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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्मारण्य www.kobatirth.org ( १६५ ) धर्मकर्मविषयक मीमांसा ( वन० २०९ अध्याय ) । विषयसेवन से हानि और ब्राह्मीविद्या का वर्णन ( वन० २१० अध्याय ) । इन्द्रियनिग्रहका वर्णन ( वन० २११ अध्याय )। तीनों गुणोंके स्वरूप और फलका निरूपण ( वन० २१२ अध्याय ) । प्राणवायुकी स्थितिका प्रतिपादन ( वन० २१३ अध्याय ) । माता-पिता की सेवाका दिग्दर्शन ( वन० २१४ अध्याय ) । अपने पूर्वजन्मकी कथा (वन० २१५ अध्याय ) । कौशिक ब्राह्मणको माता-पिता की सेवाका उपदेश देकर विदा करना ( वन० २१६ । ३२ ) । धर्मारण्य - ( १ ) एक प्राचीन तीर्थभूत वन, जहाँ प्रवेश करने मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है ( वन० ८२ । ४६ ) | ( २ ) एक ब्राह्मण, इसका पद्मनाभ नामक नागको अपना परिचय देना ( शान्ति ० ३६१ । ५) पद्मनाभसे सूर्यमण्डलकी बात पूछना ( शान्ति० ३६२ । १ ) । उञ्छतका पालन करनेका निश्चय करके इसका नागराजसे विदा माँगना ( शान्ति ० ३६४ । ७-१० ) । च्यवन ऋषिसे उञ्छत्रतकी दीक्षा लेना ( शान्ति० ३६५ | २ ) । धर्मे -- पूरुपुत्र रौद्राश्वके द्वारा मिश्रकेशी नामक अप्सराके गर्भ से उत्पन्न (आदि० ९४ । ६१ ) । धवलगिरि ( या श्वेत पर्वत)— एक पर्वत, जहाँ अर्जुनने अपनी सेनाका पड़ाव डाला था ( सभा० २७ । २९ ) । धाता - ( १ ) बारह आदित्योंमेंसे एक, इनकी माताका नाम अदिति और पिताका कश्यप है ( आदि० ६५ । १५) । खाण्डववन- दाइके समय श्रीकृष्ण और अर्जुनके साथ होनेवाले युद्धमें देवताओंकी ओरसे ये भी पधारे थे (आदि० २२६ । ३४ ) । इनके द्वारा स्कन्दको पाँच पार्षद प्रदान किये गये थे, जिनके नाम थे-- कुन्द, कुसुम, कुमुदः डम्बर और आडम्बर ( शल्य० ४५ । ३९) । (२) ब्रह्माजी के पुत्र इनके दूसरे भाईका नाम विधाता है । दोनों मनुके साथ रहते हैं ( आदि० ६६ । ५० ) । हस्तिनापुर जाते समय मार्गमें श्रीकृष्णसे इनकी भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । धात्रेयिका - द्रौपदीकी दासी, जिसने पाण्डवोंसे जयद्रथद्वारा द्रौपदीके अपहरणका समाचार बताया था ( वन० २६९ । १६—२२ ) । धाम --श्रीगङ्गा-महाद्वारकी रक्षा करनेवाले मुनि, जो उत्तर दिशामें स्थित हैं ( उद्योग० १११ । १७ ) । धारण --- ( १ ) चन्द्रवत्सकुलमें उत्पन्न एक कुलाङ्गार नरेश ( उद्योग० ७४ । १६ ) | ( २ ) एक कश्यपवंशीय नाग ( उद्योग० १०३ । १६ ) । धूत्तं धारा -- एक तीर्थ, जहाँकी यात्रा सब पापोंसे छुड़ानेवाली है । वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य कभी शोकमें नहीं पड़ता है ( चन० ८४ । २५ ) । धिषणा - एक देवी, जिसने स्कन्दके अभिषेकके समय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदार्पण किया था ( शल्य ० ४ ५ । १४ ) । धीमान् -- पुरूरवाके द्वितीय पुत्र (आदि० ७५ | २४ )। धीरोष्णी -- एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३२ ) । धुन्धु - (१ ) एक राक्षस, जो मधुकैटभका पुत्र था ( वन० २०२ । १८ ) । इसकी तपस्या और वरप्राप्ति ( वन० २०४ । २-४ ) । इसके द्वारा महाराज कुवलाश्वके पुत्रोंका दग्ध होना ( वन० २०४ । २६ ) । राजा कुवलाश्वद्वारा इसका वध ( वन० २०४ । ३२ ) । ( २ ) एक राजा, जिसने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया (अनु० ११५ | ६६ )। धुन्धुमार--सूर्यवंशी महाराज बृहदश्वके पुत्र कुवलाश्व ( द्रोण० ९४ । ४२ ) । इन्हें ऐलविलद्वारा खङ्गकी प्राप्ति हुई ( शान्ति० १६६ | ७६ | अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० ९४ । २१ ) । ( देखिये कुवलाश्व ) । धुरन्धर --- एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४१ )। धूतपापा -- एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९।१८ ) । धूमपा -- पितरों और ऋषियोंका समुदाय । ये लोग दक्षके यज्ञमें पधारे थे ( शान्ति० २८४।८-९ धूमावती - एक पवित्र तीर्थ, जहाँ तीन रात्रि उपवास करनेसे मनोवाञ्छित कामना प्राप्त होती है ( वन० ८४ | २२)। धूमिनी - पूरुवंशी राजा अजमीढ़की रानी, इनके गर्भसे अजमीद्वारा महाराज ऋक्षका जन्म हुआ था ( आदि० ९४ । ३२ ) । धूमोर्णा - ( १ ) यमराजकी भार्या (वन० ११७ । ९ ) । ( २ ) महर्षि मार्कण्डेय की पत्नी ( अनु० १४६ । ४ ) । धूम्र - ( १ ) एक ऋषि, जो इन्द्रकी सभा में विराजमान होते ( सभा० ७ । १७ के बाद दा० पाठ )। (२) स्कन्दका सैनिक ( शल्य० ४५ । ६४ ) । धूम्रा - दक्षप्रजापति की पुत्री और धर्मकी पत्नी, जो ध्रुव तथा घरकी माता है ( आदि० ६६ । १९ ) । धूम्राक्ष- एक राक्षस, जिसका हनुमानूजीके द्वारा वध हुआ ( वन०२८६ । १४ ) । धूर्त्त - एक प्राचीन नरेश ( आदि० १ । २३८ ) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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