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चन्द्रवत्स
( ११२ )
चातुर्मास्य
चन्द्रवत्स-एक क्षत्रियकुल, जो चन्द्रवत्ससे आरम्भ हुआ निवास करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है (वन०
था। इसमें धारण' नामक 'कुलपांसन' राजकुमार ८४ । १३३)। पैदा हुआ था ( उद्योग०७४ । १६)।
चम्पा-यहाँ भागीरथीमें तर्पण करनेकी महिमा है ( वन० चन्द्रवर्मा-काम्बोजदेशका एक राजा, जो चन्द्रमाके समान ८५। १४-१५)। भागीरथी गङ्गाके तटपर अवस्थित सुन्दर था, यह चन्द्रनामक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ एक प्राचीन नगरी, जिसमें त्रेतायुगमें राजा लोमपाद था (आदि. ६७ । ३१-३२)। धृष्टद्युम्नके द्वारा इसका रहते थे (वन० ११३ । १५)। द्वापरमें यहाँ अधिवध (द्रोण० ३२। ६५)।
रथ सूतकी राजधानी थी। यहीं गङ्गाजीके जलसे राधाको चन्द्रविनाशन-एक महान् असुर, जो भूतलपर जानकि' वह पिटारी मिली, जिसमें शिशु कर्ण बंद था (वन०
नामसे प्रसिद्ध राजा हुआ था (आदि० ६७ । ३७-३८)। ३०८ । २६ से वन० ३०९। ५ तक)। इसपर कर्ण चन्द्रसीता-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य०४६ ।
अधिकार करके इसका पालन करता था ( शान्ति ११)।
५।७)। विपुलका चम्पानगरीको जाना ( अनु० चन्द्रसेन-(१) एक राजकुमार, जो बंगाल के राजा समुद्र
४२ । १६)। सेनका पुत्र था और द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था चर्ममण्डल-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४७)। (आदि० १८५ । ११)। यह अपने पिताके साथ ही चर्मण्वती-एक नदी, जिसे आजकल 'चम्बल' कहते हैं। भीमसेनदारा पराजित हुआ था (सभा० ३० । २४)।
यह वरुणकी सभामें उपस्थित होती है (सभा० ९ । यह पाण्डव-सेनाका श्रेष्ठ रथी और युधिष्ठिरका सहायक
२१)। इसके तटपर सहदेवने जम्भकके पुत्रको परास्त था (उद्योग. १७१ । १९)। चन्द्रमाके समान श्वेत
किया था ( सभा० ३१ । ७)। चर्मण्वती नदीमें वर्णवाले समुद्री घोड़े इसके रथमै जुते थे। (द्रोण.
स्नान करनेसे राजा रन्तिदेवद्वारा अनुमोदित ‘अग्निष्टोम' २३ । ६०)। अश्वत्थामाद्वारा इसका वध (द्रोण.
यज्ञका फल मिलता है (वन० ८२ । ५४ )। अग्निकी १५६ । १८३ )। (२) कौरवपक्षका योद्धा
उत्पत्तिकी स्थानभूता नदियोंमें इसकी भी गणना है (वन० शल्यका चक्ररक्षक, युधिष्ठिरद्वारा इसका वध २२२ २३)। (शल्य. १२। ५२)।
चर्मवान्-सुबलका एक पुत्र, शकुनिका भाई, इरावान्चन्द्रहन्ता-एक दैत्य, जो राजर्षि शुनक' के रूपमें इस
द्वारा इसका वध (भीष्म ९० । २७-४६)। भूतलपर उत्पन्न हुआ था (आदि. ६७ ॥३७-३८)। चन्द्रहर्ता-दक्षकन्या सिंहिकाका पुत्र, पिताका नाम कश्यप
चाक्षुषी-एक प्रकारको विद्या, जिसको मनुने सोमको) (आदि. ६५। ३१)।
सोमने विश्वावसुको, विश्वावसुने चित्ररथको और चित्ररथ
ने अर्जुनको दिया था। तीनों लोकोंमें जो भी वस्तुएँ चन्द्राश्व-इक्ष्वाकुवंशी महाराज कुबलाश्वके पुत्र, ये धुन्धु
हैं, उनमें से जिस वस्तुको आँखसे देखनेकी इच्छा हो, की क्रोधाग्निमें दग्ध होनेसे बच गये थे (वन०२०४ ।
उसे इस विद्याके प्रभावसे कोई भी देख सकता है और ४०-४२)।
जिस रूपमें देखना चाहे, उसी रूपमें देख सकता है चन्द्रोदय-राजा विराटका एक भाई (द्रोण० १५८ ।।
(आदि. १६९ । ४३-४५)। ४२)। चपल-एक प्राचीन नरेश ( आदि० १ । २३८)।
चाणूर-(१) एक क्षत्रिय नरेश, जो मयनिर्मित सभामें
युधिष्ठिरकी सेवामें बैठते थे (सभा० ४ । २६)। (२) चमसोद्भेद-सुराष्ट्रदेशीय विनशनतीर्थके अन्तर्गत एक
एक आन्ध्रदेशीय मल्ल (पहलवान), जो एक महान् तीर्थ, जहाँ अदृश्य हुई सरस्वतीका दर्शन होता है,
असुर था. यह कंसके दरबारमें रहा करता था, भगयहाँ स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है। (वन० ८२ । ११२ वन । ८८।२० शल्य. ३५।
__ वान् श्रीकृष्णने इसका वध कर दिया ( सभा० ३८ ।
पृष्ठ ८०१, उद्योग० १३० । ४७)। चमू-सैन्यगणनाके लिये एक पारिभाषिक शब्द । तीन चातुर्मास्य-एक व्रत, जिसका वर्षाके चार महीनोंमें यत्न
पूर्वक पालन करना आवश्यक माना जाता है। वीर पृतनाकी एक चमू होती है (आदि० २ । २१)।।
पाण्डवोंने गयामें चातुर्मास्य व्रत ग्रहण करके वेदादि चमूहर-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५)।
शास्त्रोंके स्वाध्यायद्वारा भगवान्की आराधना की ( वन० चम्पकारण्य (चम्पारन)-एक तीर्थ, जहाँ एक रात ९५ । १३-१४)।
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