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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गङ्गामहाद्वार ( ९७ ) गण्डा मुनि रहते थे (आदि. १२९ । ३३)। अर्जुनने उसमें स्नान करनेवाला मनुष्य स्वर्गलोकमें जाता है यहाँके तीर्थोकी यात्रा की (आदि० २१३ अध्याय)। (वन० ८३ । १७६, वन० ८३ । २०१)। गङ्गाद्वार स्वर्गद्वारके समान है, वहाँ एकाग्रचित्त होकर कोटि- नेद-एक तीर्थ, जिसमें तीन रात उपवास करनेवाला तीर्थमें स्नान करनेसे पुण्डरीक यज्ञका फल मिलता है मनुष्य वाजपेय यज्ञका फल पाता और सदाके लिये ब्रह्मी(वन.८४ । २७, वन०८९ । १५, वन० ९०। भूत हो जाता है (वन०८४ । ६५)। २१)। पत्नीसहित महर्षि अगस्त्यने यहाँ तप गज-(१) एक महापराक्रमी वानरराज, जो एक अरब किया था (वनः ९७।११)। जयद्रथने यही सेनाके साथ श्रीरामके पास आये थे (वन० २८३ । ३)। आराधना करके भगवान् शिवको प्रसन्न किया (२) सुबलपुत्र शकुनिका एक छोटा भाई, जिसने था ( बन० २७२ । २४-२६ ) । दक्ष-प्रजापतिने अन्य भाइयोंके साथ रहकर पाण्डवसेनाके दुर्जय व्यूहमें भी यहीं ( कनखलमें ) यज्ञ किया था ( शल्य. प्रवेश किया था (भीष्म० ९० । २७-३०)। इरावान्३८ । २७-२८ )। गङ्गाद्वार तथा वहाँके तीर्थ द्वारा इसका वध (भीष्म० ९० । ४५-४६)। विशेष कुशावर्त, विल्वक, नीलपर्वत तथा कनखलमें गजकर्ण-कुबेरकी सभामें उपस्थित हो उनकी सेवा करनेस्नान करके पापरहित हुआ मनुष्य स्वर्गलोकको जाता वाला एक यक्ष (समा० १० । १६)। है (अनु. २५ । १३) । गङ्गाद्वारमें भीष्मजीने अपने पिताका श्राद्ध किया था, जिसमें पिण्ड लेने के लिये गजशिरा-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५। ६०)। गण-सेना-गणनाके लिये एक पारिभाषिक शब्द। तीन गुल्मोंशान्तनुका हाथ प्रकट हुआ था (अनु० ८४।१११५)। धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती गङ्गाद्वारके वनमें ____ का एक गण होता है (आदि० २ । २१)। दग्ध हुई थी और वहाँ युधिष्ठिरने उनके लिये श्राद्धकर्म गणा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । ३)। भी कराया था (आश्रम. ३१ । १४-२०)। गणित-एक सनातन विश्वेदेव, कालकी गतिके ज्ञाता गङ्गामहाद्वार-यह वह स्थान है, जहाँ हिमालयके (अनु० ९१ । ३६)। शिखरसे गङ्गाजी उतरती हैं। यह गडोत्तरीसे भी बहत गणेश-व्यासनिर्मित महाभारतको लिपिबद्ध करनेवाले आगे है। एक सत्यवादी महात्मा धाममुनि उसकी रक्षा करते विघ्नेश्वर भगवान गणनायक (आदि. १।७५-७९)। हैं। उनकी मूर्ति, आकृति तथा संचित तपस्याका परिमाण गण्डक-एक देश, जो गण्डकी नदीके आस-पास बसा किसीको ज्ञात नहीं होता। उस गङ्गामहाद्वारसे आगे हुआ है । इसे भीमसेनने दिग्विजयके समय जीता था जानेवाला मनुष्य हिमराशिमें गल जाता है । भगवान् नर- (सभा० २९ । ४)।. नारायणको छोड़कर दूसरा कोई उस गङ्गामहाद्वारसे गण्डकण्डू-कुबेरकी सभाका एक यक्ष, जो वहाँ धनाध्यक्ष आगे कभी नहीं गया ( उद्योग० १११ । १६-२०)। कुबेरकी सेवा करता है (सभा०१०।१५)। गङ्गा-यमुना-सङ्गम-प्रयागका एक पावन तीर्थ, जिसमें गण्डकी-गङ्गाजीकी सात धाराओंमेंसे एक, गण्डकीका स्नान करनेसे दस अश्वमेध यज्ञका फल मिलता और जल पीनेवाले मनुध्य तत्काल पापरहित हो जाते हैं समस्त कुलका उद्धार हो जाता है (वन०८४ । ३५ (आदि. १६९ । २०-२१)। ग्रन्थान्तरों में इनके वन० ८५। ७४-७६)। दो नाम और प्रसिद्ध हैं-नारायणी और शालग्रामी। गङ्गा-सरखती-सङ्गम-प्रयागका एक पवित्र तीर्थ, जहाँ महाभारत ( भीष्मः ९। २५ ) में तथा बौद्ध ग्रन्यों में इनका हिरण्वती या हिरण्यवती नाम भी उपलब्ध स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता और स्वर्गलोक होता है। श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेनने इन्द्रप्रस्थसे प्राप्त होता है (वन० ८४ । ३८)। गिरिव्रज जाते समय इसे पार किया था ( सभा. गङ्गा-सागर-सङ्गम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे दस २०।२७)। गण्डकी नदी सब तीयोंके जलसे उत्पन्न अश्वमेध यज्ञोंके फलकी प्राप्ति होती है। वहाँ गङ्गाके हुई है। वहाँ जानेसे तीर्थयात्री अश्वमेध यज्ञका फल दूसरे पार जाकर स्नान और तीन रात निवास करनेवाला पाता और सूर्य-लोकमें जाता है (वन० ८४ । ११३)। मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है (वन०८५।४-५)। अग्निकी उत्पत्तिकी स्थानभूता नदियोंमें भाण्डकी' की महा-यहाँ स्नानका फल ( अन० २५ । ३४ा भी गणना है (वन० २२२ । २२)। हिरण्वती या कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित यौवन तीर्थक अन्तर्गत गङ्गाह्रद गण्डकी भारतवर्षकी प्रधान नदियोंमें है (भीष्म०९।२५)। नामका कूप है, जिसमें तीन करोड़ तीर्थोका वास है। गण्डा-सप्तर्षियोंकी सेवा करनेवाली एक दासी (अनु० म० ना० १३ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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