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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवराष्ट्र ( १७८ ) नागशत नवराष्ट्र-एक देश, जिसे अर्जुनने अज्ञातवासके लिये चुना इनका ऋषियोपर अत्याचार (अनु० ९९ । १०-१३)। था (विराट.१।१३)। (कुछ लोगोंके मतमें बम्बई भृगुजीके शापसे इनका स्वर्गसे पतन (अनु० १००। प्रदेशके अन्तर्गत भड़ौंच नामक जिले में स्थित 'नवसारी' २५)। मांसभक्षण निषेधसे इन्हें परावरतत्वका ज्ञान नामक स्थान ही नवराष्ट्र है।) (अनु० ११५। ६०)। नहुष-(१) कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न हुआ एक प्रमुख महाभारतमें आये हुए नहुषका नाम-देवरान, देवराट देवेन्द्र, जगत्पति, नाग, नागेन्द्र, सुराधिपतिः सुरपति, स्वर्भानुकुमारीके गर्भसे उत्पन्न पाँच पुत्रों से एक सुरेश्वर, सुरेन्द्र आदि । (आदि० ७५ । २५)। इनके पराक्रम और गुणोंका नाकुल-भारतवर्षका एक जनपद ( भीष्म० ५०।५३)। वर्णन (आदि.७५ । २७-२८)। अपने इन्द्रत्वकालमें इनके द्वारा ऋषियोंके बाहन बनाये जानेकी चर्चा नागतीर्थ-(१) कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ, (आदि. ७५ । २९ )। इन्होंने तेज, तप, ओज जिसका सेवन करनेसे मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता और पराक्रमद्वारा देवताओंको तिरस्कृत करके इन्द्रपदका और नागलोकमें जाता है (वन० ८३।१४)। (२) उपभोग किया था( आदि.७५ । २९-३०)। इनके गङ्गाद्वार एवं कनखलके समीप नागराज कपिलका एक पुत्रोंके नाम–यति, ययाति, संयाति, आयाति, अयति तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे मनुष्यको सहस्र कपिलादानका और ध्रुव थे ( आदि.७५ । ३०-३१)। ये यमराजकी फल प्राप्त होता है (वन० ८४ । ३३)। सभामें उपस्थित होते हैं (सभा० ८।८)। अजगर- नागदत्त-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक (आदि० ६७ । योनिमें पड़े हुए इनके द्वारा भीमसेनका पकड़ा जाना १०२)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १५७ । (वन० १७८ । २८)। भीमसेनके पूछनेपर उनसे १९)। अपना परिचय देना (वन. १७१ । १०-२४)। नागद्वीप-सुदर्शन द्वीपके भीतरका एक द्वीप, जो चन्द्रमण्डलयुधिष्ठिरके साथ इनके प्रश्नोत्तर (बन. १८०। ६ से की शशाकृतिमें कानके रूपमें दीखता है (भीष्म०६ । १४१ । ४३ तक)। इनका शापमुक्त होकर पुनः ५५)। स्वर्गगमन (वन० १८१४)। इन्हें ने कभी वैष्णव नागधन्वातीर्थ-सरस्वती-तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ याज किया था और उससे पवित्र हो स्वर्गलोककी यात्रा वासुकिका निवासस्थान है। यहीं इनका नागराजके पदपर की थी ( वन , २५७ । ५)। ये इन्द्रके विमानपर अभिषेक हुआ था। इस तीर्थका विशेष वर्णन (शल्य. बैठकर अर्जुनका युद्ध देखनेके लिये आये थे (विराट. ३७ । ३०-३३)। ५६ । ९)। देवताओंके अनुरोधसे इन्द्र-पदपर इनका नागपूर-नैमिषारण्यमें गोमती-तटपर स्थित एक नगर, जो अभिषेक (उद्योग०११।९)। शचीको देखकर कामासक्त पद्मनाभ नामक नागका निवासस्थान या (शान्ति. होना ( उद्योग. ११।१८-१९)। शचीके विषयमें देवनाओंको इनका उत्तर (उद्योग० १२१६-८)। शचीको कुछ कालकी अवधि देना ( उद्योग. १३ । ७)। नागलोक-नागोंका लोक ( उद्योग. ९९। ।)। सप्तर्षियोंको वाहन बनाना (उद्योग १५ । २२)। इस लोकके राजा वासुकि हैं (आदि. १२७ । ६०)। यहाँ महर्षि अगस्त्यद्वारा इन्हें शाप और इनका स्वर्गसे पतन एक कुण्ड है, जिसका रस पीनेसे एक व्यक्तिमें एक हजार (उद्योग. १७ । १४-१८)। आयुसे खङ्गकी प्राप्ति हाथियों के समान बल हो जाता है (आदि. १२७ । ६८) (शान्ति. १६६ । ७४)। इन्हें पापकी प्राप्ति और इस लोककी स्थिति भूतलसे हजारों योजन दूर है ( आश्व० ऋषियोद्वारा इनका उद्धार (शान्ति० २६२ । ४८.५०)। ५८ । ३२ ३३)। यह लोक सहस्रों योजन विस्तृत है । इनकी इन्द्रपद-प्राप्सिसे लेकर अन्ततककी कथा (शान्ति. इसके चारों ओर दिव्य परकोटे बने हुए हैं। जो चारों ३४२।४४-५२)। च्यवन ऋषिसे उनके मूल्यके विषयमें ओर सोनेकी ईटों और मणि-मुक्ताओंसे अलंकृत हैं। वहाँ संवाद और इनका गौके मूल्यपर संतुष्ट करना ( अनु० स्फटिक मणिकी बनी सीढ़ियोंसे सुशोभित बहुत सी बावड़ियाँ ५१।४-२५)। च्यवनद्वारा इन्हें वर-प्राप्ति ( अनु० निर्मल जलवाली अनेकानेक नदियाँ नाना प्रकारके पक्षियों५१ । ४४ ) । इन्होंने लाखों की संख्यामें गौओंका दान से सुशोभित मनोहर वृक्ष देखनेमें आते हैं। नागलोकका किया था। इससे इन्हें देवदुर्लभ स्थानकी प्राप्ति हुई बाहरी दरवाजा सौ योजन लंबा और पाँच योजन चौड़ा (अनु. ८५। ५-६)। अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी है (आश्व० ५८ । ३७-४०)। होनेपर इनका शपथ खाना (अनु. ९४ । २८)। नागशत-एक पर्वत, जहाँ तपस्याके लिये जाते समय दोनों For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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