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नन्दिवर्धन
नर
जो मनुष्य इसका दूध पी लेगा, वह दस हजार वर्षांतक युवावस्थाके साथ जीवित रहेगा' (आदि०९९ । १५२०)। यो नामक वसुके द्वारा नन्दिनीका अपहरण (आदि. ९९ । २८)। इसका अपहरण करनेके कारण वशिष्ठद्वारा वसुओंको शाप (आदि. ९९ । ३२)। इसके लिये विश्वामित्रकी वशिष्ठसे याचना (आदि० १७४ । १६-१७)। विश्वामित्रद्वारा इसका अपहरण (आदि. १७४ । २२)। अपने विभिन्न अङ्गोंसे हूण, यवनः किगत भादि म्लेच्छों की सुष्ठि करके इसका विश्वामित्रकी सेनाको पराजित करना ( आदि. १७४ । ३२४३)। इसके द्वारा विश्वामित्रकी सेनाके नष्ट होनेका वर्णन ( शल्य. ४० । २१-२२ ) । (२) एक तीर्थ, जहाँ देवसेवित एक कूप है, वहाँ स्नान करनेसे नरमेध-यज्ञका पूर्ण फल प्राप्त होता है (वन०८४ ।
नन्दिवर्धन-मात्यकिके शङ्कका नाम (शल्य. ६१ । ७१
के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। नन्दिवेग-एक क्षत्रियवंश, जिसमें शम' नामवाला कुलाङ्गार नरेश उत्पन्न हुआ था ( उद्योग० ७४ ।
१७)। नन्दिसेन ब्रह्माद्वारा स्कन्दको दिये गये चार पार्षदों से
एक, शेष तीन पार्षद-लोहिताक्ष, घण्टाकर्ण और कुमुदमाली थे (शल्य० ४५ । २४)। नन्दीश्वर-भगवान् शिवके एक दिव्य पार्षद । ये कुबेरकी सभामें उपस्थित होनेवाले भगवान् शिवके वाहन हैं (सभा.
१० । ३४)। नप्ता-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३७)। नभकानन एक दक्षिण भारतीय जनपद ( भीष्म० ५ ।
५९)। नभोद-एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३४)। नमुचि-कश्यपद्वारा दनुके गर्भसे उत्पन्न हुआ एक दानव
(आदि० ६५। २२)। इन्द्रद्वारा इसका वध (वन. २५ । १०; वन० २९२ । ४)। रथारूढ़ इन्द्रद्वारा नमुचिकी पराजयकी चर्चा ( वन० १६८ । ८१)। इन्द्रद्वारा प्रतिज्ञाभन करके मारे जानेपर इसके सिरका उनके पीछे लग जाना (शल्य० ४३ । ३७-३८)। अरुणा-सङ्गममें गोता लगानेसे उस मस्तककी सद्गति (शल्य. ४३ । ४५ ) । इन्द्र के प्रश्नोंका उत्तर (शान्ति० २२६ । ४-२३)। नर-(१) एक भगवत्स्वरूप देवता, जो भगवान् नारायणके सखा है और पाण्डुपुत्र अर्जुनको जिनका अवतार बताया
गया है (आदि० १, प्रथम श्लोक मङ्गलाचरण)। दैत्योंको अमृतसे वञ्चित करके जब देवताओंको अमृत पिलाया गया, उस समय होनेवाले देवासुर-संग्राममें नारायणसहित भगवान् नरने देवपक्षकी ओरसे आकर अपने दिव्य धनुषसे असुरोंका संहार किया था। उस महाभयङ्कर संग्राममें भगवान् नरने उत्तम सुवर्णभूषित अग्रभागवाले पंखयुक्त बाणोंद्वारा पर्वत-शिखरोंको विदीर्ण करते हुए समस्त आकाशमार्गको आच्छादित कर दिया। अन्ततोगत्वा वह अमृत की निधि किरीटधारी भगवान् नरको रक्षा के लिये सौंप दी गयी (आदि. १९ । १९३.)। द्रौपदीने अपनी लाज बचानेके लिये कौरव-सभामें भगवान् श्रीकृष्ण और नरको पुकारा था ( सभा० ६८ । ४६)। ये एक प्राचीन ऋषि हैं । इन्होंने बदरिकाश्रममें अनेक सहस्र वर्षोंतक तप किया है (वन. ४०।१)। इन्द्रद्वारा इनके अवतारका वर्णन ( बन० ४७ । १०)। जो बदरिकाश्रममें भगवान् नारायणके साथ रहकर तपस्या करते हैं, वे देवेश्वर नर ही अर्जुन हैं (वन० २७२ । २९) । इनके द्वारा दम्भोद्भवकी पराजय और पराजित हुए दम्भोद्भवको इनका उपदेश (उद्योग. ९६ । ३४--३८) । ग्रीवासे प्राणोंका निष्क्रमण होनेपर मनुष्य मुनियोंमें श्रेष्ठ नरका सांनिध्य प्राप्त करता है (शान्ति० ३१७ । ५)। स्वायम्भुव मन्वन्तरके सत्ययुगमें प्रकट हुए भगवान् वासुदेवके चार अवतारों में एक भगवान् नर हैं, जो अपने भाई नारायणके साथ बदरिकाश्रममें जाकर एक सुवर्णमय रथपर आसीन हो तपस्या करते हैं (शान्ति० ३३४ । ९-१०)। नारद और नर-नारायणका संवाद (शान्ति० ३३४ । १३-४५)। भगवान् शङ्करने जो प्रज्वलित त्रिशूल चलाया था, वह दक्ष-यज्ञका विध्वंस करके भगवान् नारायणकी छातीमें आ लगा । तब नारायणने हुंकार किया और वह त्रिशूल लौटकर रुद्रके हाथमें आ पहुँचा । तब रुद्रने नर और नारायणपर आक्रमण किया । नारायणने अपने हाथसे रुद्रका गला दबा दिया, अतः वे नीलकण्ठ हो गये । इसके बाद नरने उनपर सीक चलायी । वह परशु बनकर चली । रुद्रने उसे खण्डित कर दिया । अतः ये खण्डपरशु' कहलाये ( शान्ति. ३४२ । ११०-११७)। श्वेतद्वीपसे लौटे हुए नारदके साथ श्रीनर-नारायणकी बात-चीत (शान्ति० ३४३ अध्याय)। (२) एक गन्धर्व, जो कुबेरकी सभामें रहकर धनाध्यक्षकी उपासना करते हैं ( सभा० १० । १४) । (३) एक दक्षिण भारतीय जनपद ( भीम ९ । ६०)। () एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने जीवन में कभी मांस नहीं या था ( अनु० ११५। ६४)।
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