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सपि न [सर्पिस्] घृत, घी। (निय.२२) सपुरिस पुं [सत्पुरुष] सज्जन मनुष्य। णिठुरं कडुयं सहति
सपुरिसा। (भा.१०७) समाव/सभाव पुं[स्वभाव]1.प्रकृति,निसर्ग,स्वभाव, यथार्थदशा। (पंचा.५२, ६५,प्रव.जे.५०) दबस्स य णत्यि अत्थि सब्भावो। (पंचा.११) -समवद्विद वि [समवस्थित] स्वभाव में स्थित। (प्रव.जे.५०) सभावसमवविदो हवदि। (प्रव.जे.५०) 2. [सद्भाव] अस्तित्व भाव, सत्तास्वरूप। (पंचा.५३, प्रव.२) सब्भावपरूवगो हवदि णिच्चं। (पंचा.१०१) सभावणा स्त्री [सभावना] भावना सहित, चिन्तन सहित।
(मो.७१) सन्मूद वि [सद्भूत] सत्तास्वरूप, अस्तित्वमय। अत्यो खलु होदि
सब्भूदो। (प्रव.१८) सम पुं [शम] 1.समता, समभाव। (प्रव.७,पंचा.१०७, निय.१०९ बो.४६, मो.७२) परिणामो अप्पणो हु समो। (प्रव.७) राग,देष
और मोह से रहित आत्मा का परिणाम ही सम है। (प्रव.७) -भाव पुं [भाव समताभाव, शान्तभाव। चारित्तं समभावो। (पंचा.१०७) 2.पुं [श्रम परिश्रम, खेद, थकावट। तण्हया वा समेण वा रूढं । (प्रव.चा.३१)3.वि [सम] समान,तुल्य,सदृश्य, उदासीन। (प्रव.जे.१०४, निय.११०, शी.१) साहीणो समभावो। (निय.११०) -लोहकांचण पुं न [लोष्ट-कान्चन] पत्थर और स्वर्ण में समानता (प्रव.चा.४१)-सुहदुक्ख पुं न [सुखःदुख
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