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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारिष ( २५३ ) मार्कण्डेय (वन० १२६ । ३०-३१) । इनके चरित्रका वर्णन मारुतस्कन्ध-देवताओंका एक व्यूह, जिसकी रक्षाका भार (वन० १२६ । ३५-४४)। ये उन राजाओंमेंसे थे, स्कन्दने लिया था (वन० २३१ । ५५)। जिन्होंने वैष्णव-यज्ञ करके उत्तम लोक प्राप्त कर लिये थे मारुताशन-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ६२)। (वन०२५७।५-६)। सञ्जयको समझाते हुए नारदजीद्वारा मारुध-एक राजधानी अथवा राजा जिसे दक्षिण-दिग्विजयइनकी महत्ताका वर्णन (द्रोण० ६२ अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा इनके यज्ञ और प्रभावका वर्णन (शान्ति. २९। के समय सहदेवने जीता था (सभा० ३१ । १४)। ८१-९३)। राजधर्मके विषयमें इन्द्ररूपधारी विष्णुके मार्कण्डेय-(१) एक सुप्रसिद्ध महामुनि, जो युधिष्ठिरकी साथ संवाद (शान्ति. ६४ । १६--३०; शान्ति० ६५ सभामें विराजमान होते थे (सभा० ४ । १५)। ये अध्याय)। अङ्गिरापुत्र उतथ्यका इन्हें राजधर्मके विषयमें ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना करते हैं (सभा. उपदेश (शान्ति० अध्याय ९० से ११ तक)। इनका ११।२२)। इनके द्वारा पाण्डवोंको धर्मका आदेश अननरेश वसुहोमसे दण्डकी उत्पत्ति आदिका प्रसंग पूछना (वन० २५। ८-१८) । इन्होंने पयोष्णीके तटपर (शान्ति० १२२ । ११-१३)। इन्होंने एक ही दिनमें उसकी महिमा तथा राजा नृगकी महत्ताके विषयमें गाथा सारी पृथ्वी जीत ली थी (शान्ति. १२४।१६)। इनके गायी थी (वन०८८।५-७)। इनके द्वारा कर्मफलद्वारा इन्द्रका अतिक्रमण (शान्ति. ३५५ । ३)। बृह- भोगका विवेचन (वन० १८३ । ६१-१५)। इनका स्पतिजीसे गोदानके विषयमें प्रश्न करना (अनु. ७६।। युधिष्ठिरके प्रश्नोंके अनुसार महर्षियों तथा राजर्षियोंके जीवन४)। ये सदा लाखों गोदान करते थे ( अनु० ८१। सम्बन्धी विविध उपदेशपूर्ण कथाएँ सुनाना (वन० ५-६) । इनके द्वारा मांस-भक्षण-निषेध (अनु० ११५ । अध्याय १८६ से २३२ तक) । मार्कण्डेयजीन हजार६१)। हजार युगोंके अन्तमें होनेवाले अनेक महाप्रलयोंके दृश्य मारिष-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६०)। देखे हैं। संसारमें इनके समान बड़ी आयुवाला दूसरा कोई पुरुष नहीं है। महात्मा ब्रह्माजीको छोड़कर दूसरा मारिषा-(१)दस प्रचेताओंकी पत्नी, प्राचेतस दक्षकी कोई इनके समान दीर्घायु नहीं है । जब यह संसार देवता, माता (आदि.७५। ५)। (२) भारतवर्षकी एक दानव तथा अन्तरिक्ष आदिसे शून्य हो जाता है, उस प्रलयनदी, जिसका जल यहाँके निवासी पीते हैं (भीष्म०९। कालमें केवल ये ही ब्रह्माजीके पास रहकर उनकी उपासना करते हैं। प्रलयकाल व्यतीत होनेपर ब्रह्माजीके द्वारा रची मारीच-एक राक्षस (जो ताटका राक्षसीका पुत्र और गयी जीव-सृष्टिको सबसे पहले ये ही अच्छी तरह देख पाते सुबाहका भाई था)। विश्वामित्रके यज्ञमें विघ्न डालनेके हैं। इन्होंने तत्परतापूर्वक चित्तवृत्तियोंका निरोध करके सर्वकारण इसका भाई सुबाहु श्रीरामके हाथों मारा गया और लोकपितामह साक्षात् लोकगुरु ब्रह्माजीकी आराधना की है मारीचको भी गहरी चोट खानी पड़ी (सभा० ३८ । २९ और घोर तपस्याद्वारा मरीचि आदि प्रजापतियोंको भी जीत के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७९४) । यह कपट-मृग लिया है। ये भगवान् नारायणके समीप रहनेवाले भक्तोंमें बनकर सीताजीका हरण करानेमें कारण हुआ (वन. सबसे श्रेष्ठ हैं । परनोकमें इनकी महिमाका सर्वत्र गान होता १४७ । ३४ ) । इसका रावणको समझाना (वन० २७८ । है। इन्होंने सर्वव्यापक परब्रह्मकी उपलब्धिके स्थानभूत ६-७)। रावणकी सहायता करना स्वीकार करके अपना हृदयकमलकी कर्णिकाका यौगिक कलासे अलौकिक उदघाटनश्राद्ध-तर्पण करनेके पश्चात् मृगरूप धारण करके इसका कर वैराग्य और अभ्याससे प्राप्त हुई दिव्य दृष्टिद्वारा विश्वसीताको लुभाना ( वन० २७८ । १०)। श्रीरामके रचयिता भगवान्का अनेक बार साक्षात्कार किया है । इसअमोघ बाणसे इसकी मृत्यु, मरते समय इसका रामके लिये सबको मारनेवाली मृत्यु तथा शरीरको जर्जर बना देनेसमान स्वरमें आर्तनाद करके प्राण त्यागना (वन० २७८ । वाली जरा इनका स्पर्श नहीं करती (वन. १८८।२११-२३)। ११)। इनके द्वारा बालमुकुन्दका दर्शन (वन० १४८ । ९२)। इनका बालमुकुन्दके उदरमें प्रवेश और उसमें मारुत-एक दक्षिण भारतीय जनपद, धृष्टद्युम्नद्वारा निर्मित ब्रह्माण्ड-दर्शन (वन.१८८।१००-१२५)। उदरसे क्रौञ्चारुणब्यूहके दाहिने पक्षका आश्रय लेकर यहाँके बाहर निकलनेपर बालमुकुन्दके साथ इनका वार्तालाप योद्धा खड़े थे (भीष्म० ५० ५.)। (वन. १८८ । १३० से १८९ । ४९ तक)। इनके मारुतन्तव्य-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु० द्वारा श्रीकृष्णकी महिमाका प्रतिपादन (वन. १८९ । ४। ५४)। ५३-५७)। इनके द्वारा कलियुगके समयके बर्तावका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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