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( १४३ )
दुर्धर्ष ( दुर्मद )
सात्यकिके साथ इसका युद्ध (द्रोण० ९६ । १४-१७)। दुन्दुभी-एक गन्धर्वी, जो मन्थरा नामसे प्रसिद्ध कुबड़ी सात्यकिसे पराजित होकर इसका सेनासहित पलायन दासी हुई थी, ब्रह्माजीने इसे देवकार्यकी सिद्धिके लिये (द्रोण. १२१ । २९-४६) । सात्यकिद्वारा इसकी भूतलपर जानेका आदेश दिया था ( वन० २७६ । पराजय (द्रोण. १२३ । ३१-३४)। इसके द्वारा ९-१०)। प्रतिविन्ध्यकी पराजय (द्रोण० १६८ । ४३) । सहदेवके दुराधन (दुराधर या दुर्धर )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा पराजय (द्रोण. एक ( आदि० ६७ । १०१)। भीमसेनद्वारा इसका १८८ । २-९) । धृष्टद्युम्नद्वारा इसकी पराजय वध (द्रोण. १३५ । ३६)। (द्रोण. १८९।५)। द्रोणाचार्यके मारे जानेपर इसका दुराधर ( दुर्धर या दुराधन)-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से युद्धस्थलसे भागना (द्रोण. १९३ । १५)। सहदेवद्वारा एक (आदि. ११६ । १०)। भीमसेनद्वारा इसका वध पराजित होना (कर्ण० २३ । १८-२०) । धृष्टद्युम्नको (द्रोण. १३५ । ३६)। काबूमें कर लेना ( कर्ण०६१ । ३३)। भीमसेनके साथ दुर्ग-किला, दुर्ग छः प्रकारके होते हैं-मरुदुर्ग, जलदुर्ग, इसका युद्ध और पाण्डवोपर आक्षेप ( कर्ण० ८२ । ३२
__ पृथ्वीदुर्ग, वनदुर्ग, पर्वतदुर्ग और मनुष्यदुर्ग ( सैनिकके बाद दाक्षिणात्य पाठ)। क्रोधमें भरे भीमसेन और
शक्तिसे सम्पन्न होना)। इनमें मनुष्यदुर्ग ही प्रधान है दुःशासनका घोर युद्ध (कर्ण०८२ । ३३ से कर्ण० ८३ ।
(शान्ति० ५६ । ३५)। • तक)। भीमसेनकी गदाकी चोटसे धरतीपर गिरकर
दुर्गशैल-शाकद्वीपका एक पर्वत (भीष्म० ११ । २३)। दुःशासनका छटपटाना, भीमसेनका इसकी छातीपर चढ़कर इससे यह पूछना कि 'तूने किस हाथसे द्रौपदीके केश।
दुर्गा-(१) त्रिभुवनकी अधीश्वरी देवी दुर्गा । महाराज खींचे थे।' दु:शासनका रोष और अभिमानके साथ
युधिष्ठिरने विराटनगरमें प्रवेश करते समय जगजननी अपनी गजसुण्ड-दण्डके समान मोटी दाहिनी भुजा दिखा
दुर्गाकी स्तुति की और देवीने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उन्हें कर यह उत्तर देना कि मैंने इसी हाथसे द्रौपदीके केश
वर दिया (विराट. ६ अध्याय) । भगवान् श्रीकृष्णखींचे ये । भीमसेनका इसकी उस भुजाको उखाड़कर
की प्रेरणासे अर्जुनने महाभारत युद्ध के प्रारम्भमें दुर्गादेवीउसीके द्वारा इसे पीटना और इसकी छाती फाड़कर इसके
की स्तुति की और देवीने अन्तरिक्षमें स्थित होकर उन्हें गरम रक्तको पीना (कर्ण० ८३ । ८-२९) । दुःशासन
विजयी होनेका वर दिया (भीष्म० २३ । ४-१९)। जिसमें रहता था, वह सुन्दर महल वीरवर अर्जुनको रहनेके
अर्जुनकृत दुर्गास्तोत्रकी महिमा (भीष्म २३ । २२लिये दिया गया (शान्ति. ४४ । ८-९)। व्यासजीके
२५)। (२) एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतकी आवाहन करनेपर गङ्गाजलसे इसका भी प्रकट होना
प्रजा पीती है (भीष्म ५। ३३)। (आश्रम० ३२ । ९)। मृत्युके पश्चात् इसे स्वर्गलोककी दुर्गाल-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५२ )। प्राप्ति हुई (स्वर्गा० ५ । २१-२२)
दुर्जय-(१) महर्षि कश्यपद्वारा दनुके गर्भसे उत्पन्न एक महाभारतमें आये हुए दुःशासनके नाम -भारत)
दानव (आदि०६५ । २३)। (२) (दुष्पराजय)भरतश्रेष्ठ, भारतापसद, धृतराष्ट्रज, कौरव, कौरव्य और
धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि. ११६ । ९)। कुरुशार्दूल आदि ।
( देखिये दुष्पराजय)। (३) एक राजा, जिसके लिये दुःसह-धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र ( आदि. ६३ ।
पाण्डव-पक्षसे रण-निमन्त्रण भेजनेके लिये द्रुपदने सलाह ११९, आदि०६७ । ९३, आदि. ११६ । २)। यह पुलस्त्यकुलके राक्षसके अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि.
दी थी (उद्योग० ४ । १६)। (४) इक्ष्वाकुवंशी ६७ । ८९) । अर्जुनके साथ इसका युद्ध और पराजित
सुवीरके पुत्र (अनु. २ । ११)। (५) भगवान् होकर भागना (विराट०६१ । ४३-१५)। इसका विष्णुका एक नाम ( अनु. १४९ । ९६)। सात्यकिके साथ युद्ध करके घायल होना (द्रोण० ११६। दुर्जया-दुर्जय मणिमती नगरी, जिसे दुर्जया भी कहते हैं २-७)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १३५ । (बन० ९६।१)। (कुछ आधुनिक समीक्षोंने ३६)।
'इलोरागुफा' को ही दुर्जया माना है । यह स्थान निजाम दुन्दुभि-एक राक्षस, जिसे भगवान् शङ्करने वर दिया और राज्यमें दौलताबादसे सात मील और नन्दगाँवसे चालीस
वे ही इसके विनाशमें भी समर्थ हुए (अनु.१४।। मीलपर स्थित है।) २१४)।
दुर्धर्ष (दुर्मद )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक (मादि. दुन्दुभिस्वन-कुशद्वीपमें मुनिदेशके बादका देश (भीष्म. ६७ । ९४, आदि० १०६।३)। भीमसेनद्वारा इसका १२।१५)।
वध (द्रोण.१५५ । १०)।
मजाला
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