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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ययाति इनके पास जाना और अपने ऋतुकालको सफल बनानेके लिये प्रार्थना करना; इस विषय में ययाति और शर्मिष्ठाका संवाद | शर्मिष्ठाके कथन की यथार्थताको स्वीकार करके ययातिका धर्मानुसार उसे अपनी भार्या बनाना और इनके साथ सहवास करके शर्मिष्ठाका एक देवोपम पुत्रको जन्म देना ( आदि ० ८२ । ११ – २७ ) । ययातिको देवयानीसे यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्रको तथा शर्मिष्ठा के गर्भसे, अनु तथा पूरु नामक तीन पुत्रोंको जन्म देना ( आदि० ८३ । ९-१० ) । वनमें शर्मिष्ठा के पुत्रोको खेलते देख देवयानीका ययातिसे उनके विषय में पूछना । ये ययातिके ही पुत्र हैंयह पता लगनेपर देवयानीका इनसे रूठकर पिताके पास जाना और ययातिका भी उसे मनानेके लिये उसके पीछेपीछे जाना ( आदि० ८३ । ११ – २७ ) | पुत्रीके मुखसे ययातिका अपराध सुनकर शुक्राचार्यद्वारा इनको जराग्रस्त होने का अभिशाप ( आदि० ८३ । २८ - ३१ ) । ययातिका अपनी सफाई देना और शुक्राचार्यसे जरावस्थाकी निवृत्तिके लिये प्रार्थना करना ( आदि० ८३ । ३२-३८ ) । शुक्राचार्यका ययातिको दूसरेसे जवानी लेकर इस बुढ़ापाको उसके शरीर में डाल देनेकी सुविधा देना और जो पुत्र अपनी युवावस्था दे, उसीके लिये राजा होने का वर प्रदान करना ( आदि० ८३ । ३९४२ ) । इनका यदुसे उनकी युवावस्था माँगना और उनके अस्वीकार करनेपर इनका उन्हें उनकी संतानको राज्याधिकार से वश्चित होनेका शाप देना ( आदि० ८४ | १ - ९ ) । इनका तुर्वसुसे युवावस्था माँगना और उनके - द्वारा स्वीकार न करनेपर उनको ग्लेच्छों में राजा होनेका शाप देना ( आदि० ८४ । १०-१५ ) । इनका द्रुह्युसे यौवन माँगना और न देनेपर उन्हें कभी भी उनके मनोरथ सिद्ध न होने, अति दुर्गम देशोंमें रहने तथा राज्याधिकार से वञ्चित होकर 'भोज' कहलानेका शाप देना ( आदि० ८४ । १६-२२ ) । इनका अनुसे उनकी जवानी माँगना और उनके अस्वीकार करनेपर उन्हें जराग्रस्त होने, युवा होते ही उनकी संतानोंको मरने तथा अग्निहोत्रत्यागी बननेका शाप देना ( आदि० ८४ । २३ – २६ ) | इनका पूरुसे उनकी युवावस्था माँगना, पूरुका इनकी आज्ञाको सहर्ष स्वीकार करना तथा उनके आज्ञापालनसे संतुष्ट हो इनका पूरुको वरदान देना ( आदि० ८४ । २७ - ३४ ) । इनका सहस्र तक विषयसेवन करनेसे भी उससे तृप्त न होनेपर वैराग्यपूर्ण उद्गार, पूरुको उनकी जवानी लौटाकर वृद्धावस्था ग्रहण करना और पूरुके राज्याभिषेकका विरोध करनेवाली प्रजाओंको इनका ज्येष्ठ पुत्रों को म० ना० ३४- ( २६५ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ययाति राज्य न देनेका कारण बताकर पूरुके राज्याभिषेक के लिये उनसे अनुमति लेना । प्रजावर्गकी अनुमति मिल जानेपर पूरुका राज्याभिषेक करके इनका वनमें जाना आदि० ८५ । १--३३ ) । इनके पुत्रों में यदुसे यादव, तुर्वसुसे यवन (तुर्क ), द्रुह्युसे भोज, अनुसे म्लेच्छ जातिके लोग और पूरुसे पौरव हुए ( आदि० ८५ । ३४-३५ ) । तपस्या करके इनके स्वर्ग में जाने, वहाँसे गिरने, आकाश में ही ठहरने, वसुमान्, अष्टक, प्रतर्दन और शिविसे मिलकर सत्संगके प्रभावसे पुनः स्वर्गलोक जानेकी संक्षिप्त कथा ( आदि० ८६ । १-६ ) । एक हजार वर्षोंतक इनकी घोर तपस्या और स्वर्गगमन ( आदि० ८६ । १२-१७ ) । इन्द्रके पूछनेपर इनका अपने पुत्र पूरुको दिये हुए उपदेशकी चर्चा करना ( आदि० ८७ अध्याय ) । आत्मप्रशंसा और अन्य सत्पुरुषोंकी निन्दारूप दोष के कारण पुण्य क्षीण होनेसे इन्द्रकी प्रेरणा से इनका स्वर्गसे नीचे गिरना और सत्पुरुषोंके समीप ही गिरनेके लिये इन्द्रसे वर प्राप्त करना ( आदि० ८८ । १–५ ) । इन्हें आकाशसे गिरते देख राजर्षि अष्टकका इनको आश्वासन देते हुए इनका परिचय पूछना (आदि० ८८ । ६ -- १३ ) । ययातिका अष्टकको अपना परिचय देना तथा ययाति और अष्टकका संवाद ( आदि० अध्याय ८९ से ९० तक ) | ययाति और अष्टकका आश्रम- धर्मसम्बन्धी संवाद (आदि० ९१ अध्याय ) । अष्टक ययाति-संवाद और ययातिद्वारा दूसरोंके दिये हुए पुण्यदानको अस्वीकार करना (आदि० ९२ अध्याय ) । इनका वसुमान् और शिविके पुण्यदानको भी अस्वीकार करना, इनकी पुत्री माधवीका आकर इन्हें प्रणाम करना और अपने अष्टक आदि चारों पुत्रोंको इनका परिचय देना तथा दौहित्रोंके पुण्यको अपना ही पुण्य बताकर ययातिसे उसको ग्रहण करने के लिये कहना तथा पुत्री और दौहित्रोंने मेरा उद्धार कर दिया ऐसा कहकर ययातिका उस पुण्यको ग्रहण करना और अष्टक आदि चारों राजाओंके साथ स्वर्ग में जाना, इनके द्वारा शिविकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन और सत्यकी महिमा का वर्णन (आदि ० ९३ अध्याय ) । इनके दो पत्नियाँ थीं— शुक्राचार्यकी पुत्री देवयानी तथा वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठा । इनके वंशका परिचय देनेवाले एक लोकका भाव इस प्रकार है- देवयानीने यदु और तुर्वसु नामवाले दो पुत्रोंको जन्म दिया तथा वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठाने द्रुहयु, अनु और पूरु ये तीन पुत्र उत्पन्न किये ( आदि० ९५ । ७-९ ) । ये यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । ८ ) । इनके द्वारा गुरुदक्षिणा देनेके लिये एक ब्राह्मणको हजार गौओंका दान ( वन० १९५ अध्याय ) । ये For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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