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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मयदर्शनपर्व ( २४७ ) मरुत्त अद्भुत चरित्र सुनाना और उनके लिये दिव्य पृथ्वीके शासक थे (आदि । । २२७)। ये यमराजकी सभा बनानेके लिये भूमिको नपवाना (समा..।। सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० १४-२१)। मयासुरका भीमसेन और अर्जुनको गदा ८।१६)। पाँच सम्राटोंमेंसे एक हैं (सभा०१५।१६)।ये एवं शङ्ख लाकर देना और पाण्डवोंके लिये अद्भुन सभा- महाराज अविक्षित्के पुत्र थे। बृहस्पतिजीके साथ स्पर्धा रखनेका निर्माण करना ( सभा० ३ अध्याय) । सभा- के कारण इनके भाई संवर्तने इनका यज्ञ कराया था। साक्षात् का निर्माण करके मयका अर्जुनको उसे दिखाना और भगवान् शङ्करने प्रचुर धनराशिके रूपमें इन्हें हिमालयका एक मायामय ध्वजका निर्माण करके देना (सभा. एक सुवर्णमय शिखर प्रदान किया था। प्रतिदिन यज्ञकार्य४ादा. पाठ, पृष्ठ ६७२)। दक्षिणसमुद्रके निकट सह्य, के अन्तमें इनकी सभा इन्द्र आदि देवता और बृहस्पति मलय और दुर्दुर नामक पर्वतोंके आसपास एक विशाल आदि समस्त प्रजापतिगण सभासद्के रूपमें बैठा करते थे। गुफाके भीतर बने हुए दिव्य भवनमें त्रेतायुगमें मयासुर इनके यज्ञमण्डपकी सारी सामग्रियाँ सोनेकी बनी हुई थीं। निवास करता था। वहीं प्रभावती नामवाली एक तपस्विनी इनके घरमें मरुद्गण रसोई परोसनेका काम किया करते तपस्या करती थी, जिसने हनुमान् आदि वानरोंको नाना थे। विश्वेदेव इनकी राजसभाके सभासद् थे । इन्होंने प्रकारके भोज्य पदार्थ और भाँति-भाँतिके पीने योग्य रस अपनी समस्त प्रजाको नीरोग बना दिया था। इन्होंने दिये थे (वन० २८२ । ४०-४३)। इसके द्वारा देवताओं, ऋषियों और पितरोंको संतुष्ट किया था। त्रिपुरसंज्ञक तीन पुरोंका निर्माण (कर्ण० ३३ । १७)। ब्राह्मणों को शय्या, आसन, सवारी और दुरत्यज स्वर्णराशिमयदर्शनपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय प्रदान की थी। इन्द्र सदा इनका शुभचिन्तन करते थे। २२७ से २३३ तक)। इन्होंने युवावस्थामें रहकर प्रजा, मन्त्री, धर्मपत्नी, पुत्र और भाइयोंके साथ एक हजार वर्षांतक राज्यशासन मयुर-एक विख्यात महान् असुर, जो इस भूतलपर विश्व किया था (द्रोण. ५५ । ३७-४९) । श्रीकृष्णद्वारा नामक राजाके रूपमें उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५ । नारद-मुंजय-संवादके रूपमें इनके प्रभाव एवं यज्ञका वर्णन ३५-३६)। (शान्ति० २९ । १९-२४)। इनका दण्डविषयक मरीचि-(१) ब्रह्माजीके मानस पुत्र | कश्यपके पिता विधान (शान्ति० ५७ । ७)। इन्हें महाराज मुचुकुन्द(आदि०६५ । १०-११; आदि. ७५ । १.)। से खङ्गकी प्राप्ति हुई और इन्होंने रैवतको खड्न प्रदान इनकी उत्पत्तिका वर्णन (अनु. ८५। १०७)। ये किया (शान्ति. १६६ । ७७)। इनके द्वारा अङ्गिराअर्जुनके जन्ममहोत्सवमें पधारे थे (आदि. १२२१ ५२)। को कन्यादान और स्वर्गकी प्राप्ति (शान्ति० २३४।२४ ये इन्द्रकी सभामें विराजते हैं (सभा० ७ । १७)। अनु०१३७१६)। ये करन्धमके पौत्र थे। बृहस्पतिजीसे अपना ब्रह्माजीको सभामें उपस्थित हो उनकी उपासना करते यश कराने के लिये इनकी प्रार्थना और उनके अस्वीकार हैं (सभा.११।१८)। स्कन्दके जन्मकालमें उनके करनेपर ललित एवं दुखी होकर इनका लौटना ( आश्व. पास गये थे (शल्य. ४५।१०)। शरशय्यापर पड़े ६।४--१.)। लौटते समय मार्गमें नारदजीसे भेंट और हुए भीष्मके पास ये भी गये थे (शान्ति० ४७ । १०)। उन्हें अपने शोकका कारण पताना (आश्व० ६ । १५. इन्हें अङ्गिरासे दण्डकी प्राप्ति हुई। इन्होंने उसे भृगुको १६)। नारदजीके बताये अनुसार संवर्तसे इनकी भेंट और दिया था (शान्ति० १२२ । ३.)। ये ब्रह्माजीके उनके पीछे-पीछे जाना (आश्व० ६ । ३०-३३)। प्रथम पुत्र हैं, इन्हें विष्णुने खड्ग दिया और इन्होंने उसे संवर्तके साथ वार्तालाप और उनका साथ न छोड़नेके लिये अन्य महर्षियोको दिया (शान्ति. १६६।६६)। इनका शपथ खाना (आश्व. ७।३-२३) । शिवजीये इक्कीस प्रजापतियोंमेंसे एक हैं (शान्ति०३३४ । ३५)। की कृपासे इन्हें धनकी प्राप्ति ( आश्व० ८।३२ के बाद चित्रशिखण्डी' कहे जाननेवाले ऋषियोंमें इनकी भी दाक्षिणात्य पाठ) । इनका धृतराष्ट्रद्वारा लाये हुए इन्द्रके गणना हे (शान्ति० ३३५।२९)। ये आठ प्रकृतियों संदेशका उत्तर देना (आश्व० १०।६-७)। इन्द्रके में गिने गये हैं (शान्ति. ३४० । ३४)। अग्निकी भयसे भीत होना (आश्व०१०।१६)। यश समाप्त मरीचियों ( किरणों) से मरीचिका प्रादुर्भाव हुआ करके राजधानीको लौटना (आश्व०१०।३५-३५)। ( अनु०८५१०७)। (२) एक स्वगीय अप्सरा (२)एक महर्षि, जिन्होंने शान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर जिसने अर्जुनके जन्ममहोत्सवमें आकर गान-नृत्य किया था जाते हुए श्रीकृष्णको मार्गमें परिक्रमा की थी ( उद्योगः (आदि० १२२ । ६१)। ८३ । २७)। ये इन्द्रसभामें विराजमान होते हैं (सभा. मरुत्त-(१) एक सुप्रसिद्ध सम्राट, जो प्राचीनकालमें इस ")। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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