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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालि ( २१६ ) बाह्यकुण्ड PopuAPPA AAAAAAAwannanowarrr त किये रहता था। इसकी उन्नतिके लिये शुक्रा- (आदि०६५।१७१८)। यही भगदत्तके रूपमें चार्य बराबर प्रयास करते रहते थे (सभा०३८ । २९ पृथ्वीपर उत्पन्न हुआ था (आदि०६७।९)। के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२१)। इसने अनिरुद्धको बाहु-(१) एक शक्तिशाली राजा, जिसे पाण्डवों की ओरसे कैद कर लिया था । नारद जीदाग अनिरुद्धके कैद होनेका रणनिमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था (उद्योग. समाचार णकर बलराम तथा प्रद्युम्नसहित श्रीकृष्णने ४ । २२)। (२) सुन्दरवंशमें उत्पन्न एक कुलनाशक शोणितपुरपर आक्रमण किया । नहाँ शिव, कार्तिकेय, राजा (उद्योग० ०४।१५)। (३) एक प्राचीन अग्नि आदि देवता इसकी राजधानीकी रक्षा कर रहे थे नरेश, जो महाराज सगरके पिता ये (शान्ति० ५७ । (सभा०३८।२० के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२२)। ८)। ये प्राचीनकालमें पृथ्वी के शासक थे; परंतु कालसे तब बाणासुरके लिये भगवान् महेश्वरने श्रीकृष्णके साथ पीडित हो इसे छोड़कर परलोकवासी हो गये (शान्ति. युद्ध किया । तदनन्तर शिवजीको परास्त करके श्रीकृष्ण २२७ । ५१)। बाणासुरके समीप पहुँने और उसके साथ युद्ध आरम्भ किया । भगवान् श्रीकृष्णके साथ युद्धमें चक्रद्वारा इसकी बाहुक-( १ ) कौरव्यकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो भुजाएँ काट डाली गयीं और यह धरतीपर गिर पड़ा जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था ( आदि. ५. । (सभा०३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२३)। १३)। (२)राजा नलका एक नाम, जब कि सूतबाणासुर क्रौञ्चपर्वतका आश्रय लेकर देवसमूहोंको कष्ट अवस्थामें वे अयोध्यानरेश ऋतुपर्णके यहाँ थे (वन० पहुँचाया करता था। यह देखकर महासेन (स्कन्द ) ने ६६ । २०)। (विशेष देखिये-नल)। (३) एक इसपर आक्रमण किया और यह भागकर क्रौञ्चपर्वतमें जाकर वृष्णिवंशी वीर, जिसका पराक्रम प्रकट करने के लिये छिप गया। इसीके कारण स्कन्दने क्रौञ्चपर्वतको विदीर्ण श्रीकृष्ण तथा पाण्डवोंके सामने सात्यकिने चर्चा की है किया था (शल्य० ४६ । ८२-८४)। (२) स्कन्द- (वन० १२० । १९)। का एक सैनिक (शल्य.४५। ६७)। बाहुदन्तक-पुरन्दरद्वारा संक्षिप्त किया हुआ ब्रह्माका नीति बादुलि -विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक ( अनु० शास्त्र, जो दस सहस्त्र अध्यायोंसे घटकर पाँच हजार अध्यायोंका हो गया ( शान्ति० ५९ । ४३)। बाभ्रव्य-एक गोत्रका नाम, गालवमुनि इसी गोत्रमें उत्पन्न बाहुदा-इस तीर्थमें ब्रह्मचर्य-पालनपूर्वक एक रात उपवास हुए थे (शान्ति. ३४२ । १०३)। करनेसे मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है और देवमत्रका बार्हस्पत्य-बृहस्पतिद्वारा संक्षिप्त किरा हआ ब्रह्माजीका फल पाता है (वन. ८४ । ६७-६८; वन० ८७ । २७७ नीतिशास्त्र, जो बार्हस्पत्य कहलाता है और इसमें तीन वन. ९५।४)। (कुछ आधुनिक विचारक अवधहजार अध्याय हैं (शान्ति० ५९ । ८४)। प्रान्तकी धवला या धुमेला नामक नदीको, जो रातीकी बालग्रह-बालकों का नाश करनेवाला एक ग्रह (शान्ति. सहायक है, बाहुदा' कहते हैं । ) यह उन नदियों से १५३ । ३)। एक है, जिसका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म ९ । बालधि-एक प्राचीन शक्तिशाली ऋषि, पुत्रप्राप्ति के लिये १४, २९)। इसके तटपर महर्षि शङ्ख और लिखितके इन्होंने घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर देवताओंने आश्रम ये (शान्ति. २३ । १८-१९)। इस नदीमें इन्हें पुत्रोत्पत्ति के लिये वरदान दिया (वन. १३५। १५ स्नान करके पितरोंके लिये तर्पणकी चेष्टा करते समय ४७)। वरदानके फलस्वरूप इन्हें मेधावी नामक पुत्रकी महर्षि लिखितके कटे हुए हाथ नूतन रूपसे फिर उत्पन्न हो प्राप्ति हुई (वन. १३५ । ४९)। मेधावीने महर्षि गये थे ( शान्ति० २३ । ३९-४०)। धनुषाक्षका अपमान किया, जिससे उन्होंने इसका विनाश बाहुदा-सुयशा-कुरुवंशी परीक्षित्की पत्नी तथा भीमसेनकी कर दिया (वन० १३५ । ५०-५३)। पुत्रके मरनेपर माता ( आदि० ९५। १२)। बालधि मुनिका विलाप (वन १३५। ५३-५४)। बाह्यकर्ण-कश्यपद्वारा कदूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग बालस्वामी-स्कन्दका एक सैनिक (पल्य०४५। ७४)। (आदि० ३५ । ९)। बाष्कल-यह दितिपुत्र हिरण्यकशिपुका पुत्र था। इसके बाह्यकुण्ड-कश्यपवंश उत्पन्न एक नाग ( उद्योग चार भाई और थे-प्रहाद, संहाद, अनुहाद और शिवि १०५।१०)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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