SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रोणपर्व ( १५९ ) द्रौपदी इसके विषयमें भविष्य कथन (आदि० २२९ । ९१०)। इसके द्वारा अग्निदेवकी स्तुति (आदि० २३३ । १५-१९) । अग्निकी कृपाद्वारा खाण्डवदाहसे इसकी भाइयोसहित रक्षा (आदि० २३१ ।२०-२३)। द्रोणपर्व-महाभारतका एक मुख्य पर्व । द्रोणवधपर्व-द्रोणपर्वका एक अवान्तरपर्व (अध्याय १८४से १९२ तक)। द्रोणशर्मपद-एक तीर्थ, यहाँ स्नान करनेका विशेष फल (अनु० २५ । २८)। द्रोणाभिषेकपर्व-द्रोणपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय से १६ तक )। द्रौपदी-महाराज द्रुपदकी सती-साध्वी पुत्री कृष्णा, जो शची देवीके अंशसे उत्पन्न हुई थीं ( आदि० ६७ | १५७)। महर्षि याजद्वारा अग्निमें आहुति डालनेपर यज्ञकुण्डसे कुमार धृष्टद्युम्नके बाद इनका प्राकटय हुआ । अतः ये धृष्टद्युम्नकी बहिन हुई (आदि०१६६ । ३९-४४)। इन्हें पाञ्चाली कहा जाता था। इन्हें पाण्डवोंने पत्नीरूपमें प्राप्त किया तथा इनके गर्भसे उनके पाँच पुत्र हुए । युधिष्ठिरसे प्रतिविन्ध्य, भीमसेनसे सुतसोम, अर्जुनसे श्रुतकीति, नकुलसे शतानीक और सहदेवसे श्रुतकर्माका जन्म हुआ था (आदि. ९५। ७५)। इनके अनुपम सौन्दर्यका वर्णन (आदि. १६६ ॥४५-४७)। इनके जन्मके समयको आकाशवाणी-इस कन्याका नाम कृष्णा है। यह समस्त युवति योंमें श्रेष्ठ एवं सुन्दरी है । क्षत्रियोंका संहार करने के लिये प्रकट हुई है। यह यथासमय देवताओंका कार्य सिद्ध करेगी। और इसके द्वारा देवताओंको महान् भय प्राप्त होगा ( आदि. १६६ । ४८-४९)। ब्राह्मणोंद्वारा इनका नामकरण (आदि०१६६ । ५४)। व्यासजीका द्रौपदीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना भगवान् शंकरद्वारा इन्हें पाँच पति प्राप्त होने का वरदान ( आदि. १६८ अध्याय)। इनके स्वयंवर में विभिन्न देशोंसे आये हुए राजाओंका धृष्टद्युम्नद्वारा इनको परिचय-प्रदान (आदि. १८५ अध्याय)। सूतजातिके पुरुषको अपना पति न बनानेके विषयमें इनकी घोषणा (आदि० १८६ । २३) । इनका अर्जुनके गलेमें जयमाला डालना (भादि० १८७ । २५ के बाद दा० पाठ) । अर्जुन और भीमसेनके साथ इनका कुम्भकारके घरमें जाना (आदि. १८९ । ४१४-७)। घर जाकर पाण्डवोका मातासे द्रौपदीको भिक्षा बताना और माताका बिना देखे ही उसे पाँचोंको उपयोगमें लाने की आज्ञा देना (आदि. १९०। १२)। कुम्भकारके घर जानेपर इनके सम्बन्धमै द्रुपदके ऊहापोह और चिन्ता (आदि० १११ । १४-१८)। व्यासद्वारा द्रुपदको इनके पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनाना और इन्हें स्वर्गलोककी लक्ष्मी बताना ( आदि.१९६ अध्याय)। धौम्य मुनिद्वारा क्रमशः प्रत्येक पाण्डवके साथ विधिपूर्वक इनके विवाह-संस्कारका सम्पादन (आदि०१९७ अध्याय)। कुन्तीद्वाग इनको आशीर्वाद तथा शिक्षा ( आदि. १९८ । ४-१२)। हस्तिनापुर जाते समय इनको द्रुपदद्वारा दहेज रूपमें विपुलधनराशिकी भेंट (आदि० २०६ । ९ के बाद दा० पाठ)। धृतराष्ट्रकी पुत्रवधुओंद्वारा इनका स्वागत (आदि० २०६ । २२ के बाद दा. पाठ)। सुभद्राके आनेपर इनका अर्जुनके प्रति प्रणयकोष (आदि. २२० । १६.१.)। इनके समीप सुभद्राका गोपीवेषमें आगमन (आदि. २२० । १९)। दुःशासनद्वारा बलपूर्वक केश पकड़कर इनका सभामें लाया जाना (सभा० ६.|३१)। भरी सभामें अपने हारे जानेके सम्बन्धमें इनका समस्त सभासदोंसे प्रश्न ( सभा० ६७ । ४-५२)। दुःशासनद्वारा वन खींचे जानेपर इनका आर्तभावसे भगवान्को पुकारना ( सभा० ६८ । ४१-४३ )। इनकी लाज बचानेके लिये भगवान् श्रीकृष्णका स्वयं चीररूप होना और नये-नये चीर प्रकट करना ( सभा० ६८ । ४५-४८)। कौरवोंकी सभामें इनका चेतावनीयुक्त विलाप (सभा० ६९ अध्याय)। इनको धृतराष्ट्रसे वरप्राप्ति (सभा. ७१।२८-३२)। इनका कुन्तीसे वनगमनके लिये विदा लेना (सभा०७९ । १-२)। किर्मारकी मायासे भयभीत होकर मूच्छित होना (वन०११ । १६-१८)। इनके द्वारा श्रीकृष्णका स्तवन तथा उनसे अपने प्रति किये गये अपमान और दुःखका वर्णन ( वन० १२ । ५०-१२७)। युधिष्ठिरका क्रोध उभाड़नेके लिये इनके संतापपूर्ण वचन ( वन० २७ अध्याय)। प्रह्लाद-बलिसंवादका वर्णन करके इनका युधिष्ठिरके क्रोधको उभाड़ना (वन० २८ अध्याय)। इनका युधिष्ठिरकी बुद्धि, धर्म एवं ईश्वरके न्यायपर आक्षेप (वन०३० अध्याय)। युधिष्ठिरको पुरुषार्थ करनेके लिये जोर देना (वन० ३२ अध्याय )। तपके लिये जाते हुए अर्जुनके प्रति इनकी शुभाशंसा (वन० ३७ । २४-३५)। इनकी अर्जुनके लिये चिन्ता (वन०८०। १२-१५)। गन्धमादनकी यात्रामें इनका मूञ्छित होना (वन. १४४ । ४)। इनकी भीमसेनसे सौगन्धिक पुष्पोंकी माँग (वन० १४६ । ७)। जटासुरद्वारा इनका हरण और भीमसेनका उसे मारकर इनकी तथा भाइयोंकी रक्षा करना (वन० १५७ अध्याय)। इनका आर्टिषेणके आश्रममें भीमसेनसे उस पर्वतपर रहनेवाले राक्षसोको मारनेका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy