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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्डरीका ( १९९ ) पुरुमित्र धन० ३० । १७) । (२) कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित पुत्-एक नरक, जिससे पिताका उद्धार करनेके कारण बेटेको एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे पुण्डरीक यज्ञका फल 'पुत्र' कहा जाता है (आदि. ७४ । ३९)। मिलता है ( बन० ८३ । ८३)। (३) कश्यपवंशी पुत्रदर्शनपर्व-आश्रमवासिकपर्वका एक अवान्तर पर्व एक नाग (उद्योग० १०३ । १३)। (४) एक (अध्याय २९ से ३६ तक)। दिग्गज (द्रोण० १२१ । २५)। (५) एक तीर्थसेवी पत्रिकासुत-पुत्रीका पुत्र, यह भी प्रणीत' के समान ही ब्राह्मण, जिन्होंने नारदजीसे श्रेयके विषयमें प्रश्न किया माना गया है (इसे छः प्रकारके बन्धुदायादमेंसे एक था । इनको भगवान् नारायणका प्रत्यक्ष दर्शन और समझना चाहिये) (आदि. ११९ । ३३)। उनके साथ परमधामकी प्राप्ति (अनु. १२४ । दाक्षिणात्य पुनश्चन्द्रा-एक तीर्थ, जो शूर्पारकक्षेत्रमें जमदनिकी वेदीपर पाठ)। स्थित है (वन० ८८ । १२)। पुण्डरीका-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधार पुरन्दर-(१) देवराज इन्द्रका एक नाम ( देखिये इन्द्र)। कर नृत्य किया था (आदि. १२२ । ६३)। (२) तप या पाञ्चजन्य नामक अग्निके एक पुत्र । पुण्डरीकाक्ष-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम, पुण्डरीक- तपके तपस्याजनित महान् फलको प्राप्त करनेके लिये अविनाशी परमधाममें स्थित हो अक्षतभावसे विराजमान मानो इन्द्र ही पुरन्दर' नामसे उनके पुत्र होकर प्रकट होनेसे भगवान्को पुण्डरीकाक्ष' कहते हैं ( अथवा हुए (वन० २२१ । ३)। पुण्डरीक-कमलके सदृश अक्षि (नेत्र ) धारण करनेके पुरमालिनी-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते कारण भी वे पुण्डरीकाक्ष' कहे गये हैं।) ( उद्योग हैं (भीष्म० ९।२१)। ७० । ६)। पुरावती-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके पुण्डरीयक-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३४)। वासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २४)। पुण्ड-(१) एक प्राचीन राजा ( आदि० १ । २३४)। परिका-एक प्राचीन नगरी, जहाँ पूर्वकालमै पौरिक नामक (२) एक प्राचीन देश, जिसे महाराज पाण्डुने जीता था राजा राज्य करता था (शान्ति० १११ । ३)। (आदि०११२।२९) (आधुनिक मान्यताके अनुसार मालदाका जिला, कोसी नदीके पूर्व पूर्णियाका कुछ अंश और पुरु-(१) एक प्राचीन क्षत्रियनरेश, जो युधिष्ठिरकी समामें विराजमान होते थे ( सभा० ४ । २७ )। दीनाजपुरका कुछ भाग तथा राजशाहीका सम्मिलित। (२) एक पर्वत, जहाँ पूर्वकालमें पुरूरवाने यात्रा की थी भूभाग 'पुण्ड्र' जनपदके अन्तर्गत रहा है।) पुण्ड्रदेशके निवासी राजा युधिष्ठिरके लिये भेंट लेकर आये थे। (वन० ९० । २२)। (सभा० ५२। १६)। कर्णने भी इस देशको दिग्विजयके पुरुकुत्स-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र भगवान् समय जीता था (कर्ण०८ । १९) । (कहते हैं, पौण्डक यमकी उपासना करते है ( सभा०८।१३)। ये वासुदेव इसी देशका राजा था ।) अश्वमेधीय अश्वकी मान्धाताके पुत्र तथा नर्मदाके पति थे एवं कुरुक्षेत्रके रक्षाके समय अर्जुनने भी इस देशको जीता था ( आश्व० वनमें तपस्या करके सिद्धिको प्राप्त हो स्वर्गलोकमें गये थे ८२ १ २९-३०)। (आश्रम० २० । १२-१३)। पुण्ड्रक-एक प्राचीन क्षत्रिय नरेश, जो युधिष्ठिरकी सभामें पुरुजित्-एक अत्रियनरेश, जो कुन्तिभोजके पुत्र और बैठते थे (सभा० ४ । २३)।ये राजसूय-यज्ञमें कुन्तीक भाई थे। इनके दूसरे भाइका नाम कुन्तिभोज युधिष्ठिर के लिये भेंट लेकर आये थे ( सभा० ५२ था (सभा० १४ । १६-१७ कर्ण०६ । २२)। १८)। इनके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ४६) । दुर्मुखके पुण्य-महर्षि विभाण्डकके आश्रमका नाम (वन०११॥ साथ इनका युद्ध (द्रोण० २५ । ४०-४१)। द्रोणाचार्य द्वारा इनके मारे जानेकी चर्चा (कर्ण०६।२२-२३)। २३)। ये यमराजकी सभामें उनकी उपासना करते थे (सभा. पुण्यकृत्-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३०)। ८ । २०)। पुण्यतोया-एक नदी, जिसे मार्कण्डेयजीने भगवान् बाल- परुमित्र-धृतराष्ट्र के ग्यारह महारथी पुत्रों से एक (आदि मुकुन्दके उदरमें भ्रमण करते समय देखा था (वन० ६३ । ११९ ) जूएके समय यह भी उपस्थित था १८८।१०४)। ( समा० ५८ । १३)। अभिमन्युद्वारा घायल हुआ पुण्यनामा-स्कन्दका एक सैनिक (शक्य०४५। ५९)। था ( भीष्म ७३ । २४)। संजयद्वारा जीवित For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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