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दुर्मद
दुर्मद- धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ( आदि० ६७ । ९६६ आदि० ११६ | ५ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण ० १३५ । ३६ ) ।
दुर्मर्षण - धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र ( आदि० ६३ । ११९; आदि० ६७ । ९५; आदि० ११६ । ३ ) । इसका भीमसेनके साथ युद्ध ( मीष्म० ११३ अध्यायः द्रोण० २५ । ५-७ | अर्जुनसे लड़नेका उत्साह प्रकट करना ( द्रोण० ८८ । ११ - १३ ) । अर्जुनद्वारा इसकी गजसेनाका संहार और पलायन ( द्रोण० ८९ अध्याय ) । इसका सात्यकिके साथ युद्ध और उनके द्वारा घायल होना ( द्रोण० ११६ । ६-८ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १३५ । ३६ ) | दुर्मर्षणका सुन्दर महल माद्रीकुमार नकुलको रहनेके लिये दिया गया ( शान्ति० ४४ । १०-११ ) ।
दुर्मुख - ( १ ) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ६७। ९३; आदि० ११६ | ३ ) । यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था ( आदि० १८५ । १) । यह द्वैतवन में गन्धवद्वारा बंदी बनाया गया ( वन० २४२ । १२ ) । प्रथम दिनके संग्राममें इसका सहदेव के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म ४५ । २५-२७ ) । अभिमन्युके द्वारा इसके सारथिका वध ( भीष्म० ४७ । १२ ) । इसके द्वारा श्रुतकर्माकी पराजय ( भीष्म० ७९ । ३५-३८ ) । अभिमन्युद्वारा पराजित होना ( भीष्म० ८४ । ४२ ) । घटोत्कच के साथ द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ११० । १३ - १४; भीष्म० १११ । ३७–३९ ) । धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध ( द्रोण० २० । २६ - २९ ) । पुरुजित् के साथ युद्ध ( द्रोण ०२५ । ४०-४१ )। सहदेवके साथ युद्ध ( द्रोण० १०६ । १३ ) | सहदेवद्वारा पराजित होना ( द्रोण० १०७ । २५ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १३४ । २०-२१ ) । इसके द्वारा पर्वतीय राजा जनमेजयके वधकी चर्चा ( कर्ण० ६ । १९ - २० ) । इसका सुन्दर भवन सहदेवको रहने के लिये दिया गया था (शान्ति ०४४।१२१३) । (२) (दुर्मर्षण) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ६७।९५ ) | दुर्मर्षण नामसे भीमसेनद्वारा इसका वध (शल्य० २६ । ९-१०) । (३) एक राजा, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होता था ( सभा० ४ । २१ ) | ( ४ ) एक असुर, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करता है ( सभा० ९ । १३ ) | ( ५ ) पाण्डवपक्षका एक योद्धा, जो कर्णके वशमें पड़ गया था ( कर्ण ० ७३ । १०४ ) | ( ६ ) एक सर्प, जो स्वधामको पधारते समय बलरामजीके स्वागत के लिये प्रभासक्षेत्रमें आया था ( मौसल० ४ । १६ )। दुर्योधन - ( १ ) धृतराष्ट्र और गान्धारीके सौ पुत्रोंमेंसे
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दुर्योधन
एक, जो सबसे बड़ा था । यह अपने ग्यारह महारथी भाइयो प्रधान था ( आदि० ६३ । ११८-१२० ) । यह कुरुकुलको कलङ्कित करनेवाला, दुर्बुद्धि तथा खोटे विचार रखनेवाला था और कलिके अंशसे उत्पन्न हुआ
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था ( आदि० ६७ । ८७ ) । दुर्योधनके द्वारा प्रज्वलित की हुई वैरकी भारी आग असंख्य प्राणियों के विनाशका कारण बन गयी। इसके सौ भाइयों की उत्पत्ति पुलस्त्यकुलके राक्षसों के अंशसे हुई थी ( आदि० ६७ । ८८-८९ )। इसकी उत्पत्तिकी कथा ( आदि० ११४ । ९ - २५ ) । इसके जन्म समय में प्रकट हुए अमाङ्गलिक अपशकुन ( आदि० ११४ । २७ - २९ ) । इसके जन्म कालिक अमङ्गलकारी उपद्रवोंको देखकर इसे कुल-संहारक बताते हुए इसे त्याग देनेके लिये धृतराष्ट्रको विदुरकी सलाह ( आदि० ११४ । ३४-३९ ) । जिस दिन भीमसेनका जन्म हुआ, उसी दिन दुर्योधनका भी हुआ ( आदि० १२२ । १९ ) | इसके द्वारा गङ्गातटवर्ती प्रमाण कोटि तीर्थ में जलक्रीडाका आयोजन और विष खिलाकर बेहोश किये हुए भीमसेनका जलमें प्रक्षेप ( आदि १२७ । २७-५४ ) । इसका भीमसेनके सारथिको उसका गला घोंटकर मार डालना (आदि० १२८ । ३६) । भीमसेनके भोजनमें पुनः कालकूट विष डलवानेका कुकृत्य ( आदि० १२८ । ३७ ) । इसकी गदायुद्ध में प्रवीणता ( आदि० १३१ । ६१ ) । इसका रणभूमिमें अस्त्रकौशल दिखाना ( आदि० १३३ । ३२-३५ ) । भीमसेनके साथ गदा- युद्ध करते हुए इसका अश्वत्थामाद्वारा निवारण ( आदि० १३४ । ५ ) । इसके द्वारा कर्णका राज्याभिषेक ( आदि० १३५ । ३८ ) । इसकी कर्णसे अटल मित्रताके लिये याचना ( आदि० १३५ । ४० ) । कर्णका पक्ष लेकर इसका भीमसेन एवं पाण्डवोंपर आक्षेप ( आदि० १३६ । १०-१८ ) द्रुपदद्वारा इसकी पराजय ( आदि० १३७ । २२ के बाद दा० पाठ) । युधिष्ठिरपर प्रजाका अनुराग देखकर इसकी चिन्ता (आदि० १४० । २९ ) । पाण्डवको वारणावत भेजने के विषय में दुर्योधन और धृतराष्ट्रका संवाद ( आदि० १४१ । ३-२४ ) । वारणावत में लाक्षागृह बनवाने तथा पाण्डवोंको जलानेके लिये इसका पुरोचनको आदेश ( आदि० १४३ । २१७) | द्रौपदीके स्वयंवर में इसका कर्ण और भाइयों सहित उपस्थित होना ( आदि० १८५ । १०४ ) । लक्ष्यवेधके लिये धनुषपर प्रत्यचा चढ़ाते समय इसका झटके से उत्तान गिरना और लज्जित हो अपने स्थानपर लौट जाना ( आदि० १८६ | २० के बाद ) । पाण्डवोंके विनाशके लिये इसके द्वारा धृतराष्ट्रके प्रति विविध उपायोंका कथन ( आदि० १९९ । २८-३१६ आदि० २०० । ४-२० ) ।
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