SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गङ्गा गङ्गाद्वार ९७ । ११)। गङ्गाजीका प्रतीपकी आज्ञाको स्वीकार (उद्योग० १८६ । ३६ ) । मेरुपर्वतके शिखरसे करना (आदि० ९७ । १२-१५)। राजा शान्तनुका दुग्धके समान श्वेत धारवाली विश्वरूपा अपरिमित गङ्गाजीके परम सुन्दर दिव्य प्रभासे प्रकाशमान, साक्षात् शक्तिशालिनी भयङ्कर वज्रपातके समान शब्द करने लक्ष्मीके समान मनोरम, अनिन्द्य सौन्दर्यसे सम्पन्न, वाली परम पुण्यात्मा पुरुषोंद्वारा सेवित सुभग-स्वरूपा दिव्याभरणभूषित, सूक्ष्माम्बर-विलसित तथा कमलोदर- पुण्यमयी भागीरथी गङ्गा बड़े प्रबल वेगसे सुन्दर चन्द्रकान्तिसे सुशोभित दिव्य रूपका दर्शन तथा उनके प्रति मोहद (चन्द्रकुण्ड ) में गिरती हैं। गङ्गाद्वारा प्रकट आकृष्ट हो उनसे अपनी पत्नी बननेके लिये प्रार्थना किया हुआ वह हद समुद्रके समान प्रतीत होता है। ( आदि. ९७ । २७-३३)। गङ्गाजीका कुछ शर्तों के भगवान् शङ्कर इन्हें एक लाख वर्षतक अपने मस्तकपर साथ उनके अनुरोधको अङ्गीकार करना ( आदि. ९८ । धारण किये रहे । ब्रह्मलोकसे उतरकर त्रिपथगामिनी १-४)। शान्तनुके द्वारा इनके गर्भसे आठ देवोपम गङ्गा पहले हिरण्यशृङ्गके पास विन्दुसरोवरमें प्रविष्ट हुई। पुत्रोंकी उत्पत्ति (आदि० ९८ । १२)। इनके द्वारा वहीसे उनकी सात धाराएँ विभक्त हुई । जिनके नाम इस नवजात शिशुओंका जलमें प्रक्षेप (आदि. ९८ । १३)। प्रकार हैं-वस्वोकसारा, नलिनी, पावनी, सरस्वती, जम्बूभीष्मका जन्म होनेपर उनके भी वधकी आशङ्कासे इनको नदी, सीतागङ्गा और सिन्धु (भीष्म ६ । २८-५०)। शान्तनुकी कड़ी फटकार ( आदि०९८ । १६)। अपने बाणशय्यापर पड़े हुए भीष्मके पास महर्षियोंको भेजना रहस्यको प्रकट करके इनका शान्तनुको उनके नवजात (भीष्म०११९।९७-९८)। इनका भागीरथी नाम पड़नेका शिशुओं ( वसुओं) का संक्षिप्त परिचय देना (आदि. कारण (द्रोण० ६०।६) । इनके द्वारा स्कन्दको ९८ । १७-२४) । वसुओंको वशिष्ठद्वारा प्राप्त कमण्डलुका दान (शल्य० ४६ । ५०)। समुद्रसे बेतकी हुए शापकी बात बताकर और यही एक नम्रताका वर्णन (शान्ति० ११३ । ८-११)। इनका पुत्र चिरकालतक मानवलोकमें रहेगा, ऐसा कहकर जह्नकी पुत्रीरूपसे प्रसिद्ध होना (अनु० ४ । ३)। गङ्गाइनके द्वारा शान्तनुके प्रति भीष्मके भावी गुणोंका जीमें स्नानका फल ( अनु० २५ । ३९)। इनकी वर्णन और पालनके लिये उसे साथ लेकर इनका अन्तर्धान महिमाका वर्णन (अनु. २६ । २६-९६)। अग्निहो जाना ( आदि. ९९ अ.)। शान्तनुका गङ्गाजीसे द्वारा स्थापित किये गये शिवजीके तेजको इनका मेरु पर्वतअपने पुत्रको दिखानेके लिये कहना और गङ्गाजीका पाल- पर छोड़ना (अनु० ८५ । ६८)। अग्निसे अपने गर्भके पोषकर बड़े एवं सुशिक्षित किये हुए उस पुत्रको राजा- स्वरूप आदिका वर्णन (अनु० ८५ । ७२-७६)। के हाथमें सौंप देना (आदि. १०० । ३०-४०)। पार्वतीजीसे स्त्रीधर्मका वर्णन करनेके लिये प्रार्थना (अनु० गङ्गा प्राचीन कालमें हिमालयके स्वर्णशिखरसे निकली १४६ । २७-३२)। अपने पुत्र भीष्मकी मृत्युपर और सात धाराओंमें विभक्त हो समुद्रमें गिरी । इन इनका शोक करना ( अनु० १६८ । २३-२८)। सातोंके नाम हैं-गङ्गा, यमुना, सरस्वती, रथस्था, सरयू, भीष्मजीके धराशायी होनेपर वसुओंका गङ्गाजीके तट पर गोमती और गण्डकी । इन धाराओंका जल पीनेवाले आकर अर्जुनको शाप देनेकी इच्छा प्रकट करना और पुरुषोंके पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं । ये गङ्गा देवलोक- गङ्गाजीद्वारा उनके इस विचारका अनुमोदन होना में अलकनन्दा और पितृलोकमें वैतरणी नाम धारण (आश्व० ८१ । १२-१५) । करती हैं। इस मर्त्यलोकमें इनका नाम 'गङ्गा' है। महाभारतमें आये हुए गङ्गाजीके नाम-आकाशगङ्गा इनका तीर्थरूपसे वर्णन (वन० ८५। ८८-९९)। ___ भगीरथसुता, भागीरथी, शैलराजसुता, शैलसुता, देवनदी, इनका राजा भगीरथको वर देना (वन० १०८।१५)। हैमवती, जाह्नवी, जनुकन्या, जह्नुसुता, समुद्रमहिषी, इनका भूतलपर गिरना (वन० १०९।८)। इनके त्रिपथगा, त्रिपथगामिनी इत्यादि । द्वारा समुद्रका भरा जाना (वन. १०९। १८)। गङ्गादत्त-राजा शान्तनुके द्वारा गङ्गाजीके गर्भसे उत्पन्न (वन० २२२ । २२)। परशुरामजीसे युद्ध के लिये कुमार देवव्रत (आदि० ९९ । ४५ के बाद दाक्षिणात्य उद्यत भीष्मको डाँटना ( उद्योग० १७८ । ८६-८८)। पाठ) । ( देखिये भीष्म ) . परशुरामजीसे भीष्मके लिये क्षमा माँगना (उद्योग. गङ्गाद्वार-जहाँ गङ्गाजी पर्वतमालाओंसे निकलकर समतल १७८ । ९२)। परशुरामजीके साथ होनेवाले युद्धमें भूमि या मैदान में आती हैं, उस स्थानका नाम गङ्गाद्वार सारथिके मारे जानेपर भीष्मका सारथ्य करना ( उद्योग है; इसीको 'हरद्वार' या 'हरिद्वार' कहते हैं। गङ्गाद्वारमें १८२।१६) | इनका अम्बाको नदी होनेका शाप देना प्रतीपने तपस्या की (आदि०९७।१)। यहाँ भरद्वाज For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy