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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलाकी - बलाकी-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक ( आदि०६७ । किया है ( अनु० ९० । २०)। पुष्प, धूप और दीप९८ आदि० ११६ । ७)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया दानके विषयमें शुक्राचार्यसे इनका प्रश्न करना (अनु. था (आदि. १८५।२)। ९८ । १५)। (२) एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी बलाक्ष-एक प्राचीन नरेश, जो विराटके गोग्रहणके समय सभामें विराजते हैं (सभा० ४ । १०)। हस्तिनापुर अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध देखने के लिये इन्द्रके जाते समय मार्गमें इनकी श्रीकृष्णसे भेंट (उद्योग. विमानपर बैठकर आये थे (विराट० ५६ । ९-१०)। ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ )। बलानीक-(१) यह द्रुपदका पुत्र था । अश्वत्थामाद्वारा बलिवाक-एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते हैं इसका वध हुआ था (द्रोण. १५६ । १४१)। (समा० ४ । १४)। (२) ये मत्स्यनरेश विराटके भाई थे और पाण्डवपक्षको पक्षका बलीह-एक क्षत्रियकुल, जिसमें अर्कज नामक कुलाङ्गार सो ओरसे लड़ने आये थे (द्रोण. १५८ । ४२)। राजा उत्पन्न हुआ था ( उद्योग. ७४ । १४)। बलाहक-(१) एक नाग, जो वरुणसभामें रहकर उनकी बलोत्कटा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य. उपासना करता है (सभा०९।९)। (२) सिन्धुराज जयद्रथका एक भाई, जो द्रौपदीहरणके समय बल्लव-(१ अज्ञातवासके समय पाण्डुपुत्र भीमसेनका जयद्रथके साथ आया था (वन० २६५ । १२)। सांकेतिक नाम (विराट० २।१; विराट. ८-७)। (३) भगवान् श्रीकृष्णके रथका एक अश्व, जो दाहिने पार्श्वमें जोता जाता था (विराट० ४५ । २३, द्रोण. (२) एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६२)। १४७ १ ४७)। बहिर्गिरि-एक पर्वतीय प्रदेश, जिसे उत्तर-दिग्विजयके समय बलि (१) ये प्रह्लादजीके पौत्र एवं विरोचनके पुत्र थे । अर्जुनने जीता था (सभा०२७।३)। इसकी गणना इनके पुत्र का नाम बाण था (आदि०६५।२०)। भारतीय जनपदोंमें है (भीष्म. ९ । ५.)। इन्द्रलोकपर इनका आक्रमण और विजय प्राप्त करना बहुदामा-स्कन्द की अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।१०)। (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७८९)। बहुपुत्रिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ३)। इनके द्वारा वामन भगवान्को तीन पग भूमि देनेका संकल्प, भगवान् वामनद्वारा इनका बन्धन । इनको बहुमूलक-कश्यपद्वारा कद्र के गर्भसे उत्पन्न एक नाग पाताललोकमें रहने के लिये भगवान्की आज्ञा (सभा. (आदि. ३५ । १६)। ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७९०)। ये बहयोजना-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६ ।९)। वरुणकी सभामें विराजते हैं (सभा०५।१२)। इनका बहुरूप-ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक (शान्ति० २०८ । १९)। प्रहादसे क्षमा और तेजविषयक प्रश्न करना (वन २८ । ३.४)। बलि और वामनसम्बन्धी कथाका संक्षिप्त बहुल-तालजङ्घ-वंशका एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग. वर्णन (वन० २७२ । ६३-६९)। विरोचनकुमार बलि ७४ । १३)। बाल्यकालसे ही ब्राह्मणोंपर दोषारोपण करते थे, जिससे बहला-(१) एक नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं राज्यलक्ष्मीने उनका त्याग कर दिश (शान्ति. (भीष्म० ९ । २७) । (२) स्कन्दकी अनुचरी । २४) । इन्द्रक आक्षपयुक्त वचनाका कठोर उत्तर मातृका (शल्य०४६ । ३)। देना (शान्ति० २२३ अध्याय) । कालकी प्रबलता बवाद्य-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५५)। बताते हुए इन्द्रको इनकी फटकार (शान्ति० २२४ अध्याय) । लक्ष्मीसे परित्यक्त होनेपर इन्द्रको चेतावनी बह्वाशा-धृतराष्ट्रक सा पुत्रामस बह्वाशी-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक (आदि० ६७ । १०२ देना (शान्ति० २२५ । ३०-३२) । शोक न करने के आदि. ११६।११)। यह भीमसेनद्वारा मारा गया में इन्द्रद्वारा किये गये प्रश्नों का उत्तरोना था (भीष्म०२८ । २९)। २२७ । २१-८८)। विरोचनकुमार बलिको देवताओं- बाण-(१) यह असुरराज बलिका विख्यात पुत्र है तथा ने धर्मपाशमें बाँधकर भगवान् विष्णुके पुरुषार्थसे पाताल- इसे लोग भगवान् शिवके पार्षद महाकालके नामसे जानते वासी बना दिया (अनु.६ । ३५)। जो दोषदृष्टि रखते हैं (आदि. ६५ । २०-२१)। इसकी राजधानीका नाम हुए तथा श्रद्धारहित होकर दान दिया जाता है, उस शोणितपुर था। इसने शिवजीको तीव्र आराधना करके सारे दानको ब्रह्माजीने असुरराज बलिका भाग निश्चित उनसे वरदान प्राप्त किया, जिससे यह देवताओंको सदा For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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