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यौवनाश्व
( २८० )
रन्तिदेव
यौवनाश्व-युवनाश्वके पुत्र मान्धाता (सभा. ५३ । रथध्वान-शंयु-पुत्र वीर नामक अग्निका नामान्तर (वन. २१)। (विशेष देखिये मान्धाता)
२१९ । ९-१०)। ( देखिये वीर) रथन्तर-(१)रथन्तर' नामक साम, जो मूर्तिमान् होकर
ब्रह्माजीकी सभामें विराजमान होता है (सभा०।। रकार-धृतराष्ट्रके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके
३०)। वसिष्ठ मुनिने रथन्तर' सामके द्वारा इन्द्रका सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । १८)।
मोह दूर करके उन्हें प्रबुद्ध किया था (शान्ति० २८१ । रक्षिता-एक अप्सरा, जो प्राधाके गर्भसे कश्यपद्वारा उत्पन्न
२१-२६, आश्व०११।१८-१९) । (२) पाञ्चजन्य हुई थी ( आदि० ६५। ५.)।
नामक अग्निके पुत्र, जिनका दूसरा नाम 'तरसाहर' है। रक्षोवाह-एक देश । परशुरामजीने यहाँके निवासी क्षत्रियों
ये पाञ्चजन्यके मुखसे प्रकट हुए थे (वन० २२० । ७)। का संहार किया था (द्रोण०७०।१२)।
रथन्तर्या ( रथन्तरी )-सम्राट् दुष्यन्तकी माता । रख-एक प्राचीन नरेश, संजयद्वारा की गयी प्राचीन शकुन्तलाकी सास । इनके द्वारा शकुन्तलाको आशीर्वाद
राजाओंकी गणनामें इनका नाम है ( आदि० । (आदि०७४ । १२५ के बाद दा० पाठ)।(रथन्तर्या' २३२ )। विराटके गोग्रहणके समय कौरवोंके साथ होने- यह नाम दाक्षिणात्य पाटके अनुसार है । नीलकण्ठीके वाले अर्जुनके युद्धको देखनेके लिये इन्द्रके विमानमें अनुसार) इनका नाम रयन्तरी' या (आदि ९४ । १७)। बैठकर ये भी आये थे (विराट० ५६ । १०)। महा- ये महाराज ईलिनकी पत्नी थीं । इनके पाँच पुत्र हुए, राज युवनाश्वद्वारा इक्ष्वाकुवंशी रघुको खगकी प्राप्ति हुई और जिनके नाम इस प्रकार हैं--दुष्यन्त, शूर, भीम, प्रवसु इन्होंने उसे हरिणाश्वको प्रदान किया (शान्ति. १६६ । .८)। इन्होंने मांसभक्षणका निषेध किया था, जिससे २८)। इवें परावर-तस्वका ज्ञान प्राप्त हो गया था ( अनु. रथप्रभु-शंयु-पुत्र वीर नामक अग्निका नामान्तर (बन. १५। ५९-६.)। राजा रघुको प्रणाम करनेवाला २१९ । ९-१०)। ( देखिये वीर ) क्षत्रिय संग्रामविजयी होता है (अनु. १५०।८१)।
रथवाहन-विराटके भाई, जो पाण्डवोंकी ओरसे युद्ध कर
र जो मायं-प्रातः इनके नामका कीर्तन करता है, वह धर्मफलका रहे थे (द्रोण. १५८। ४२)। भागी होता है ( अनु० १६५ । ५१-६०)।
रथसेन-पाण्डवपक्षके एक योद्धा, जिनके रथमें मटरके फूलके रज-स्कन्दका एक सैनिक (अल्प० ४५ । ७३)।
समान रंगवाले घोड़े जुते हुए थे। उन घोड़ोंकी रोमराजि रजि-ये आयुद्वारा स्वर्भानुकुमारीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। श्वेत-लोहित वर्णकी थी (द्रोण० २३ । ६२)। इनके चार भाई और थे, जिनके नाम हैं-नहुष, वृद्ध-
- रथस्था-गङ्गाजीकी सात धाराओंमेंसे एक, जिसका जल पीने
. शर्मा, गय तथा अनेना (आदि० ७५ । २५-२६)। से मनुष्यके सभी पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं (आदि. रणोत्कट-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६८)। १६९ । २०-२१)। रता-दक्षकी पुत्री, जो धर्मकी पत्नी हैं । इनके गर्भसे रथाक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्प० ४५ । ६३)।
अहः नामक वसुका जन्म हुआ है (आदि० ६६ । १७- रथातिरथसंख्यानपर्व-शान्तिपर्वका एक अवान्तर पर्व २०)।
(अध्याय १६५ से १७२ तक)। रति-(१) ये धर्म पुत्र कामदेवको पत्नी हैं (आदि. ६६। रथावर्त-शाकम्भरी देवीके दक्षिणार्ध भागमें स्थित एक तीर्थ।
३२-३३) । ब्रह्माजीकी सभामें रहकर ये उनकी उपा- यहाँकी यात्रा करनेवाला श्रद्धालु पुरुष महादेवजीकी कृपासे सना करती हैं (सभा० ११ । ४३)। (२) अलका- परमगति प्राप्त कर लेता है (वन० ८४ । २३)। पुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रके स्वागतके
रन्तिदेव-एक प्राचीन नरेश (आदि. १।२२६)। अवसरपर कुबेर-भवनमे नृत्य किया था ( अनु० १९ ।
ये राजा संकृतिके पुत्र थे। संजयको समझाते हुए नारदजी
द्वारा इनके अतिथि-सत्कार और दान आदिका वर्णन रतिगुण-एक देवगन्धर्व, जो कश्यपके द्वारा प्राधाके गर्भसे
(द्रोण.६० अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा इनके दान और उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५। ४७)।
अतिथि-सत्कार आदिका वर्णन (शान्ति० २९ । १२०रथचित्रा-भारतवर्षकी प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके १२९) । वसिष्ठको शीतोष्ण जलका दान करके इनका निवासी पीते हैं (भीम. ९।२६)।
स्वर्गलोकमें प्रतिक्षित होना (शान्ति २३४।१०)।
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