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माकन्दी
( २५१ )
माद्री
माकन्दी-राजा द्रुपदका गङ्गातटवर्ती नगर ( आदि. मातरिश्वा-गरुड़की प्रमुख संतानोंसे एक (उद्योग १३७ । ७३)।
१०३ । १४)। मागध-कौरव-पक्षके मगधदेशीय योद्धा (भीष्म० ५१। मातलि-इन्द्रका सारथि । इसका अर्जुनको स्वर्गलोकमें १२)।
चलनेके लिये इन्द्रका संदेश सुनाना ( वन० ४२ । माघ-(बारह महीनों मेंसे एक, जिस मासकी पूर्णिमाको ११-१४)। इसका अर्जुनको इन्द्र के दिव्य स्थपर बिठा'मघा नक्षत्रका योग हो, उसे 'माघ' कहते हैं। यह
कर गन्धमादनपर ले आना और पाण्डवोंको कर्तव्यकी पौषके बाद और फाल्गुनके पहले आता है। ) माघ मास
शिक्षा देना (वन० १६५। १--५)। इन्द्रका रथ लेकर की अमावास्याको प्रयागराजमें तीन करोड़ दस हजार
श्रीरामकी सेवामें उपस्थित होना (वन० २९० । १३. अन्य तीर्थोंका समागम होता है । जो माघके महीने में
१४)। इसका अपनी पुत्री गुणकेशीके निमित्त वर प्रयागमें स्नान करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर स्वर्गमें
खोजनेके लिये निकलना (उद्योग. ९७ । २०-२१)। जाता है (भनु० २५ । ३६-३८)। जो माघ मासमें
मार्गमें नारदजीसे भेंट और उनके साथ पृथ्वीके नीचेके ब्राह्मणको तिल दान करता है, वह कभी नरक नहीं देखता
लोकमें जाकर वर खोजना (उद्योग० अध्याय ९८ से १०३ है ( अनु० ६६ । ८) । जो माघ मासको नियमपूर्वक
तक)। नागकुमार सुमुखके साथ अपनी कन्याको एक समय भोजन करके बिताता है, वह धनवान् कुलमें
ब्याहनेका निश्चय करना (उद्योग० १०३ । २५-२६)। जन्म लेकर अपने कुटुम्बीजोंमें महत्त्वको प्राप्त होता है
आर्यकसे सुमुखको जामाता बनानेकी बात कहकर इन्द्रके (अनु. १०६ । ३१)। माघ मासकी द्वादशी तिथिको
पास चलनेके लिये प्रस्ताव करना ( उद्योग. १०४ । दिन-रात उपवास करके भगवान् माधवकी पूजा करनेसे १८-२१)। सबके वन्दनीय पुरुषके विषयमें इसका उपासकको राजसूय यज्ञका फल प्राप्त होता है और वह इन्द्रके समक्ष प्रश्न उपस्थित करना (अनु. ९६ । २२ अपने कुलका उद्धार कर देता है (अनु.१०९। ५)। के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ५७८७)। माघ मासके शुक्लपक्षकी अष्टमी तिथिको भीष्मजीने देह- मातृतीर्थ-कुरक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक प्राचीन तीर्थ, त्यागके लिये भगवान् श्रीकृष्णसे आज्ञा माँगी ( अनु. जिसमें स्नान करनेसे संतति बढ़ती है और वह पुरुष कभी १६७ । २८-४५)।
क्षीण न होनेवाली सम्पत्तिका उपभोग करता है (वन० माठरवन-दक्षिणका एक तीर्थ, जहाँ सूर्यके पार्श्ववर्ती देवता ८३ । ५८) माठरका विजयस्तम्भ सुशोभित होता है ( बन० ८८ ।
माद्रवती-अभिमन्युपुत्र राजा परीक्षित्की धर्मपत्नी तथा १.)।
जनमेजयकी माता ( आदि. ९५ । ८५ ) । पाण्डुकी माणिवर-एक यक्ष, जो मन्दराचलमें निवास करते हैं
द्वितीय पत्नी तथा नकुल-सहदेवकी माता माद्रीको भी (वन० १३९ । ५)
'माद्रवती' कहा जाता था (आश्व० ५२ । ५६)। माण्डव्य-एक प्रसिद्ध ब्रह्मर्षि, जो धैर्यवान्, सब धर्मोके
माद्री-मद्रदेशके राजाकी पुत्री, मद्रराज शल्यकी बहिन, ज्ञाता, सत्यनिष्ठ और तपस्वी थे (आदि० १०६ । २.३) (विशेष देखिये अणीमाण्डव्य)
पाण्डुकी द्वितीय पत्नी तथा नकुल सहदेवकी माता । ये
'धृति' नामक देवीके अंशसे उत्पन्न हुई थीं ( आदि. माण्डव्याश्रम-तीर्थस्वरूप एक आश्रम, जहाँ काशिराजकी
६७ । १६०)। साध्वी यशस्विनी माद्रीकी प्रशंसा सुनकन्याने कठोर व्रतका आश्रय लेकर स्नान किया था
कर भीष्मका शस्यके यहाँ जाकर पाण्डुके लिये इनका (उद्योग. १८६ । २८-२९)।
वरण करना, शल्यके कुलधर्मके अनुसार कन्याके शुल्कमातङ्ग-एक मुनि, जिनके वचन प्रमाणरूपमें ग्रहण किये रूपमें इन्हें बहुत धन देना, शल्यका अपनी बहिनको जाते हैं। वे वचन ये हैं-वीर पुरुषको चाहिये कि वह
अलंकृत करके भीष्मजीके हाथमें सौंप देना और भीष्मजीसदा उद्योग ही करे । किसीके सामने नतमस्तक न हो; का माद्रीको साथ लेकर हस्तिनापुरमें आना (आदि. क्योंकि उद्योग करना ही पुरुषका कर्तव्य-पुरुषार्थ है।
११२ । १-१७)। शुभ दिन और शुभ मुहूर्तमें पाण्डुवीर पुरुष असमयमै नष्ट भले ही हो जाय, परंतु कभी द्वारा माद्रीका विधिपूर्वक पाणिग्रहण (आदि.१२ शत्रुके सामने सिर न झुकाये (उद्योग. १२७ ।
१८)। माद्रीका अपने पतिके साथ वनमें निवास १९-२०)।
(आदि० ११३।६)। शापग्रस्त होनेपर संन्यास लेनेका मातङ्गी-क्रोधवशाकी क्रोधजनित कन्या । इसने हाथियोंको निश्चय करके पाण्डुका कुन्तीसहित माद्रीको हस्तिनापुरमें जन्म दिया था (आदि. ६६ । ३१, ६६)।
जानेकी आशा देना। इनका पतिके साथ रहकर वानप्रस्थ-धर्मके
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