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महिमा जैसे मिट्टी में रूप रस, गंधादि, गुण स्वभाव सिद्ध है, वह कारण पाकर प्रकट हो जाता है, इसी न्याय से श्रात्मा में ज्ञान गुण भी स्वभाव सिद्ध है, कारण से उत्तेजित हो जाता है ॥७॥ निग्रंथी गुरु जगत में दुर्लभ है, क्योंकि माया सब कुं नाच नचा रही है, परंतु श्री "अर्हत" देव की करुणा है, सो बिगड़ी बात कुँ भी बना देती है ॥८॥
"जे चउदे उपकरण भणे." । ___ जैन श्वेतांबर यति साधुओं के १४ उपकरण जैन शास्त्रों में कहे हैं, सो सब प्रणव ही में मिल जाते हैं । जैसे १४ उपकरण में पात्र ३ जो कहे हैं, वही प्रणव में ३ मात्रा है, और जो उपकरण में ३ वस्त्र है, सो ही प्रणव में रजोगुण प्रमुख ३ भाव है, इसी तरह मारणादि पटकर्म यंत्र मंत्र भेद से १२ भाव जो प्रणव में हैं, वही जैन मुनि का १२ कवल आहार प्रमाण है, उनोदरी तप में १और विलस्त भर याने १२ अंगुल प्रमाण जो सहस्त्र दल प्रमाण में प्रणव स्थापना का कमल है। उसकी संख्या को द्विगुण करो तो, रजोहरण उपकरण का दंड वड का २४ अंगुल प्रमाण होता है, उस दंड में बंध से ३ भाग करते हैं, सोई ३ के अंक से उस पूर्वोक्त १२ की संख्या को गुणा करो तो, ३६ होते हैं, वही ३६ श्राचार्य के गुण हैं ॥२॥ इस वास्ते यह धर्मध्वज श्राप आचार्य हुश्रा, और यह धर्मध्वज मंगल स्वरूप है, रज के दोष को दूर कर्ता है, यह धर्मध्वज जैसे जीव दया के वास्ते जैन साधु का उपकरण है, इसी तरह आप समझिये कि जैन मुनियों के सर्व उपकरणों में हिंसा ही की मनाई है ॥ ३॥ प्रणव यही अरिहंत देव है, अर्थात् प्रणव अरिहंत रूप है, इसमें भेद नहीं, यही अन्तिम निष्कर्ष है, और गायत्री में के जो २४ अक्षर हैं, वे ही २४ अवतार जैन मत में हैं, वे कैसे हैं परम आनंद उपजाते हैं ॥४॥
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