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नागाशी
नारद
पत्नियोसहित राजा पाण्डु पधारे थे ( आदि० ११८।। इन्होंने सात दिनमें पृथ्वीको जीता था । ये शीलवान
और दयालु थे। अतः इनके गुणोंपर विकी हुई पृथ्वी नागाशी-गरुड़की एक प्रमुख संतान ( उद्योग० १०१।
स्वयं इनके पास आयी थी (शान्ति० १२४। १६.१७)। ९)।
अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होने पर शय खाना ( अनु. नागोछेद-जहाँ सरस्वती अदृश्य भावसे रहती है। उस
९४ । ३१)। इन्होंने जीवन में कभी मास नहीं खाया
था । इन्हें मांसभक्षण-निषेधके कारण परावरतत्त्वका ज्ञान विनशन तीर्थके अन्तर्गत एक तीर्थ, जिसमें सरस्वतीके
हो गया था और अब ये ब्रह्मलोकमें विराज रहे हैं जलका प्रत्यक्ष दर्शन होता है। उसमें स्नान करनेसे नाग
(अनु. ११५ । ५८-६८)। लोककी प्राप्ति होती है (वन० ८२१११२)।
नाभागारिष्ट-वैवस्वतमनुके पुत्र ( आदि० ७५ । १७)। नाचिक-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु०४ ।
नारद (१) एक देवर्षि, जो ब्रह्माजीके मानस पुत्र हैं। ५८)।
ये जनमेजयके सदस्य बने थे ( आदि. ५३।८)। नाचिकेत-एक प्राचीन ऋषि, जो उद्दालकिके पुत्र थे।
ये ही कालान्तरमें देवगन्धर्व होकर कश्यपद्वारा मुनि' के (अनु. ७१।२)। यशपरायण पिताका नाचिकेतको अपनी सेवामें रहनेकी आज्ञा देना । यज्ञका नियम पूर्ण
गर्भसे उत्पन्न हुए हैं ( आदि० ६५ । ४४ )। इन्होंने
तीस लाख श्लोकोंवाला महाभारत देवताओंको सुनाया था होनेपर पिताने पुत्र नाचिकेतको नदीतटपर रखे हुए फूल,
( आदि.१ । १०६-१०७ स्वर्गा० ५। ५६)। फल और समिधा आदि लानेका आदेश देना । नाचिकेत
इन्होंने दक्षके पुत्रों को सांख्यज्ञानका उपदेश दिया था, का नदीतटपर उन वस्तुओंके न मिलनेसे निराश लौटना।
जिससे वे सब के सब विरक्त होकर घरसे निकल गये थे भूखसे पीड़ित पिताका रोषवश पुत्रको यमराजके यहाँ
( आदि. ७५। ७-८)। ये अर्जुनके जन्म-समयमें जाने की बात कहना और पिताके इस शापसे नाचिकेतका
पधारे थे ( आदि. १२२ । ५७)। द्रौपदीके स्वयंवरमें मृत्युको प्राप्त होना (अनु०७१।२-८)। पिताका
अन्य गन्धों और अप्सराओंके साथ गये थे (आदि. पुत्र के लिये दुखी होकर विलाप करना एवं यमराजके
१८६ । .)। द्रौपदीके निमित्त पाण्डवोंका आपसमें यहाँसे लौटकर नाचिकेतका पुनः जीवित होना (अनु.
कोई मतभेद न हो- इस उद्देश्यसे इनका इन्द्र प्रस्थमें ७१।९-१२)। पिताके पूछनेपर नाचिकेतका यमके द्वारा
आगमन (आदि० २०७ । ९)। इनके गुण, प्रभाव प्राप्त हुए स्वागत-सत्कार तथा वहाँके पुण्यलोक-दर्शनका
एवं रहस्यका विशद वर्णन (आदि. २०७। ९ के बाद समाचार बताना (अनु० ७१ । १३-५६)।
दा. पाठ)। इनके द्वारा पाण्डवोंके प्रति सुन्द और नाचीन-एक देश (सभा० ३८ । २९ के बाद दा.
उपसुन्दकी कथाका वर्णन करके द्रौपदीके विषयों परस्पर पाठ)।
फूटसे बचनेके लिये कोई नियम बनानेकी प्रेरणा (आदि. नाटकेय-एक देश ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा०
अध्याय २०८ से १२१ तक)। इनका वर्गा आदि पाठ)।
शापग्रस्त अप्सराओंको आश्वासन और दक्षिण समुद्रके नाडीजल-(१) इन्द्रद्युम्न-सरोवरपर रहनेवाला एक चिर- समीपवर्ती तीथ में रहने का आदेश देना ( आदि० २१६ ।
जीवी बक (वन० १९९ । ७)। (२) एक बकराज, १७) । इनके द्वारा युधिष्ठिरको प्रश्नके रूपमें विविध जो कश्यपजीका पुत्र और ब्रह्माजीका मित्र था। इसका दूसरा मङ्गलमय उपदेश (सभा० ५ अध्याय)। इनके द्वारा नाम राजधर्मा था । देवकन्याके गर्भसे जन्म लेनेके
इद्र, यम, वरुण, कुबेर तथा ब्रह्माजीकी सभाका वर्णन कारण इसके शरीरकी कान्ति देवताके समान दिखायी ( सभा० अध्याय ५ से १५ तक ) । इनका देती थी । यह बड़ा विद्वान् और दिव्य तेजसे सम्पन्न हरिश्चन्द्र की संक्षिप्त कथा सुनाकर युधिष्ठिरको राजसूय था। (शान्ति. १६९ । १९-२०) (विशेष देखिये यज्ञ करने के लिये पाण्डुका संदेश सुनाना (सभा० १२ । राजधर्मा)।
२३-३४) । बाण सुरद्वारा अनिरुद्धके कैद होने की नाभाग वैवस्वतमनुके एक पुत्र ( आदि. ७५। १५)। श्रीकृष्णको सूचना देना (सभा० ३८ । २९ के बाद
ये यमकी सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं दा० पाठ, पृष्ठ ८२२, कालम १ )। राजसूययज्ञमें (सभा० ८। १९)। इन्होंने समुद्रपर्यन्त पृथ्वीको अवभृथ-स्नानके समय इन्होंने युधिष्ठिरका अभिषेक किया जीतकर सत्यके द्वारा उत्तम लोकोंपर विजय पायी थी (सभा० ५३ । १०)। कौरवोंके विनाशके विषयमें (वन० २५। १२ )। इन्होंने दक्षिणाके रूपमें नारदकी भविष्यवाणी ( सभा० ८० । ३३-३५)। सारा राष्ट्र ब्राह्मणों को दे दिया था(शान्ति०९६ । २२)।
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