्होंने मांसभक्षणका निषेध किया था, जिससे २८)। इवें परावर-तस्वका ज्ञान प्राप्त हो गया था ( अनु. रथप्रभु-शंयु-पुत्र वीर नामक अग्निका नामान्तर (बन. १५। ५९-६.)। राजा रघुको प्रणाम करनेवाला २१९ । ९-१०)। ( देखिये वीर ) क्षत्रिय संग्रामविजयी होता है (अनु. १५०।८१)। रथवाहन-विराटके भाई, जो पाण्डवोंकी ओरसे युद्ध कर र जो मायं-प्रातः इनके नामका कीर्तन करता है, वह धर्मफलका रहे थे (द्रोण. १५८। ४२)। भागी होता है ( अनु० १६५ । ५१-६०)। रथसेन-पाण्डवपक्षके एक योद्धा, जिनके रथमें मटरके फूलके रज-स्कन्दका एक सैनिक (अल्प० ४५ । ७३)। समान रंगवाले घोड़े जुते हुए थे। उन घोड़ोंकी रोमराजि रजि-ये आयुद्वारा स्वर्भानुकुमारीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। श्वेत-लोहित वर्णकी थी (द्रोण० २३ । ६२)। इनके चार भाई और थे, जिनके नाम हैं-नहुष, वृद्ध- - रथस्था-गङ्गाजीकी सात धाराओंमेंसे एक, जिसका जल पीने . शर्मा, गय तथा अनेना (आदि० ७५ । २५-२६)। से मनुष्यके सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं (आदि. रणोत्कट-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६८)। १६९ । २०-२१)। रता-दक्षकी पुत्री, जो धर्मकी पत्नी हैं । इनके गर्भसे रथाक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्प० ४५ । ६३)। अहः नामक वसुका जन्म हुआ है (आदि० ६६ । १७- रथातिरथसंख्यानपर्व-शान्तिपर्वका एक अवान्तर पर्व २०)। (अध्याय १६५ से १७२ तक)। रति-(१) ये धर्म पुत्र कामदेवको पत्नी हैं (आदि. ६६। रथावर्त-शाकम्भरी देवीके दक्षिणार्ध भागमें स्थित एक तीर्थ। ३२-३३) । ब्रह्माजीकी सभामें रहकर ये उनकी उपा- यहाँकी यात्रा करनेवाला श्रद्धालु पुरुष महादेवजीकी कृपासे सना करती हैं (सभा० ११ । ४३)। (२) अलका- परमगति प्राप्त कर लेता है (वन० ८४ । २३)। पुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रके स्वागतके रन्तिदेव-एक प्राचीन नरेश (आदि. १।२२६)। अवसरपर कुबेर-भवनमे नृत्य किया था ( अनु० १९ । ये राजा संकृतिके पुत्र थे। संजयको समझाते हुए नारदजी द्वारा इनके अतिथि-सत्कार और दान आदिका वर्णन रतिगुण-एक देवगन्धर्व, जो कश्यपके द्वारा प्राधाके गर्भसे (द्रोण.६० अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा इनके दान और उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५। ४७)। अतिथि-सत्कार आदिका वर्णन (शान्ति० २९ । १२०रथचित्रा-भारतवर्षकी प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके १२९) । वसिष्ठको शीतोष्ण जलका दान करके इनका निवासी पीते हैं (भीम. ९।२६)। स्वर्गलोकमें प्रतिक्षित होना (शान्ति २३४।१०)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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