________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नारायणस्थान
( १८२ )
निधि
आदि अवता का संक्षेपसे तथा श्रीकृष्णावतारका कुछ वहाँ रहकर जनार्दनकी उपासना करते हैं, वहाँ भगवान् विस्तारसे वर्णन (सभा० ३८ । पृष्ठ ७८४ से ८२६ विष्णु शालग्राम नामसे प्रसिद्ध हैं । ( सम्भवतः यह स्थान तक)। इन्द्रद्वारा इनके अवतारका वर्णन (वन० ४७ । नेपालराज्यान्तर्गत शालग्रामी या गण्डकीके उद्गमके निकट १०)। इनके द्वारा इन्द्रको सान्त्वना तथा नरकासुरका है। जहाँसे शालग्राम-शिलाका प्राकट्य होता है । ) वहाँ
न० १४२ । २५-२७) । इनका वाराह अवतार भगवान विष्णके समीप यात्रा करके मध्य अश्वमेध यशऔर पृथ्वीका उद्धार ( वन० १४५। ४५-४७)। का फल पाता है और विष्णुधाममें जाता है (वन प्रलयकालमें बालमुकुन्द रूपमें मार्कण्डेयको अपने स्वरूप- ८३ । १२५)। का परिचय देना (वन.१८९ । १-४९)। इन्होंने नारायणाश्रम-एक तीर्थ (वन० १२९ । ६)। कुवलाश्वमें अपने तेजको स्थापित किया (वन. २०४ ।
नारायणास्त्रमोक्षपर्व-द्रोणपर्वका एक अवान्तर पर्व १३)। इनके द्वारा स्कन्दको पार्षद-प्रदान (शल्य. ४५। ३७ )। इन्द्र रूपसे मन्धाताको दर्शन दिया
(अध्याय १९३ से २२० तक)। (शान्ति० ६४ । १४)। इन्द्ररूप धारण करके राज
नारीतीर्थ-प्राचीनकालके पाँच तीर्थ, जिन्हें कुछ कालतक धर्मके विषयमें मान्धाताके साथ इनका संवाद ( शान्तिः तापसीने छोड़ रक्खा था। उनके नाम हैं-- अगस्त्यतीर्थ, ६४।१६-३०शान्ति०६५ अध्याय)।नारदजीके पूछनेपर
सोभदनीय, पौलोमतीर्थ, कार धमतीर्थ और भारद्वाज इनका अपने आराध्य त्रिगुणातीत पुरुष सनातन परमात्मा
तीर्थ। इन तीयोंके समीप अर्जुनका अगमन । उनका सौभद्रको ही सर्वश्रेष्ठ बताना (शान्ति० ३३४ । २८--४५)।
तं थमें गोता लगाना और शापवश ग्राहरूपमें वहाँ रहनेराजा उपरिचरपर कृपा (शान्ति० ३३७ । ३३-३५)।
वाली वनामक अप्सराका रद्धार । वर्गाका अर्जुनको नारदजीको अपने चतु!ह स्वरूपोका परिचय कराना
पाँच अप्सराओं को प्राप्त हुए शापकी विस्तृत कथा (शान्ति० ३३९ । १९-७६)। अपने भावी अवतारों- सुनाना ( आदि. २१५ अध्याय)। वर्गाकी प्रार्थनासे का वर्णन करना (शान्ति० ३३९ । ७७--१०८)।
अर्जुनद्वारा शेष चार अप्सराओंका उद्धार और उक्त ब्रह्मादि देवताओंको प्रवृत्ति-निवृत्ति आदि धर्मोंका उपदेश
पाँचौ त र्थोकी नारीतीर्थक न.मसे प्रसिद्धि (आदि० २०६। देना (शान्ति० ३४० । ४९-८९ )। शिवजीके साथ १-२२) । इन तीयोंमें भाइयोसहित युधिष्ठिरका युद्ध और विजय (शान्ति० ३४२ । ११०-११६)। आगमन, स्नान और गोदान (वन० ११८ । ४-७)। नारदजीसे वासुदेवजीका माहात्म्य बतलाना (शान्ति. नाव्याश्रम-राजा लोमपादद्वारा निर्मित आश्रम । जिस ३४४ अध्याय)। नारदजीसे भगवान् वाराहकृत पितरोंके नौकासे उनके राज्यमें ऋष्यशृङ्ग आये थे, उसीके नामपर पूजनकी मर्यादाका वर्णन करना (शान्ति. ३४५ । इसका नामकरण हुआ (वन. ११३।९)। १२--२८ ) । इनस मधु आर कटभको नासत्य-अश्विनीकुमारों से एकका नाम (शान्ति. उत्पत्ति ( शान्ति० ३४७ । २४-२६ ) । २०८।१७)। ब्रह्माजीद्वारा नारायणकी स्तुति, इनका हयग्रीवरूपसे प्रकट होकर मधु-कैटभद्वारा अपहृत हुए वेदोंको ढूँढ़
निकुम्भ (१) प्रह्लाद जीका तृतीय पुत्र (आदि० ६५ । लाना और मधु कैटभके साथ युद्ध करके उन दोनोके वध
१९)। (२) एक विख्यात दानव (आदि० ६५ ।
२६)। (३) हिरण्यकशिपुके कुलमें उत्पन्न एक दैत्य, द्वारा ब्रह्माजीका शोक दूर करना (शान्ति. ३४७ ।
सुन्द-उपसुन्दका पिता (आदि. २०८ । २-३ )। ६९-७१)। इनकी महिमाका वर्णन (शान्ति० ३४७ ।
(४) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ५६)। ८०-५६)। पौष मासमें नारायणके पूजनसे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलका वर्णन (अनु. १०९ । ४)। इनके सहस्र ।
निखर्वट-एक राक्षस, जिमने तार नामक वानरके साथ युद्ध नामोका वर्णन (अनु. १५९ अध्याय)। श्रीकृष्ण इस
किया (वन० २८५ । ९)। लोकसे तिरोहित होनेके बाद अपने नारायण-स्वरूपमें निचन्द्र-एक दानव ( आदि० ६५ । २६)। प्रतिष्ठित हुए (स्वर्गा० ५। २४)।
निचिता-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा महाभारतमें आये हुए नारायणके नाम-कृष्ण, वासुदेव पाती है (भीष्म० ९।१८)। महापुरुष, विष्णु आदि ।
नितम्भू-एक दिव्य महर्षि, ये शरशय्यापर पड़े हुए कालनारायणस्थान ( या शालिग्रामतीर्थ)-एक परम की बाट जोहनेवाले भी मजीको देखनेके लिये आये थे
पवित्र तीर्थ, जहाँ भगवान् विष्णु सदा निवास करते हैं। (अनु. २६ । ।)। ब्रह्मा आदि देवता,तपोधन ऋष, आदित्य, वसु तथा रुद्र भी निधि-शङ्ख' नामक निधि, जिसका दान करके राजा
For Private And Personal Use Only