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है। उन से संख्या साहश्य से ५ तत्व सूचन होते हैं। अथवा-जैस प्रथम अवतार भगवान् श्रीऋषभदेवजी की च्यवन तिथि आषाढ़ यदि ४, जन्म, वो दीक्षा, तिथी वैशाख पदि ८, शान तिथी फागुन वदि ११, निर्वाण तिथी माघ वदि १३ हैं, इसमें ४११ चंद्र तिथि है, ८-१३ सूर्य तिथी है, इसी तरह मास में भी चंद्र सूर्य का भेद है। और पृथ्वी जल का स्वामी चंद्र है। अग्नि, वायु, आकाश, तत्व का स्वामी सूर्य है। इस तरह से भी ५ तत्व सर्व अवतार की च्यवनादिक की मास तिथी से निकलते हैं । जैसे इन तिथियों से यह कल्याणक वाला पुरुष भिन्न है । इसी तरह इन तत्त्वों से भी वह श्रात्मा परमात्मा भित्र है, ऐसा मुनियों ने कहा है । इस रहस्य के ग्रंथ जैनमत में बने हैं, जिनमें धर्म को दृढ़ किया है, घे ग्रन्थ कुछ तो तीर्थकर देव प्ररूपित हैं । और कुछ मुनिजन रचित हैं, इन ग्रन्थों से डूबते जीवों को संसार समुद्र से बचाया है ॥ ४॥
“नहीं भूस्त नगन किसी मत में" कोई मत में नगन मूर्ति नहीं है, फकत समझने में कुछ फेर पड़ा है। लोक दिगंबर यह नाम सुनते ही झूठे मार्ग में दौड़ जाते है। परंतु इतना सोचने में भालस करते हैं कि दिशा अरूपी है, यह अंबर याने वस्त्र नहीं बन सकती है ॥ १॥ किन्तु सिर से पद तक शरीर में जो दश अंग हैं, वही दस दिशा हैं। इस कारण से देह हुई दिशा वही अंबर याने पट श्रात्मा के प्रावरण स्वभाव से है, इसको नहीं जानते पुरुषदूसरा पट रखते हैं ॥२॥-जिन धर्म में साधु के २ मार्ग, हैं, जिन कल्प, १ स्थविरकल्प, २ इनमें जिनकल्प मार्ग के साधु परम हंसवत् बन में रहते हैं, तब तक नग्न रहते हैं परंतु जब नगर में श्राते हैं तब वे भी वा को धारण कर लेते हैं ऐसी बानी मुनिजनों में हैं ॥३॥ इस वास्ते जैसा भाव अपने में
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