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सुख-दुःख में समानता। (पंचा.१४२, प्रव.१४) समब पुं [समय] 1.समय, काल, अवसर, काल विशेष । (स.२१६, प्रव.जे.४७, पंचा.२५) सभए समए विणस्सदे उहयं । (स.२१६) समय अप्रदेश है । जब एक प्रदेशात्मक पुद्गलजातिरूप परमाणु मन्द गति से आकाश द्रव्य के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश के प्रति गमन करता है तब समय होता है। (प्रव.जे.४६)2.लोक,विश्व। समवाओ पंचण्डं समउत्ति जिणुत्तमेहिं पण्णत्तं । (पंचा.३)जीव,पुद्गल,धर्म,अधर्म और आकाश इन पांचों का समुदाय भी समय है। (पंचा.३) 3.देखो समय। समंत वि [ समन्त] विश्वव्यापी,पूर्ण,समस्त। (प्रव.२२,४७)
समंतसव्वक्खयगुणसमिद्धस्स। (प्रव.२२) समक्खाद वि समाख्यात] उक्त, कथित,अभिव्यक्त। (प्रव.३६,
प्रव.जे.६, निय.२) णेयं दव्वं तिहा समक्खादं। (प्रव.३६) समगं अ [समकम् युगपत्, एक साथ। ते ते सव्वे समगं समगं।
(प्रव.३) समग्ग वि [समग्र] पूर्ण, समस्त। सपदेसेहिं समग्गो। (प्रव.जे.५३) समज्जिब वि [समर्जित] उपार्जित, एकत्रित, संकलित।
(निय.११८) समण पुंस्त्री [श्रमण] निर्ग्रन्थ, मुनि,साधु, यति, भिक्षु। (पंचा.२, प्रव.१४,लिं.४,भा.५१) समणो समसुहदुक्खो। (प्रव.१४) जिसे शत्रु और मित्रों का समूह समान हो, सुख एवं दुःख समान हो,
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