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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिच्छिला ( १९८ ) पुण्डरीक पिच्छिला-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पिप्पलाद-एक प्राचीन ऋषि, शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मपीते हैं ( भीष्म०९।२९ )। जीके पास आनेवाले ऋषियोंमें ये भी थे (शान्ति. पिञ्जरक-कश्यप और कद्रसे उत्पन्न एक प्रमुख नाग ४७ । ९)। (आदि. ३५। ६ उद्योग०१०३११)। पिशङ्क-धृतराष्ट्र के वंशमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके पिजला-भारतकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँको सर्पसत्र में जल मरा था ( आदि. ५७।१७)। प्रजा पीती है (भीष्म० ९ । २७)। पिशाच-(१) भूतयोनिविशेष | इनका प्राकट्य अण्डसे पिठर-एक दैत्य, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी हुआ था (आदि.१।३५)। ये कुबेरकी सभामें रहउपासना करता है (सभा० ९ । १३)। कर उनकी सेवा करते हैं (सभा० १०।१६)। ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना करते हैं पिठरक ( पीठरक)-कश्यपवंशी प्रमुख नाग (आदि० (सभा०११।४९) । गोकर्ण तीर्थमें रहकर शिवजीकी ३५ । १४; उद्योग० १०३ । १४)। यह जनमेजयके आराधना करते हैं (वन० ८५ । २५)। मरीचि आदि सर्पसत्र में जल मरा था (आदि. ५७ । १५)। महर्षियोंने पिशाच आदि सब भूतोंकी सृष्टि की थी (वन. पिण्डसेक्का-तक्षक-कुलका एक नाग, जो सर्पसत्रमें जल २७२।१६)। इन्होंने रावणको अपना राजा बनाया मरा था (आदि०५७।८)। था (वन० २७५ । ३८)। पिशाच रक्त पीने और पिण्डारक (पिण्डार)-(१) एक कश्यपवंशी प्रमुख कच्चा मांस खानेवाले होते हैं (द्रोण० ५०। ९-१३)। नाग (आदि० ३५ । ११, उद्योग० १०३।१४)। अलम्बुपके रथमें घोड़ोंकी जगह पिशाच जुते हुए थे यह धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न हुआ और जनमेजयके सर्प (द्रोण. १६७ । ३८)। इन्होंने घटोत्कचके साथ रहकर सत्रमें जल मरा था (आदि० ५७ । १७)। (२) उसकी सहायता की थी और कर्णपर आक्रमण किया था सुराष्ट्र देशमें द्वारकाके निकटका एक तीर्थ, जिसमें स्नान (द्रोण० १७५ । १०९)। खाण्डववन-दाहके समय करनेसे अधिकाधिक सुवर्णकी प्राप्ति होती है ( वन. अर्जुनने इन्हें जीता था (कर्ण० ३७ । ३७) । अर्जुन ८२ । ६५)। यह तीर्थ तपस्वीजनोंदारा सेवित और और कर्णके युद्धके अवसरपर ये उपस्थित थे (कर्ण. कल्याणस्वरूप है (वन० ८८ । २१)। जो मानव ८७ । ५०)। मुञ्जवान् पर्वतपर तपस्या करते हुए पिण्डारक तीर्थमें स्नान करके वहाँ एक रात निवास पार्वतीसहित शिवजीकी पिशाच आदि आराधना करते हैं करता है, वह प्रातःकाल होते ही पवित्र होकर अग्नि- (आश्व० ८। ५-६) । महाभारतकालमें पिशाचलोग प्टोम यज्ञका फल प्राप्त कर लेता है (अनु० २५।। पृथ्वीके राजा होकर उत्पन्न हुए थे (आश्रम०३१ । ५७)। ६)।(२)एक यक्षका नाम (समा०१०।१६)। पितामहसर-एक सरोवर, जो गिरिराज हिमालयके निकट (३) एक भारतीय जनपद, इस जनपदके योद्धा है, इसमें स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता युधिष्ठिरकी सेनामें क्रौञ्चव्यूहके दाहिने पक्षकी जगह खड़े है (वन० ८४ । १४८)। किये गये थे ( भीष्म ५०। ५.)। दुर्योधनकी सेनामें पितृग्रह-पितृसम्बन्धी ग्रह (वन० २३० । ४८)। राजा भगदत्तके साथ पिशाचदेशीय सैनिक थे (भीष्म ८७।८)। श्रीकृष्णने किसी समय पिशाच देशके पिनाक-शिवजीका धनुष (सभा० ३८ । २९ के बाद योद्धाओंको परास्त किया था (द्रोण. ११ । १६)। दाक्षिणात्य पाठ)। इसकी उत्पत्तिका वर्णन (अनु. १४१। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ५९१५) भगवान शंकरके पिशाचग्रह-पिशाचसम्बन्धी ग्रह (वन०२३० । ५२)। पाणि ( हाथ ) से आनत होकर (मुड़कर) उनका उनका पीठ-एक असुर, यह श्रीकृष्णद्वारा मारा गया था (सभा. पाठ-एक असुर, यह धाकृष्ण त्रिशूल धनुषाकार हो गया; अतः उसका नाम ३८ 1 पृष्ठ ८२५, कालम १, द्रोण. ११।५)। पिनाक हुआ (शान्ति० २८९ । १८)। पुच्छाण्डक-तक्षककुलका एक नाग, जो जनमेजयके पिनाकी-ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक, ये ब्रह्माजीके पौत्र तथा सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । ८)। स्थाणुके पुत्र हैं ( आदि० ६६ । १-२; शान्ति० २०८। पुञ्जिकस्थला-दस प्रधान अप्सराओंमेंसे एक । इसने २०)। अर्जुनके जन्मकालमें ये वहाँ पधारे थे ( आदि. अर्जुनके जन्म-महोत्सवमें गान किया था (आदि. १२२ । १२२ । ६८)। ६४)। यह कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना पिप्पलस्थान-जम्बूद्वीपके अन्तर्गत एक भूभागविशेष करती है (सभा० १० । १०)। (भीष्म०६।२)। पुण्डरीक-(१) एक महायज्ञ (सभा. ५ । १००% For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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